बाबुल की गलियां – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

रिया की उम्र करीब पैंतालीस हो गई थी वह स्वयं दो प्यारे से बच्चों की माँ बन गई थी किन्तु अभी भी मायके की याद आते ही उसका मन विचलित हो उठता। बार-बार वह बाबूल के घर, उन गलीयों में स्कूल की यादों में खो जाती और वहां  जा कर एक बार फिर से उन्हें देखने, महसूस करने की इच्छा प्रबल हो जाती।

किन्तु अब वहाँ जाए किसके पास मम्मी-पापा तो रहे नहीं। दोनों बडे भाइयों ने अलग अलग शहरों में अपना-अपना  आशियाना बना कर अपने परिवार के साथ खुश हैं। मम्मी-पापा का इतनी मेहनत एवं प्यार से बनाया मकान किराये पर उठा दिया, वे तो बेचना ही चाहते थे किन्तु  उचित दाम न मिलने के कारण अभी रख छोड़ा था।

वह भाईयों के पास  तो जाती थी किन्तु वहां  उसे वह मायके वाला अहसास  न होता। रिश्तों में वह गर्माहट  महसूस नहीं होती। भाई-भाभी  का औपचारिक सा व्यवहार उसे कहीं भीतर तक आहत कर देता। खाना-पीना, एकाध जगह घूम आना, बाजार ले जाकर साडी दिला देना सब ऐसा लगता मानो यंत्रवत व्यवहार है।

न कभी बच्चों को लाने का आग्रह न कभी  मितेश को आने के लिए कहना।रिश्तों का ठंडापन जल्दी ही वहाँ से वापस जाने को मजबूर कर देता। वह सोचती ये मेरे वही बड़े भाई हैं जो मेरे जरा सा रो  देने पर मुझे कैसे हंसाने का प्रयास  करते थे। खेलते समय रुठ जाने पर मुझे प्यार से मना कर साथ  खिलाते थे। खाने की कोई  चीज ज्यादा मांगने  पर अपने हिस्से में से  दे देते थे। आज उनका  परिवार ही उनका अपना रह गया वह यहाँ आकर मायके आने की खुशी से सराबोर न होकर खुद को अवांछित अनुभव करती। ऐसा लगता यहाँ आकर वह इन पर बोझ बन जाती है।

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पहले जब आती थी तो मां दरवाजे पर ही खड़ी इन्तजार करतीं थीं, कैसे दौड़कर मां पापा के गले लग जाती थी, वह प्यार की उष्णता अब कहां।

एक दिन उसने अपने भाई से कहा भैया क्यों न हम एक बार कोटा चलें और अपना घर देख कर आयें। तीनों एक साथ चलेंगे तो बचपन की यादें ताजा कर आयेंगे,मन

 को संतोष मिलेगा ।

भाई बोले कैसी बच्चों जैसी बातें करती है रिया तू  भी। कहां समय है इन बातों के लिए, फिर उस घर में रखा ही क्या है। दूसरे लोग रहते हैं अच्छा लगता है क्या।

क्यों भाई हम उनसे कुछ मांग थोडे ही रहे हैं जो उन्हें बुरा लगेगा, केवल घर ही तो देखना चाहते हैं।

क्या हो जायेगा घर देख कर।

भैया सन्तोष,मन को संतोष मिलेगा वहां जाकर। मम्मी-पापा के होने का अहसास होगा ।घर के कोने-कोने  से मम्मी की एक-एक याद ताजा हो जाएगी। मम्मी की किचन में जाकर मम्मी के वहां होने की अनुभूति होगी। पापा आराम कुर्सी पर बैठे पेपर पढ़ते  दिखेंगे। हमारी बचपन की खिलखिलाहट सुनाई देगी।हम भागते दौड़ते उस घर में अपने को महसूस करेंगे। भैया हम अपने बचपन में लौट बचपन को एक पल के लिए जी लेंगे जो हमारे लिए एक टॉनिक का काम  करेगा। हमारे रिश्ते में जो ठंडापन आ गया है वह पिघल कर ऊर्जावान हो जाएगा।

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तू तो रिया बहुत ही दार्शनिकों वाली बातें कर रही है। अच्छा तेरी इच्छा है तो सोचेंगे कभी।

 फिर उसने फोन पर छोटे भाई से बात की चलने  के लिए तो उन्होंने बडी सफाई से उसे टाल दिया काम काअधिक बोझ है, बच्चे  अभी पढ रहे हैं। उनके व्यवहार से हतोत्साहित हो गई। किन्तु उसका मन तो बाबुल की गलियों और घर में घूमने  को मचल रहा था। 

घर आकर उसने अपने पति मितेश को अपनी इच्छा बताई तो वे बोले तुम्हारी इच्छा सिर-आँखों पर। इस साल बच्चों की छुट्टियां लगते ही चल पड़ेंगे मायके के टुरिस्ट स्थल पर । भाई हम भी तो अपने ससुराल की गलियां देखें और बच्चे अपने ननीहाल की।

जब वे वहाँ पहुंचे तो रिया तो जैसे स्वयं  ही बच्ची बन गई। एक-एक जगह के साथ उसकी यादें जो जुडीं थीं। मितेश और बच्चों को सब बताती अपनी यादें ताजा कर रही थी, अपना बचपन जी रही थी। जब वह घर  पहुंची तो पहले तो घर को खडी अपलक निहारती रही आंखो में  आंसू लिए। मां की परछाईं उसे दरवाजे पर दिख रही थी । काश आज मम्मी-पापा होते उनसे मिल पाती, वही दिन बापस लौट आयें ।उसे ज्यादा  भावुक होते देख मितेश ने कहा- रिया सम्हालो अपने- आपको चलो अन्दर से भी घर देख लें, कह उसने डोर बेल बजा दी। एक सज्जन व्यक्ति ने  दरवाजा खोला और उन्हें सवालिया निगाहों से  देखा। 

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अंकल ये  हमारा  है मैं इस घर की बेटी हूं। केवल एक बार घर अन्दर से देखना चाहती हूं अपने बच्चों को उनका ननिहाल का घर दिखाना चाहती हूं क्या आप अन्दर आने की अनुमति देंगे।

क्या तुम अनादि की बहन हो।

जी अंकल 

तुम इसे अन्दर आकर आराम से देखो यह तुम्हारा  ही घर है हमें क्यों आपत्ति होगी। वे उन्हे अन्दर ले गये अपनी पत्नी को बुलाया पत्नी भी बाहर आई और बोली आइए आप लोग बैठें में चाय बना कर लाती हूँ।

नहीं आंटी चाय के लिए  आप  परेशान न हों केवल हमें घर दिखा दें। 

एक एक कमरे में खडे होकर उसने अपना बचपन. किशोर वय, शादी का समय, सब कुछ एक पल में जी लिया उसकी आँखों से आंसू निरंतर बह रहे थे। बच्चों को बताती जा रही थी। घर के हर कोने में मम्मी-पापा की परछाईं उसे डोलती नजर आ रही थी ।किचन में मम्मी खडी नाश्ता बनाती दिख रहीं थी उसे ऐसा लगा शायद कुछ पल और रही तो अपना होश खो बैठेगी। वह   बहुत ही भावुक हो रोए जा रही थी।  उन लोगों ने सबको ड्राइंगरूम  में बैठा चाय नाश्ता करवाया और फिर आने की कही जब मन करे आयें आपका ही घर है संकोच न करे  कह उन्हें  विदा किया। 

बर्षों बाद आज रिया ने बाबूल की गलियों और  घर में  घूम कर मायके की गर्माहट और प्यार की उष्मा को महसूस किया था। हर क्षण उस घर में उसने मम्मी-पापा के होने का अहसास महसूस किया था जो उसके लिए यादगार पल बन गये।

शिव कुमारी शुक्ला

24-8-24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित 

साप्ताहिक शब्द****बाबुल

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