गृहलक्ष्मी – अर्चना सिंह : Moral Stories in Hindi

नेहा  और अजीत जुड़वा भाई-बहन थे । दोनो  एक ही स्कूल में साथ पढ़ते थे ।स्कूल सिर्फ दसवीं कक्षा तक था । आज ही रिजल्ट निकला था, अच्छे नम्बरों से पास हुई थी नेहा और उसका भाई अजीत बस किसी तरह पास हो गया था ।

अपने रईस दोस्तों को देखकर अजीत ने ज़िद ठानी की मुझे भी महँगे स्कूल में एडमिशन लेना है । अजीत के पापा प्रताप जी बेटी से ज्यादा बेटे से प्यार करते थे । उनका कहना था कि बेटियाँ दूसरे कुल का मान रखती हैं और बेटे अपने घर के होते हैं। जितना खर्च हो सकता या यूँ कहें जब जो अजीत कहता वो पल भर में पूरा करते थे ।

नेहा ने कहा..”पापा !  अगर ये दूसरे अच्छे स्कूल में जाएगा तो मैं भी इसी शहर में नहीं पढूंगी । वहीं जाऊँगी । एक सप्ताह से घर में बस हर दिन का ये ही चर्चा था । लगातार नेहा के मुंह से यही बात सुनते – सुनते अचानक एक दिन प्रताप जी फट पड़े, ..कितनी बार समझाया है तुम्हें ? बेटियों को ज्यादा ऊँचे ख्वाब नहीं देखना चाहिए और तुम्हें पढ़ा कर क्या फायदा है, तुम तो दूसरे कुल में चली जाओगी । 

अजीत को देखकर मुस्कुराते हुए कहते..”इसे पढ़ाऊंगा किसी अच्छे स्कूल में तो ये मेरा नाम भी रौशन करेगा । और स्कूल अच्छा खराब कुछ नहीं होता, इसी शहर में जो कॉलेज हैं वहीं एडमिशन कराऊंगा , पढ़ना है तो पढ़ो वरना शादी – ब्याह करके अपने घर में सेट हो जाओ ।

सोफे पर धम्म से बैठ के नेहा बिफर के रोने लगी । उसकी मम्मी सुगंधा जी ने नेहा के आँसू पोछते हुए प्रताप जी से कहा..”बेटी तो पढ़ने में भी अच्छी है जी । इसे दाखिला करा दीजिए न अच्छे स्कूल में । अजीत को तो पढ़ने में मन भी नहीं लगता, पास होता है बस किसी तरह तो कम भी पढ़ेगा तो बिजनेस खुलवा दीजिएगा ।

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लेकिन प्रताप जी ज़ोर से चिल्लाकर अपनी पत्नी सुगंधा जी का भी मुँह बंद करा दिए, वो अपनी मर्जी के मालिक खुद थे ।

आँसू पोछते हुए नेहा ने कहा..”मम्मी , पापा ! आप जहाँ बोलेंगे, वहीं पढूँगी मैं, प्लीज आप मेरी वजह से बहस मत करिए ।

अजीत का स्कूल पास के ही दूसरे शहर में हो गया था और नेहा का उसी शहर में । बहुत बिगड़ैल था अजीत । सिर्फ महँगी गाड़ी, अच्छे रेस्टोरेंट का खाना, सिगरेट आदि की लत हो गयी थी उसे । जितने पैसे प्रताप जी भेजते उन पैसों की सिर्फ बर्बादी करता था क्लास बंक करके । आँख होते हुए भी पट्टी बाँध कर प्रताप जी मौन रहते ।

इधर नेहा की पढ़ाई ज़ोरों – शोरों से चल रही थी । बीच – ,बीच मे कभी त्योहार आते तो सुगंधा जी प्रताप जी से बोलतीं..”चार दिन की छुट्टी है, या एक सप्ताह की छुट्टी है बुला लीजिए ।

हर बार नकार जाते प्रताप जी। सुगंधा जी की बातों को तो वो ज़रा भी गौर न करते । अजीत के जन्मदिन से पहले सुगंधा जी ने प्रताप जी से कहा..”बुला लीजिए बेटे को ।हमे भी तो अच्छा लगेगा हमारे साथ जन्मदिन मनाएगा तो । अब गुस्से से झुंझलाते हुए प्रताप जी ने कहा..अरे ! क्यों उसके पीछे पड़ी हो तुम ।

ये उसकी ज़िन्दगी का सुनहरा समय है जो लौट के नहीं आएगा, जी भर जी लेने दो उसे। सुगंधा जी ने हिम्मत करते हुए कहा..अजी ! दोस्त तो हर जगह हर कदम पर मिलेंगे पर माँ – बाप के साथ भी तो कभी कोई पर्व – त्योहार मनाए । देखते देखते समय गुजर रहा है । दो साल होने को आए 4 घण्टे की दूरी है पर अपने माँ – बाप को झाँकने नहीं आया । कहीं उसके अंदर हमारी मोह – माया न खत्म हो जाए डर लगता है ।

“तुम भविष्य सोच के चिंतित होते रहो, मैं तुम्हारी तरह नहीं पगला सकता” । इतना बोलकर प्रताप जी घड़ी लगाए और गाड़ी स्टार्ट करके ऑफिस के लिए निकल गए ।

ऐसे ही एक दिन सुगंधा जी ने बेटे को फोन करके आने को कहा और उसने सीधा मना कर दिया । फिर सुगंधा जी ने कहा..तुम तो नहीं आओगे बेटा , मुझे पता दो मैं  आती हूँ  । एक दिन किसी तरह प्रताप जी को सुगंधा जी ने मना लिया और अचार, मठरी, लड्डू बनाकर तैयार कर लिया फिर नहा – धोकर सुगंधा जी चली गईं प्रताप जी के साथ बेटे से मिलने । आधे घण्टे साथ बैठकर अजीत अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने चला गया ।

कितना रोकने की कोशिश की सुगंधा जी ने पर वो नहीं रुका । फोन करके उसने बोल दिया कि आपलोग चले जाइयेगा चाभी दोस्त को देकर । मुझे आने में देर होगा ।

देखते – देखते दो साल बीत गए । आज बारहवीं का रिजल्ट आया था । पहले की तरह  इस बार भी नेहा ने बाजी मारी और अजीत तो असफल ही हो गया था । अजीत वापस अपने घर आया तो मम्मी – पापा कुछ बोलें उससे पहले ही उसने बोला ..”पापा ! पढ़ाई में मेरी दिलचस्पी नहीं है । मेरा दोस्त विदेश जा रहा है , अब मुझे भी जाना है और उसके साथ जाकर बिजनेस करना है ।

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सुगंधा जी ने फिर से मान – मनव्वल से कहा..अगर एक बार ये विदेश गया तो पूरी तरह हाथ से निकल जाएगा, एक ही बेटा है हमारा । 

नेहा ने कहा..”मुझे पहले ग्रेजुएशन करना है पापा ! फिर कुछ सोचूँगी । प्रताप जी ने कहा..”नेहा ! तुम्हारे लिए अपने दोस्त के बेटे से  शादी की बात किया है  लड़का इसी शहर में है । अजीत ज़िद करके विदेश चला गया । फिर से सुगंधा जी की एक न चली । नेहा को लड़के वालों ने पसन्द कर लिया था   छः महीने बाद  शादी का मुहूर्त था । अजीत को इतने फोन गए लेकिन वो बहाने बनाकर शादी में भी नहीं आया ।

नेहा अब घर से विदा हो चुकी थी ।प्रताप जी का तो दोस्तों के बीच बैठ के मन बहल जाता था पर सुगंधा जी को अजीत की चिंता अंदर अंदर खाए जा रही थी । पता ही नहीं चला घुटन में जीते – जीते कब अकेलेपन का शिकार हो गईं ।  ऐसे ही  राह देखते देखते चार साल निकल गए ।एक दिन सुगंधा जी ने अजीत जी से कहा…”एक बार और बुलाकर देखिए अजीत को, उसे देखने की इच्छा हो रही है । फिर से मना कर दिया प्रताप जी ने ये कहकर की अभी सेट होने का टाइम है इतनी जल्दी नहीं आ सकता ।किसी दोस्त के द्वारा पता चला एक दिन प्रताप जी को कि अजीत ने शादी कर ली है और उसके बच्चे भी हो गए ।

मन में दर्द समेटे हुए अचानक एक दिन सुगंधा जी को हार्ट अटैक आया और वो चल बसीं । 

अजीत को फोन करके बताया तो अजीत ने कहा..”मेरा काम – धंधा चौपट हो जाएगा पापा, और तो औऱ बच्चों को मुझे अच्छी परवरिश देना है, पूरे पन्द्रह दिन बेकार हो जाएंगे । आप वीडियो कॉल करके माँ को दिखा देना मुझे । दुःखी थे माँ के प्रति अजीत से लापरवाही भरे कटु वचन सुनकर  प्रताप जी लेकिन थोड़ी खुशी भी थी कि अपने बच्चे के बारे में सोच रहा है जो मैं नहीं सोच पाया ।

अजीत जी अब बिल्कुल अकेले हो गए थे ।  बेटी दामाद ने साथ चलने की ज़िद की तो साफ मुकर गए प्रताप जी । तेरहवीं के बाद जब जाने लगी नेहा तो पापा के कपड़े पैक भी करने लगी नेहा लेकिन ज़िद करके अपने घर मे ही रुक गए प्रताप जी । 

रिश्तेदारों के चले जाने के बाद सुगंधा जी की हर एक बातें उन्हें कचोट रही थीं, मैंने क्यों नहीं मानी उसकी बात । सुगंधा ने मेरे कितने तंज झेले और फिर भी मेरी सेवा पागलों की तरह करती थी । एक काम मुझे नहीं करने देती थी । क्यों मैंने उसकी बात को हमेशा टाला । खूब ज़ोर से टूट कर रोने लगे । पूरा दिन बगैर खाए पिए निकल गया । कोई रिश्तेदार झाँकने पूछने नहीं आया ।अब इतना बड़ा घर किसी काम का नहीं था । जिस गृहलक्ष्मी से रौनक थी वही उस घर की चमक को फीका कर गयी थी। 

प्रताप जी ने वृद्धाश्रम में फोन किया और अपने आने की खबर दी । ये वृद्धाश्रम नेहा के चाचा ससुर का था । उन्होंने नेहा के पति को फोन करके बताया और बेटी दामाद गाड़ी लेकर पहुँच गए लेने । प्रताप जी को अपराधबोध सा महसूस हो रहा था नेहा को देखकर । जो बेटी मुझे एक आँख नहीं भायी आज वही मेरी आँखों का तारा बनने आयी है ।

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नेहा ने फटाफट सामान पैक किया पूरे घर को  अच्छे से साफ – सुथरा करके पापा को हाथ पकड़ के उठायी और ले जाने लगी । जैसे ही कंधे पर हाथ रखा नेहा ने प्रताप जी के आँसुओं का समंदर बह निकला । नेहा ने आँसू पोंछते हुए कहा…”आपकी बेटी हूँ तो क्या हुआ पापा ? आपको इस तरह दुःखी मुझसे नहीं देखा जाएगा । आपने जो भी किया अभी तक मेरे साथ मुझे कोई मलाल नहीं । मैं आपके हर फैसले से खुश हूँ पापा, आप मम्मी के बगैर बिल्कुल  अकेले हो जाएंगे । हम सब अब एक साथ रहेंगे ।बेटा पास में नहीं तो क्या बेटी के साथ भी आप खुश रह सकते हैं ।

प्रताप जी आँखों पश्चाताप की अग्नि में जलते हुए पत्नी की तस्वीर की तरफ मुड़कर देखे और हाथ जोड़कर निकल गए ।

#आत्मसम्मान

मौलिक, स्वरचित

अर्चना सिंह

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