बाबुल। – कामनी गुप्ता*** : Moral Stories in Hindi

मोहिनी का मन धीरे धीरे शांत हो रहा था। बहु का गुस्से भरा मुंह बात – बात पर देखकर हमेशा खुश रहने वाली मोहिनी भी असहज हो जाती थी। पति विनय से बात करके थोड़ा सुकून तो मिलता था

पर अब बुढ़ापे में वो अपनी वजह से कलह नहीं चाहते थे। बेटा जब भी बात करता हंसकर और खुलकर बात  करता था। वो हर बात माँ से बेझिझक कह देता था। बस मीरा के बारे में कोई भी कुछ कहे,

उससे बर्दाश्त नहीं होता था‌। वो मीरा से बहुत प्यार करता था और शादी के पहले ही दिन कह दिया था, कि मीरा शादी करके मेरी गुलाम नहीं बन गई है, उसको थोड़ा स्पेस देना होगा।

उसकी अपनी निजी ज़िन्दगी में कोई दखल नहीं देगा, मैं भी नहीं। जय का माँ और पापा के साथ तो व्यवहार बहुत अच्छा था पर माँ अगर बेटे जय से बहु मीरा की कोई बात करने लगते 

कि मीरा हमारे साथ प्यार से बात नहीं करती। तो जय उलटे माँ और पापा को ही कहता कि मुझे इन छोटी- छोटी बातों में मत उलझाओ। मीरा थक जाती है, घर में काम भी तो बहुत है।

हर हफ्ते तो बहन ससुराल से मिलने आ जाती है, मीरा को कितना काम करना पड़ता है साथ में जीजा जी छोड़ने भी आते हैं और लेने भी। मीरा तो इसी काम और बहन को कुछ देकर भेजने के चक्रव्यूह में ही उलझी रहती

है। उसकी भी तो आज़ादी में खलल पड़ता है। जय के मुंह से अपनी बेटी के लिए इतने तिरस्कार के शब्द सुनकर मोहिनी ने गुस्से का घूंट पी लिया था। जय अपनी बात कहकर कमरे में जा चुका था।

इतने में मोहिनी के मोबाइल में बेटी मीशू का फोन आया था। मोहिनी अपने फोन को देख रही थी पर जाने क्यों उठाने का मन नहीं हो रहा था। विनय भी बाज़ार से घर आ चुके थे। विनय ने आते ही कहा

मोहिनी तुम मीशू का फोन नहीं उठा रही थी उसने मुझे कहा है कि वो और दामाद जी घर आ रहे हैं। रात का खाना बना देना, मोहिनी अचानक बोलती है उसे कह दो वो इतनी जल्दी घर न आया करे।

मोहिनी ये क्या कह रही हो तुम?? अभी साल भी नही हुआ उसकी शादी को। ससुराल में मन लग कर ही लगता है ! अब मीरा भी तो, हर हफ्ते अपने मायके जाती है अपने माँ और पापा से मिलने

और कभी हमने या जय ने मना नहीं किया। जय तो खुद छोड़ कर भी आता है और लेने भी जाता है। आखिर मीरा का घर है वो, अपने बाबुल का घर छोड़ कर आई है।

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मन तो करता है न मिलने का उनसे, जय की और मीशू की शादी में कितना ही अंतर है, पहले जय की शादी हुई थी फिर दस महीने के बाद मीशू की। जैसे हम मीशू के बाबुल हैं,

उसका हक है हमसे मिलने का। वक्त के साथ उसका ससुराल में मोह बढ़ेगा तो कम हो जाएगा आना। मुझे तो लग रहा है कि मीरा ने कुछ तो नहीं कहा तुम्हें मीशू के घर आने के लिए।

अरे… वो क्यों कहेगी, वो भी तो किसी की बेटी है। वो भी तो मायके जाती है। जय भी कुछ कह नहीं सकता, वो तो हमसे और मीशू से बहुत प्यार करता है। मोहिनी खामोश रहती है। पर फिर धीरे से कहती है…

बेटियों को शायद भाई की शादी के बाद कम ही आना चाहिए। इज्जत बनी रहती है। विनय और मोहिनी बात कर ही रहे होते हैं कि जय और मीरा तैयार होकर कहते हैं‌। माँ, मैं मीरा को उसके घर छोड़ने जा रहा हूँ।

वो आज रात वहीं रहेगी मैं भी। कल साथ ही इसको लेता आऊंगा, आप का मन हो तो मीशू को बुला लेना वो भी एक दिन आपके पास रह लेगी। जय की बात मांँ को कटाक्ष लगती है। वो कुछ कहती नहीं,

पर जब मीशू घर आती है तो वो फिर उसे प्यार से बातों बातों में कहती है मीशू, देखो हमारी एक दूर की रिश्तेदार है वो अपने मायके लगभग जाती ही नहीं बहुत ही कम दो चार महीने में एक बार जाती है।

मीशू माँ के ईशारे समझ लेती है। वो बहाना बनाकर घर जल्दी चली जाती है, वो भैया भाभी घर नहीं है आपने बताया नहीं उनको मैं आ रही हूँ। मीशू के पति समझदार थे वो मीशू से कोई सवाल नहीं करते

और उसे जल्दी ही घर ले जाते हैं। आज मीशू को अपने ही बाबुल का घर बेगाना लग रहा था। रिश्ते कैसे बदल जाते हैं, देखते देखते। अपनी आँखों में नमी छुपाते हुए विनय भी सब समझ जाते हैं।

मोहिनी से कुछ कहे बिना वो भी बाहर जाने का बहाना बनाकर निकल जाते हैं। मोहिनी भी आंसुओं को रोक नहीं पाती पर खुद को संभाल लेती है। 

कामनी गुप्ता***

जम्मू!

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