समूचा आकाश उस नन्ही चिड़िया के करुण क्रंदन से गूंज उठा, पक्षियों के पंखों और चींचीं की ध्वनि मीता के कानों में गूंज उठी जो सुंदर कलरव अभी तक कानों में मिश्री सा घोल रहा था और उसके व्यथित हृदय को वह कुछ शांति दे रहा था,अब इस ध्वनि मे पक्षियों का भय सुनाई देता था।
एक नन्ही चिड़िया ने जिसने अभी शायद घोसलें से अपने नन्हे पंख बाहर निकाले ही थे, जो शायद अभी इस बेदर्द दुनिया से वाकिफ नहीं थी , जिसके माता-पिता ने भी शायद उस नन्हीं चिड़िया को समझाया होगा कि इस जालिम दुनिया में संभल संभल कर पांव रखे, पर शायद नन्ही चिड़िया पहली उड़ान में इतनी खो गई कि अपने पिता की सीख भूल गई और वह दहलीज लांघ गई जो शायद मीता ने भी कुछ समय पहले लांघ डाली थी।
उस बेदर्द बंदर ने घोंसले से निकलते ही उस नन्हीं चिड़िया को धर दबोचा, आज शायद मीता की भी यही नियति बन गई थी। किशोरावस्था में पांव रखते ही उसे ये दुनिया रंगीन और हसीन लगने लगी, हर समय उसका मन आकाश की सैर करने लगा ,और जब से अमन से उसकी मुलाकात हुई है, अमन उसकी जिंदगी में आया उसे उसके सिवा ना तो कोई दिखाई देता है ना ही कोई सुनाई देता है।
अमन ने उसे मोहब्बत के ऐसे ऐसे सब्जबाग दिखाएं कि उसे बस अब अमन ही सब कुछ लगता । हालांकि उसकी छोटी बहन पूर्णा उससे बेशक उम्र में छोटी थी पर उसमें समझदारी ज्यादा थी । उसे अमन किसी भी लिहाज से पसंद नहीं आया। उसने अपनी दीदी को समझाने की कोशिश भी की अमन उसके और हमारे परिवार के हिसाब से सही नहीं है।
पर कहावत है ना कि सावन के अंधे और मोहब्बत में पड़े लोगों को सब कुछ हरा-हरा ही नजर आता है मीता का भी वही हाल था ना कुछ सुनने को तैयार थी ना समझने को। यह बात ज्यादा दिन तक उसके माता-पिता और परिवार से छिपी ना रह सकी।
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उसके पिता केशवराय जी और उसकी मां उर्मिला जी ने भी मीता को बहुत समझाया ,अपने और उसके परिवार का अंतर बताया , फिर सबसे बड़ी बात अमन बेरोजगार था और उम्र में भी मीता से 7 वर्ष बड़ा था। मीता के पिता को अमन के व्यवहार से एहसास हुआ कि वह जिंदगी में किसी भी बात के लिए सीरियस नहीं है।
कोई भी पिता अपने जिगर के टुकड़े को ऐसे किसी इंसान को कैसे सौंप सकता था जहां उसका कोई भविष्य नजर नहीं आता था। बेशक मीता को उस समय अपने पिता की हर सीख कांटा सी लगती, उसे लगता कि वह हर हाल में अमन के साथ रह सकती है।
पूर्णा ने फिर समझाया दीदी हमारे पापा से ज्यादा हमारा हितेषी कोई नहीं है फिर आप अभी अपनी पढ़ाई पूरी कर लो फिर जो आपके लिए सही होगा वह तब देख लेंगे पर मीता के दिलों दिमाग पर अमन का भूत और किशोरावस्था का आकर्षण इस कदर सवार था कि वह एक दिन रात के अंधेरे में अपने बाबुल की वह दहलीज पार कर गई जिसने उसके पिता की इज्जत और सम्मान को तारतार कर दिया।
जब भी किसी सम्मानित व्यक्ति के अहम और सम्मान को ठेस लगती है तो फिर उसे कुछ अच्छा नहीं लगता। केशव राय जी ने भी उसी दिन से अपनी बड़ी बेटी मीता को मृत मान लिया उन्होंने फिर कभी ना उसकी बात की और ना उसकी सुध ली।
उधर मीता को भी एहसास होने लगा कि यह सिर्फ चार दिन की चांदनी थी जो अब अंधेरी रात में तब्दील हो रही थी। मीता एक संपन्न घर परिवार में पली बड़ी बेटी थी जहां माता-पिता अपने बच्चों को वो सभी सुख देना चाहते हैं जो उन्हें भी खुद ना मिले हो।
यहां ससुराल में सभी की उससे बहुत अपेक्षाएं थी, शुरू शुरू में ससुराल में सभी को लगता कि एक समर्थ परिवार की बेटी है बहुत कुछ लाएगी, कभी ना कभी तो माता-पिता मानेंगे ही पर जब उनकी कोई भी अपेक्षा मीता से पूरी होती नहीं दिखी, तो उस पर उन्होंने काम का अत्यधिक भार डाल दिया, बातों के तानों से समय-समय पर उसे बींध जाता। अब ससुराल वाले भी कहते हैं जब जो बेटी अपने पिता की ना हो सकी वह हमारी क्या होगी। खुले आकाश में उड़ने वाली मीता के तो जैसे पंख ही काट दिए गए हो।
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यहां ससुराल में उसकी सुख-दुख की खबर लेने वाला कोई नहीं था, जिसके सहारे वह बाबुल की दहलीज लांघ आई थी आज वह भी उसे कुछ ना समझता था। वह अपनी पढ़ाई भी पूरी न कर सकी थी इसलिए कोई ढंग की नौकरी भी नहीं कर सकती थी । यूं ही दिन बीतने लगे और मीता गर्भवती हो गई लेकिन उसके परिवार में इस बात की भी कोई खुशी नहीं थी क्योंकि वह परिवार एक छोटी सी बक्खल में रहता था जहां एक-एक जन का खर्चा बामुश्किल निकल पाता था, और अमन भी अभी तक लगभग बेरोजगार ही था।
उसे इस अवस्था में न फल मिलते ना दूध मिलता ।काम के अत्यधिक भार से वह अत्यंत क्षीण अवस्था में आ गई ,आज उसने उस नन्ही चिड़िया में अपने आप को महसूस किया। बस अंतर इतना था कि उस चिड़िया के प्रति उसके अपनों की सहानुभूति थी, पर उसके अपने उससे रूठे थे और बहुत दूर थे।
पर तभी उसके फोन पर एक घंटी बजती है जिस पर पूर्णा का फोन था, फोन उठाते ही उसकी सिसकियां शुरू हो गई, दोनों ही तरफ से निःशब्द वार्तालाप था। पूर्णा ने मीता की तरफ से ही कॉलेज आती अपनी एक सहेली से सुना था कि उसकी दीदी अत्यधिक वेदना और विरहा में जी रही है, मायके की विरहा और अपनी गलती का पश्चाताप ना उसे जीने देता है और ना ही पेट में पल रहे नन्हे बच्चे की जान की खातिर वो मर सकती है।
तभी उधर से फोन पर मीता की मां की आवाज थी, मां ने पूछा कैसी है लाड़ो ?…….सुना है तू मां बनने वाली है ,इस समय अपना अच्छे से ध्यान रखना। मैं चाह कर भी तुझे अभी यहां तो नहीं बुला सकती पर कुछ इंतजाम कर रही हूं। अच्छे से खाना पीना और एक स्वस्थ बच्चे को जन्म देना ।
बस इतना सुनना था मीता फफक-फफक रो पड़ी , पर उसके बैचेन मन को आज काफी तसल्ली मिली। कुछ दिन बाद मीता ने एक स्वस्थ और सुंदर बेटी को जन्म दिया ।बेटी के जन्म पर मीता की मां ने मीता से कहा अब इस नन्ही मीता को पालने की जिम्मेदारी हमारी है ,अब तू सबसे पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर अपने पांव पर खड़ा होना , तेरे पापा को भी हमने इस बात के लिए मना लिया है। इतना सुनकर मीता को एहसास हुआ, उसे लगा की मां-बाप से बढ़कर कोई भी हमारा हितैषी नहीं हो सकता ।आज उसके मायके की विरहा की घड़ियां समाप्त होने आ रहीं थी। उसके अपने आज उसके साथ थे।
ऋतु गुप्ता
खुर्जा बुलन्दशहर
उत्तर प्रदेश