रेनकोट- विनय कुमार मिश्रा

“मम्मी! मेरा रेनकोट देखा है क्या आपने?”

“पता नहीं बेटा.. वैसे भी तू तो कल रेनकोट में भी थोड़ा भीग गया था, वो फट गया है कहीं से”

“हाँ माँ फट तो गया है पर फिर भी उससे बहुत सेफ रहता हूँ। अच्छा ये रोहन कहाँ है?”

“अब समझी, वही शायद तेरा रेनकोट पहनकर तेरी स्कूटी से बाहर गया है”

मुझे बारिश के पानी से एलर्जी है और ये बात रोहन को पता है। ये भी पता है कि मैं क्लास के लिए लेट हो रहा हूँ पर उसे दोस्तों संग बाहर चाय पकोड़े खाने की पड़ी है। माँ कितनी मुश्किल से हमें पढ़ा रही है ये बात मैं जानता हूँ।काश कि रोहन में भी थोड़ी समझदारी होती। पर ना वो अच्छे मार्क्स लाता है ना अच्छे इंस्टीट्यूट में उसका एडमिशन ही हो पाया। सारी उम्मीदें घर की मुझपर ही टिकी हैं। बाकी वो तो खुद को म्यूजिक गुरु समझता है। दिनभर या तो गिटार या फिर दोस्तों संग मस्ती। किसी लायक नहीं होगा ये रोहन। छत से टपकता पानी तंगहाली में मुँह चिढ़ा रहा है। कब वो दिन आएगा जब मैं पढ़लिखकर अपने पैरों पर खड़ा हो इस घर के लिए कुछ कर सकूँ।


“टेंड टेंडन!.. भाई ये तुम्हारे लिए नया रेनकोट”

फटे हुए रेनकोट में आधा भीगा हुआ रोहन हाथों में ब्रांडेड रेनकोट पकड़े खड़ा था

“ये कहाँ से आया तेरे पास?”

“मैंने म्यूजिक ग्रुप जॉइन किया है ना! वहीं से..और फटा रेनकोट इसलिए लेकर गया था कि तुम पहन कर दुबारा भीग ना जाओ लल्लू! ये पकड़ माँ मेरी पहली कमाई”

छत से पानी टपक कर माँ के गालो पर गिर गया। रोहन उसे पोछते हुए

“तू चिंता मत कर माँ..अब छत से गरीबी नहीं टपकेगी”

मैं रेनकोट पहन क्लास के लिए निकल गया..चेहरे पर पड़ रही बारिश की बूंदे..मेरे आँसू छुपा रहे थे..!

विनय कुमार मिश्रा

 

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