माँ कहां चली गई तू …. कहां चली गई माँ… बहुत अकेली हो गई हूं माँ…. आज सरला अपने आंसू रोक नहीं पा रही थी , कहते हैं ना उम्र कितनी भी क्यों ना हो जब कहीं कोई नहीं दिखाई देता तो एक माँ ही होती है जो हर वक्त सामने होती है …!
और विभु मैं तुम्हें भी माफ नहीं करूंगी तुम भी मुझे अकेला छोड़ कर चले गए ना…. जानते तो थे मैं तुम्हारे बिना एक कदम भी नहीं चल पाती थी , फिर क्यों विभु ….क्यों…? जोर-जोर से चीखें मार मार कर सरला रो रही थी… न जाने आज खुद को कितनी निरीह और असहाय महसूस कर रही थी …। वो कभी माँ की तस्वीर निहारती तो कभी पति वैभव की …!
प्रशांत कोचिंग के लिए और निशांत ट्यूशन के लिए चला गया था इसीलिए सरला घर में अकेले जी भर के रो लेना चाहती थी…।
कितना खुशहाल परिवार था सरला का… दो बच्चे और पति पत्नी… बड़ा बेटा प्रशांत पढ़ाई में थोड़ा कमजोर था और उसकी दोस्ती कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी , जिसे लेकर सरला उसे हमेशा डांटा करती थी और वैभव से शिकायत भी करती , कहती विभु कहीं हमारा प्रशांत बिगड़ ना जाए उसका पढ़ने में मन नहीं लगता है पर विभु ये कहकर हमेशा टाल देते , अरे सभी बच्चे एक जैसे नहीं होते हैं सरला… धीरे-धीरे आ जाएगी अक्ल…! किसी तरह ले दे के 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर पाया था… वहीं निशांत पढ़ने में अव्वल था , दोनों भाइयों के उम्र में भी काफी अंतर था निशांत पूरे 6 साल छोटा था प्रशांत से…।
….तभी एक दिन खबर आई….
इस कहानी को भी पढ़ें:
सिर्फ.. काम.. काम.. काम.. – हेमलता गुप्ता : Moral Stories in Hindi
बीच सड़क में गाय खड़ी थी जिसे बचाने के चक्कर में डिवाइडर से कार टकरा गई और वैभव नहीं रहे ….
सरला की पूरी दुनिया ही पलट चुकी थी… वो तो भला हो कंपनी का जिसमें पति के मृत्यु के बाद पत्नी या बेटे को नौकरी मिल जाती थी …सरला काफी तनाव में थी ….प्रशांत चाहता था नौकरी उसे मिल जाए पर कहीं ना कहीं सरला, प्रशांत की दोस्ती उसके संगत और उसके व्यवहार से दुखी भी रहती थी ….काफी सोच विचार और सगे संबंधियों से विचार विमर्श के बाद सरला ने खुद ही नौकरी करने का फैसला लिया…।
कभी घर से न निकलने वाली सरला ने अपने को इतना मजबूत बना लिया था कि , वो चाहती थी उसे एक माँ के साथ-साथ पिता की भी भूमिका निभानी है…. प्रशांत की भी पापा के जाने के बाद मनमर्जियां ज्यादा चलने लगी थीं… आए दिन सरला से पैसे की मांग को लेकर खिचकिच हो ही जाती थी ….कहीं ना कहीं प्रशांत के दिल में माँ के लिए उसे नौकरी न देकर खुद नौकरी करना एक चोट (टीस) सी बन गई थी पर धीरे-धीरे सब सामान्य चलता रहा…।
रोज की भांति सरला आज भी ऑफिस पहुंची थी तो… इतने सारे डांक देखकर थोड़ी परेशान हुई क्योंकि इन डांको को दूसरे ब्रांच में पहुंचना था… मंई की चिलचिलाती धूप … कोई विकल्प नहीं है , स्कूटी चलाना भी नहीं सीखा था…. उठाया डांक , छाता तानी और निकल गई….!
कुछ दूर जाने के बाद …..
भाभी नमस्ते ,कहां जा रही हैं….? गर्मी से त्रस्त पसीने से भीगी सरला ने कहा ….अरे विप्लव आप…?
वैभव का दोस्त विप्लव था जो वैभव के जाने के बाद उसके घर आना कम कर दिया था या कहें बंद ही कर दिया था….क्योंकि जब घर में पुरुष ना हो तो कौन आ रहा है कौन जा रहा है अड़ोसी पड़ोसी को इसकी बड़ी चिंता रहती है…।
बैठिए ,मैं आपको छोड़ देता हूं…. अरे नहीं , मैं चली जाऊंगी कह कर सरला ने औपचारिकता तो निभा ही दी थी पर मन ही मन सोच रही थी बैठ ही जाना था क्या…? विप्लव के एक बार और आग्रह करने पर सरला उसकी गाड़ी में बैठ गई …!
फिर क्या था , सरला के शाम को घर पहुंचने से पहले ही ये खबर बच्चों तक पहुंच गई कि… तेरी मम्मी किसी के साथ गाड़ी में बैठकर कहीं जा रही थी ….
इस कहानी को भी पढ़ें:
शाम को जैसे ही सरला घर पहुंची , प्रशांत उखड़ा उखड़ा लग रहा था , रोज की तरह सरला ने चाय उसे भी दिया …प्रतिउत्तर में प्रशांत ने ” नहीं पीना है ” कह कर दूसरे कमरे में चला गया ….! सरला सोच रही थी आज फिर पैसे मांगने होंगे शायद इसीलिए नाटक कर रहा है … सरला ने इसे तूल ना देकर अपने काम में लगना ही उचित समझा…!
रात को डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खाते वक्त सरला ने ही बात शुरू की ….तेरा एसएससी का टाइम टेबल आ गया क्या प्रशांत …? इस बार बेटा अच्छे से मेहनत करके परीक्षा देना ताकि तेरा सिलेक्शन हो जाए और तू भी सेट हो जा ….!
अच्छा.. इतनी चिंता है आपको मेरी…? फिर आपने पापा वाली नौकरी मुझे क्यों नहीं दी….? अब समझ में आ रहा है वो नौकरी आपने मुझे क्यों नहीं दी थी …..निशांत भी भौचंगा हो प्रशांत को एक टक निहार रहा था …कि ये भैया माँ को क्या बोल रहे हैं ….?
हां प्रशांत , शायद अब तुझे भी समझ में आ गया होगा कि मैंने वो नौकरी खुद क्यों ली …क्या है ना बेटा ,तेरे पास ऑप्शन है तुझे नौकरी मिल सकती है… मेरे पास क्या ऑप्शन था फिर मैं भी कमाती और तू भी ….समझ गया ना …..सरला आने वाले तूफान से बेखबर अपने दिल की बात बच्चों से कह रही थी …..!
बीच में ही प्रशांत उठकर बोला ये सब बहाने बाजी छोड़िए …फिर आप दूसरों के साथ कैसे …..?? आगे प्रशांत और कुछ कहता , सरला ने प्रशांत के गाल पर एक थप्पड़ लगा दिए …..प्रशांत पैर पटकता हुआ अपने कमरे में चला गया …..निशांत बिना कुछ बोले बर्तन समेट कर रखने लगा और वो भी कुछ देर बाद वहां से चला गया…।
पूरी रात सरला सो ना सकी… रोती रही , सोचती रही …..एक बार खुद से बच्चे स्पष्ट रूप से जो भी शंका थी पूछ लिए होते ….
मेरे विप्लव के साथ गाड़ी में बैठना और बच्चों तक ये खबर न जाने किस रूप में पहुंचना और बच्चों का अपने दिमाग के अनुरूप प्रतिक्रिया…!
बाप रे…… आज तो निशांत ने भी मेरी तरफदारी नहीं की , चुपचाप वो भी चला गया…. प्रशांत तो शुरू से ही बदतमीज था पर कहीं निशांत भी मुझे गलत तो नहीं समझ रहा ….भीतर से पूरी तरह टूट चुकी थी सरला… उसके चरित्र पर प्रहार जो हुआ था वो भी किसी बाहर वालों से नहीं ….
अपने घर वालों से …अपनों से ….अपने ही बच्चें से…
इस लांछन के साथ कैसे रह पाऊंगी इस घर में ….कैसे जी पाऊंगी ….सोचते सोचते , रोते रोते ना जाने कब आंखें थक गई और सो गई…।
इस कहानी को भी पढ़ें:
रोज की तरह अगले दिन भी सरला ऑफिस के लिए तैयार हुई …सब कुछ सामान्य रखने की भरपूर कोशिश की सरला ने ….बस प्रशांत कम बातें कर रहा था , सिर्फ हां या नहीं में उत्तर देता था….।
दिन बीतते गए , सरला कभी सफाई देने की कोशिश नहीं की …वो अच्छी तरह जानती थी अभी मैं जो कुछ भी कहूंगी उसकी नजर में वो मेरे लिए बचाव मात्र होगा और….
सत्य तो सत्य है सामने आकर ही रहेगा… जब मैंने बाहर निकलने का फैसला कर ही लिया है तो ऐसे कीचड़ के छीटें तो पड़ते ही रहेंगे …..इन छीटों से डर कर मैं अपनी दुनिया… बच्चों की दुनिया…. थोड़ी ना तबाह कर लूंगी ….।
प्रशांत तो बच्चा है उसकी सोच उसकी बुद्धि इसी लायक होगी पर मैं तो उम्र में बड़ी हूं मेरे पास तजुर्बा है फिर मैं कोई भी ऐसा कदम उठाऊं ही क्यों जिससे बाद में पछताना पड़े…।
इसी तरह दिन बीतते गए …सब कुछ सामान्य तो हो चला था… वो पिछली बातें लगभग सभी लोग भूल भी चुके थे …सिवाए सरला के….. सरला भूल भी कैसे सकती थी …उस पर संदेह कर ” लांछन ” लगाया गया और उसके “आत्मसम्मान ” को तार-तार करने की कोशिश की गई थी…।
एक ऐसा लांछन उस पर लगाया गया जिससे दूर-दूर तक उसका कोई वास्ता ही नहीं था… और इसे ना तो वह कभी भूल सकती और ना ही माफ कर सकती थी…!
वैभव वाला बाइक प्रशांत ही चलाता था …कोचिंग जाना हो या कोई और काम…. रोज की भांति….
मम्मी मैं जा रहा हूं कोचिंग ….कह कर निकला…. काफी देर तक लौटा नहीं , तो सरला घबरा गई ….बाहर गेट पर खड़ी हो कर इंतजार कर रही थी …..
थोड़ी देर में निशांत ट्यूशन से आ गया सरला को परेशान देख कारण जानना चाहा ….सरला ने चिंतित होते हुए कहा प्रशांत अभी तक लौटा नहीं है…. मम्मी मैंने भैया को किसी लड़की के साथ स्कूटी में देखा था….
क्या … ??
पर वो तो मोटरसाइकिल से गया है…. फिर न जाने क्या सोच कर सरला थोड़ी सी निश्चित हो मुस्कुरा पड़ी…।
प्रशांत के घर आते ही सरला ने सीधे-सीधे पूछा… आज स्कूटी में किसके साथ घूम रहा था …?
अरे वो मम्मी …सरला को मुस्कुराते देख प्रशांत ने तुरंत कहा….
इस कहानी को भी पढ़ें:
जैसा आप समझ रही हैं वैसा कुछ भी नहीं है ….जाते समय मेरा मोटरसाइकिल पंचर हो गया था बनने को दिया था… फिर कोचिंग में साथ पढ़ने वाली दिव्या ने मुझे लिफ्ट दे दिया था ….!
ये निशांत ने ही चुगली की होगी… दिखा था मुझे रास्ते में , आप लोग अच्छा तो कभी सोच ही नहीं सकते… सिर्फ फिजूल की ही बातें आती है दिमाग में…. प्रशांत एक सांस में बोलता गया….
अब तक तो सरला चुपचाप सुन रही थी पर अब वो चुप ना रह सकी …सही समय और सही मौके का इंतजार तो था ही उसे ….उसने बड़ी गंभीरता के साथ कहा…. हां बेटा , लोग फिजूल की बातें ही कहते और सुनते हैं… और कुछ लोग तो इस फिजूल की बातों को मान भी लेते हैं….
5 साल पहले ….तुमने भी तो फिजूल की बातें ….कहना , सुनना तो दूर… तुमने तो मान भी लिया था बेटा… एक बार तो …..सिर्फ एक बार ..अपनी माँ पर विश्वास किया होता या सीधे-सीधे सब कुछ …सब कुछ पूछ ही लिया होता प्रशांत ……तो शायद मुझे इतना दुख ना होता ….मेरे आत्मसम्मान को इतनी ठेस ना पहुंचती…।
जानते हो … ” बहुत साधारण सी बात भी …उड़ते उड़ते जितने कानों तक पहुंचती है ना बेटा ….उतने ही उसके रूप बदलते जाते हैं “…..
फिर दूसरे इतने तेरे अपने हो गए कि तू उनके बातों पर एकदम से विश्वास ही कर लिया मुझसे पूछना भी जरूरी नहीं समझा…।
खैर …अच्छा किया जो तूने मुझसे कुछ भी जानना सही नहीं समझा… क्योंकि तू उस समय वही समझता जो तू समझना चाहता था … या तुझे वो लोग जो समझाना चाहते थे…. तुझे उस समय मुझसे ज्यादा वो अपने लगते थे ना ….!
लेकिन मुझे तुझ पर पूरा विश्वास है ….मेरा बेटा मुझसे झूठ नहीं बोलेगा… और कभी मैं उसकी आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुंचने दूंगी…. मैं तो क्या , दुनिया की कोई भी ताकत मेरे बच्चों के आत्मसम्मान पर थोड़ी भी चोट पहुंचाने की कोशिश भी की ना….तो भरसक रक्षाकवच बन तुम्हें आत्मसम्मान की रक्षा करने की प्रेरणा देती रहूंगी …।
क्या है ना बेटा… लांछन , कलंक दाग धब्बा , किसी के भी जिंदगी को तहस-नहस कर सकते हैं …..और आगे सरला कुछ कहती …..प्रशांत सरला के आंसू पोछते हुए धीरे से कहा …मम्मी मुझे माफ कर दीजिए….
मेरे संस्कार ने मुझे कभी इतनी हिम्मत ही नहीं दी कि मैं इतने सम्वेदनशील विषय पर आपसे , आपके ही बारे में खुलकर बातें कर सकूं …..सच में मम्मी मेरी तो कभी आपसे माफी मांगने की भी हिम्मत नहीं हुई …..मैंने मन ही मन बहुत सोचा था…..फिर लगा ….एसएससी क्लियर करके , कुछ बनकर ही आपसे माफी मांगूगा …..सरला ने वैभव की तस्वीर की ओर एक बार फिर से निहारा…. ऐसा लग रहा था जैसे वो कर रहे हों…. देखा सरला…. कहा था ना सुधर जाएगा अपना प्रशांत ….धीरे-धीरे अक्ल आ जाएगी…।
( स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित अप्रकाशित रचना )
साप्ताहिक विषय : # आत्मसम्मान
संध्या त्रिपाठी