बहती गंगा में हाथ धोना – शनाया अहम : Moral Stories in Hindi

बात उन दिनों की है जब राधिका कॉलेज में पढ़ रही थी, ये उसका कॉलेज का पहला ही साल था। राधिका पढाई में तो होशियार थी ही वो पाक कला में भी निपुण थी। उसके हाथ में जादू था और हर तरह का खाना वो मिनटों सेकेंडों में बना देती थी, जो भी उसका बनाया खाना खाता था अपनी उँगलियाँ चाटता रह जाता था।  सारे खानदान में उसके बनाये खाने की तारीफें होती थी। 

हालाँकि राधिका के पिता उसे रसोई से ज़्यादा पढाई में समय देने की हिदायत देते थे , इसलिए राधिका अपना ज़्यादा समय तो पढ़ाई में ही लगाती थी पर बीच बीच में वो और नए नए देसी विदेशी पकवान बनाती रहती थी। 

माता पिता की एकलौती संतान राधिका का सपना पढ़ लिखकर कुछ बनने का था , इसलिए वो पढाई में जी तोड़ मेहनत करती थी। 

सब कुछ सही चल रहा था लेकिन अचानक राधिका के पिता अजय जी को मेजर हार्ट अटैक आने से सब कुछ बिखर गया , मुश्किल से अजय जी की जान बच पाई लेकिन अजय जी बिस्तर से लग गए. अजय जी के बिस्तर से लगते ही उनके बिज़नेस में घाटा होना शुरू हो गया और उनका पार्टनर भी उन्हें धोखा दे गया। इधर वो नाते रिश्तेदार जो अजय जी के अच्छे वक़्त के साथ उनके आगे पीछे घूमते थे वही सब आज उनके बुरे वक़्त में उनसे पल्ला झाड़ने लगे। घर की आर्थिक हालत दिन ब दिन कमज़ोर होती जा रही थी और अजय जी का इलाज भी काफ़ी महंगा था। 

राधिका और उसकी माँ त्रिशला अपने घर की इस हालात से बेहद दुखी हो गए लेकिन अजय जी के सामने वो कुछ भी ज़ाहिर नहीं करते थे। 

राधिका , त्रिशला मैं जानता हूँ कि मैंने जबसे बिस्तर पकड़ लिया है , क्या कुछ हुआ है और हमारे घर के हालात ख़राब होते जा रहे हैं , ऊपर से मेरे इलाज पर भी एक मोटी रकम ख़र्च हो रही है, इससे तो अच्छा होता मैं न रहता, कम से कम मुझ पर इतने पैसे तो न लगते। रुहाँसे होकर अजय जी बिस्तर पर लेटे लेटे अपनी पत्नी और बेटी से बोले। 

नहीं, ये आप क्या कर रहे हैं , आप ऐसा सोच भी कैसे सकते हैं, भगवान ने अच्छे दिन वापस ले लिए तो बुरे दिन भी वापस ले लेगा” त्रिशला जी अपने पति का हाथ थामकर बोली। 

राधिका भी अपने माँ पापा का हौसला बढ़ाते हुए बोली कि जो होता है अच्छे के लिए होता है , हमारे बुरे वक़्त में कम से कम हमें ये तो पता चल गया कि सब मतलब के रिश्ते थे , मतलब के लोग थे। सब बहती गंगा में हाथ धोने वाले थे और हमें ऐसे रिश्ते ऐसे लोग नहीं चाहिए। 

हमारा बुरा वक़्त हमें ख़ुद ही दूर करना होगा। इतना कहकर राधिका ने मन ही मन कुछ सोचा और उठ खड़ी हुई। 

अपने पिता से पढ़ाई को अनदेखा न करने का वादा करके राधिका ने अपने घर से ही खाने के टिफ़िन का कारोबार शुरू किया , इस काम में उसकी माँ ने भी उसका साथ दिया। 

राधिका खाना बनाने में अन्नपूर्णा तो थी ही, उसके हाथ का टिफ़िन लोगों को बहुत पसंद आया , नित नए व्यंजनों से सजा टिफ़िन धीरे धीरे हर जगह फेमस होने लगा।  ऑफिसों , हॉस्टलों , PG आदि में उसके टिफ़िन की डिमांड लगातार बढ़नी शुरू हो गई , पहले तो राधिका ख़ुद ही स्कूटी से टिफ़िन डिलीवर करती थी लेकिन अब बढे हुए काम को देखकर उसने 2 डिलिवरी बॉय भी रख लिए और घर के पीछे की जगह में एक छोटा सा ढाबा खोल लिया , जहाँ टिफ़िन के साथ साथ राहगीरों को भी स्वादिष्ट खाना मिलने लगा। 

कुछ और वक़्त बीता और अब ढाबे ने एक रेस्टॉरेंट का रूप लिया , राधिका ने शहर में एक जगह लेकर अपने रेस्टॉरेंट की नींव रखी। 

अब तक उसके पास काफ़ी पैसे भी जमा हो चुके थे और पापा की हालत में भी सुधार होने लगा था।  

 

आज अपने माँ पापा के हाथों राधिका ने अपने रेस्टॉरेंट का उद्घाटन कराया ,,अपनी बेटी की लगन और मेहनत को देखकर माँ पापा की आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गए। 

राधिका की मेहनत और खाने के स्वाद से लोगों में राधिका के रेस्टॉरेंट की लोकप्रियता बढ़ती चली गई और पढाई पूरी होने से पहले ही राधिका की गिनती एक सफ़ल बिज़नेस वीमेन के रूप में होने लगी।

घर के हालात सुधर चुके थे , अजय जी भी पूरी तरह स्वस्थ होकर रेस्टॉरेंट में बैठने लगे थे , राधिका की पढाई भी पूरी हो गई उसने कॉलेज में टॉप किया।  कुल मिलाकर राधिका ने अपने परिवार पर छाये बुरे वक़्त के बादलों को अपनी लगन और मेहनत के बलबूते छांट दिया था। 

बुरे वक़्त में जो नाते रिश्तेदार मुंह मोड़ने लगे थे , वो आज फिर से आना जाना शुरू करने लगे थे।इतना ही नहीं एक रिश्तेदार तो राधिका के लिए अपने बेटे का रिश्ता भी ले आया।  राधिका से इन रिश्तेदारों का ये चरित्र बर्दाश्त नहीं हो रहा था पर वो कुछ सोचकर चुप थी। 

राधिका ने कुछ सोचकर कुछ दिनों बाद रेस्टॉरेंट खुलने की ख़ुशी में एक पार्टी रखी और सारे रिश्तेदारों , मिलने जुलने वालों को बुलाया।  

सब बड़ी ख़ुशी ख़ुशी पार्टी में गए , पार्टी चल रही थी, कुछ देर बाद राधिका स्टेज पर गई और उसने माइक लेकर बोलना शुरू किया “मेरे प्यारे रिश्तेदारों जैसा कि आप सभी जानते ही हैं कि मेरे मम्मी पापा के आशार्वाद से मैंने ये रेस्टॉरेंट खोला है जिसकी लोकप्रियता आप हर जगह देख ही रहे हो, और साथ ही मैंने अपने कॉलेज में भी टॉप किया है , ये सब मुमकिन हो सका है मम्मी पापा के मुझ पर विश्वास और हर क़दम पर मेरा सहयोग करने से। हमारा बुरा वक़्त आया और चला गया , लेकिन हमें ये दिखा गया कि कौन हमारा अपना है और कौन पराया,

हमारा बुरा वक़्त हमारे अच्छे वक़्त के समय *बहती गंगा में हाथ धोने वालों* के चेहरे हमें दिखा गया। हमने कभी किसी से मदद नहीं मांगी थी लेकिन लोगों ने ऐसा मुंह मोड़ा जैसे वो सब भूल ही गए थे कि पापा ने उनकी कितनी मदद की है, सबसे पहले इन लोगों की परेशानी में पापा ही साथ देने आगे आते थे।  

लेकिन अब ऐसा नहीं होगा ,,,अब मेरे घर की गंगा में दोगले लोगों के हाथ नहीं धुलेंगे। .. आप सबका धन्यवाद यहां आने के लिए , खाना खाकर जाइएगा। इतना कहकर राधिका स्टेज से नीचे उतरी और माँ पापा का हाथ थामकर रेस्टॉरेंट से घर के लिए अपनी नई गाड़ी में रवाना हो गई। 

पीछे से सभी उसका मुंह ताकते रह गए ,,, अब सभी को समझ आ चुका था कि अब बहती गंगा में हाथ नहीं धुलने वाले।।। 

शनाया अहम 

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