बेटा… तुम्हें यह रिश्ता पसंद है ना..? किसी भी नतीजे पर आने से पहले तुम्हारी रजामंदी जरूरी हैं.. सोहन जी ने अपनी बेटी कविता से कहा
कविता: पापा..! यूं एक दिन में कैसे जान सकती हूं किसी के बारे में..? मेरा मतलब कल ही वे लोग रिश्ता लेकर आए और आज उसके बारे में फैसला करना है… पापा, शादी की बात है कोई एक दिन का रिश्ता नहीं… ऐसे कैसे इतनी जल्दी सब सोच लूं..?
सोहन जी: मैंने तुम्हें आज के आज ही फैसला करने के लिए नहीं बोला है… तुम थोड़ा वक्त ले लो या फिर उससे एक दो बार और मिल लो… फिर मुझे बता देना…
कविता: और इन सब के बावजूद अगर उसे मैं समझ ना सकी और शादी कर लिया… फिर तो मेरे लिए ना पति का घर होगा ना बाबुल का आंगन ही… हजार लड़कियों को मैंने देखा है ऐसे…
सोहन जी: बेटा तुम कहना क्या चाहती हो..? ऐसे तो फिर कोई लड़की शादी ही ना करें… बेटा, दुनिया सिर्फ शक या फिर आगे क्या होगा..? इस पर चलने लगे तो यह दुनिया फिर आगे बढ़े ही ना… तुम्हारी मम्मी और मैंने इसी तरह ही शादी की थी.. हमने तो बस एक दूसरे की फोटो ही देखी थी… रिश्ता तो हमारे घर वालों ने तय किया था और हमने एक दूसरे का चेहरा सीधा वरमाला के समय ही देखा… तो क्या हममें नहीं बनी..?
यह तो आजकल जमाना बड़ा आधुनिक बन गया है… जहां शादी से पहले मिलना, रहना सभी आम सा है.. पर इतना करने के बाद भी शादी टिकेगी या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं…
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कविता: पापा बात तो आपकी सही है… पहले में और अब में बड़ा फर्क है… पर पापा, पहले तो लड़कियां पढ़ती लिखती भी नहीं थी.. फिर आपने मुझे इतना क्यों पढ़ाया..? फिर तो जैसे मम्मी ने शादी की थी मैं भी बस वैसे ही फोटो देखकर शादी कर लेती… पापा, मुझे अब और कुछ नहीं कहना.. मुझे समय चाहिए शादी-वादी के लिए.. मुझे इन शादी वादी से डर लगता है.. सच कहूं तो मुझे करनी ही नहीं है शादी… मैं यही ठीक हूं और खुश भी हूं..
सोहन जी और कुछ नहीं कहते, बस सोचते हैं कि किस तरह वह कविता को अपने फैसलों पर अटल रहना सीखाए और साथ में किस तरह से सही फैसला किया जाए, इस पर भी उसकी दृष्टिकोण घुमाए… हम बस समय के अनुसार चल सकते हैं… होनी को तो कौन रोक सकता है भला..? पर आगे चलकर हमारे साथ कुछ बुरा ना हो, इस चक्कर में हम अपने जीवन की गाड़ी एक ही जगह पर तो नहीं रोक सकते ना..? सोहन जी ने सोचा
अगले दिन कविता सोहन जी से कहती है… पापा, हम कुछ फ्रेंड्स फिल्म देखने जा रहे हैं… उसके बाद लंच करके ही वापस आएंगे.. पर मम्मी को पता नहीं क्या हो गया है.? कह रही है कहीं नहीं जाना.. आज छुट्टी है तो चुपचाप घर में बैठो… बाहर का जमाना कितना खराब है… कुछ उल्टा सीधा हो गया तो..? आज 1 दिन को तो काम से छुट्टी होती है… उस पर भी..?
सोहन जी: तुम्हारी मम्मी का दिमाग ही खराब हो चुका है… कुछ भी बोल रही है… रुको मैं उसे अभी बताता हूं…
कविता बड़ी खुश हो जाती है और अपनी मम्मी का इंतजार करने लग जाती है…. जब कविता की मम्मी रेनू जी आती है.. तब सोहन जी… यह क्या रेनू..? यह मैं क्या सुन रहा हूं…?
रेनू जी: जी, वह मैं तो..? इससे पहले वह अपनी बात खत्म करती सोहन जी कहते हैं… तुमने इसे कहा कि यह बाहर आज नहीं जा सकती… छुट्टी के दिन घर पर रहो..?
रेनू जी: वह हां क्योंकि..?
सोहन जी: क्या…? अब से इसकी हर दिन की छुट्टी है पर तुमने एक दिन की छुट्टी क्यों कहीं और यह हर दिन ही घर पर रहेगी.. सिर्फ आज ही क्यों.? बेटा, तेरे पापा का अच्छा कारोबार है… तुझे काम करने की क्या जरूरत..? बाहर दुनिया में जो हो रहा है उससे तो बचकर रहना ही पड़ेगा… वह तो कल तेरी बातों ने मेरी आंखें खोली, के हमें आगे का सोच कर ही हर काम करना चाहिए… वह तो भगवान का शुक्र है कि इतने दिनों तक तू बाहर जाती रही… कोई अनहोनी नहीं घटी.,, वरना होने को तो कुछ भी हो सकता था… पर अब बहुत हो गया.. अब से तू बस घर में ही रहेगी.. इससे हमें भी चैन मिलेगा और तू तो यहां खुश है ही…
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कविता हैरान होकर: पापा, मम्मी.. यह आप दोनों को अचानक हो क्या गया है..? बाहर वालों के डर से या किसी अनहोनी के डर से मैं खुद को घर में कैद कर लूं..? अपना जॉब अपनी मस्ती सब छोड़ दूं..? क्योंकि कल कुछ भी हो सकता है..? मैं आप लोगों के इस बात से हंसू या रोंऊ.? पापा, कल शादी को लेकर यह सब कहा था मैंने…. पर वह बात और यह बात बिल्कुल अलग है,,
सोहन जी: अलग कैसे हुआ बेटा..? तुम भी शादी इसलिए नहीं करना चाह रही हो कि पता नहीं आगे यह शादी चले ना चले, तो कल का सोचकर ही तो आज तुम यह फैसला कर रही हो ना..? बस हमने भी कल का ही सोच कर आज यह फैसला किया.., बेटा, अब तुम्हें समझ आ रहा होगा कि हम अनहोनी के बारे में सोचकर आज अपनी जिंदगी को कैद नहीं कर सकते… तुम उस लड़के से मिल लो.. एक बार, दो बार या कई बार फिर अपना फैसला करो.,, तुम्हें डर है अगर शादी ना चली तो तुम्हारा बाबूल का घर छूट जाएगा… पर तुमने यह सोचा क्या..?
जो शादी चल गई तो तुम्हारा एक और घर एक और परिवार बन जाएगा.. और रही बात तुम्हारे इस घर की… वह आज भी तुम्हारा है कल भी तुम्हारा रहेगा.. बेटा, सिर्फ कमाने भर से ही हमारे जिंदगी से जीवनसाथी की जरूरत खत्म नहीं हो जाती.. आज तो हम है..
पर कल तुम्हारे पास पैसा होगा पर अपनी खुशियां या दुख बांटने के लिए कोई भी साथ नहीं होगा., तब तुम्हें लगेगा कि काश तुमने हमारी बात मान ली होती.., शादी कर ली होती… बेटा, समय गुजरता चला जाता है एक वक्त पर माता-पिता हमें छोड़कर चले जाते हैं और एक वक्त पर बच्चें… पर अंत तक साथ बस जीवन साथी ही निभाता हैं.. स्वयं भगवान भी अपने जीवनसाथी के बिना अधूरे हैं तो हम तो फिर भी इंसान है…
कविता: पापा आप सही कह रहे हैं.. हम लड़कियों को पहले इतनी आजादी नहीं थी… पर जब आजादी मिली है तो हम कुछ ज्यादा ही स्वार्थी हो गए हैं.. हमें लगता है मर्द की क्या जरूरत..? कमा तो हम खुद भी रहे हैं.. पर यह शादी सिर्फ पैसों का लेनदेन नहीं होता, सहारे और शक्ति का प्रतीक भी होता है… यूं ही नहीं यह सदियों से चली आ रही है… मैं राहुल से मिलूंगी, फिर सही फैसला भी करूंगी
सोहन जी: पर बेटा मेरी एक और बात भी याद रखना… शादी में दोनों बराबर होते हैं.. कभी तुम थोड़ा झुक जाना… कभी वह झुकेगा.. इससे कोई छोटा या बड़ा नहीं होगा… पर जब हर बार तुम अकेली को ही झुकना पड़े… फिर भी सामने वाला कठोर बना हुआ है, तो उस रिश्ते को ज्यादा मत खींचना.. अपनी तरफ से पूरी कोशिश करने के बावजूद अगर तुम्हारा वजूद मिटता दिखे, तो याद रखना तुम्हारे बाबुल का आंगन था और है.. पर किसी की पैरों की जूती नहीं बना…. तुम औरत हो और उसके लिए सबसे बड़ा उसका आत्मा समान होता है.. वह अधिकार उसे भीख में नहीं बल्कि हक से मिलना चाहिए…
फिर कविता सोहन जी के गले लग जाती है…
#बाबुल
रोनिता कुंडु
धन्यवाद