बाबुल के अंगना मे नाज़ो पली , उस अंगना से इक दिन चली “
दूर कहीं बजते गाने के ये बोल नंदिनी के कानो मे पड़े तो अनायास ही उसकी आँखों से आंसुओं की धार छूट पड़ी ।
” क्या सभी लड़कियां अपने बाबुल के अंगना मे पलती बड़ी होती है ? क्या वही एक बदकिस्मत है जिसे ना बाबुल का प्यार नसीब हुआ ना ही बाबुल का अंगना ? और नाज़ वो क्या होता है उसने जाना ही नही ।” ये विचार उसके मन मे कोँधने लगा और वो बैठे बैठे अतीत मे पहुंच गई ।।
कितनी खुश थी नंदिनी जब पांच साल की गुड़िया थी उसे अभी अभी पता लगा था अस्पताल मे उसका भाई आया है । वो बुआ से मचल मचल कर भाई पास चलने की ज़िद्द कर रही थी । अस्पताल पहुंच कर मानो उसे कोई खजाना मिल गया हो उसके सामने एक छोटा सा गुड्डा सोया हुआ था।
” मम्मा ये मेरा भाई है ?” खुशी की अधिकता मे नंदिनी आँखों मे आंसू लिए माँ सुनीता से बोली।
” हाँ बेटा ये तुम्हारा भाई है और तुम इसकी बड़ी दीदी !” ऑपरेशन के दर्द को भूल माँ मुस्कुराते हुए बोली। पास खड़ी दादी और बुआ भी मुस्कुरा दी।
इस कहानी को भी पढ़ें:
चार दिन बाद नंदिनी का गुड्डा उसका भाई घर आ गया । नंदिनी की तो मानो सारी दुनिया एक कमरे मे सिमट गई । स्कूल से आते ही बस्ता फेंक वो भाई के पास पहुंच जाती , अपने भाई का पूरा ध्यान रखती नन्ही सी नंदिनी । सब कुछ कितना अच्छा चल रहा था कि एक दिन नंदिनी स्कूल से लौटी तो घर मे मातम मना था । अबोध नंदिनी को उस समय कुछ समझ नही आया पर कुछ दिन बाद नाना , मामा आये और नंदिनी , मुन्ने और माँ को अपने साथ ले गये । बाद मे उसने नाना को बात करते सुना कि पापा ने अपने ऑफिस मे काम करने वाली वीना से शादी कर ली।
नंदिनी को कुछ समझ तो नही आया पर इतना वो समझ गई थी अब उसे नाना के घर ही रहना है वो भी बिन बाबुल ( पिता ) के । धीरे धीरे नंदिनी बड़ी हो रही थी और समझदार भी । वो समझने लगी थी कि मामी को उन लोगो का यहाँ रहना पसंद नही है । कुछ चीजे ऐसी थी जो उन्हे नही मिलती थी बस मामी अपने बच्चो को देती थी । जबकि सारा दिन मम्मा काम करती रहती थी घर का और मामी आराम । नंदिनी का मन होता इसका विरोध करने का पर मम्मा उसे हर बार चुप करवा देती ।
” मम्मा आप ही क्यो सारा दिन काम करते हो और मामी तब भी आपसे गुस्से मे बोलती है नानी भी कुछ नही बोलती उन्हे !!” एक दिन नंदिनी गुस्से मे बोली।
” बेटा हमारी सहने की और नानी की चुप रहने की मजबूरी है तुम अभी छोटी हो समझ नही पाओगी ।” माँ भरे गले से बोली। उसने नानी से भी बहुत बार शिकायत की पर नानी ने हर बार उसे चुप करवा दिया ।
” मम्मा क्या जिनके पापा उन्हे छोड़ देते है उनका कोई घर नही होता ?” नंदिनी ने सवाल किया ।
” बेटा तेरे इस सवाल का जवाब मेरे पास नही है !” सुनीता ने ये बोल अपने दोनो बच्चो को अपने अंक मे भींच लिया।
वक्त के साथ नंदिनी के नाना – नानी चल बसे अब तो मामी माँ के साथ साथ नंदिनी और उसके भाई वंश को भी काफी कुछ सुनाने लगी । नंदिनी अब कॉलेज मे आ गई थी और सब बात समझने भी लगी थी । घर बाहर दोनो तरफ के ताने सह सह कर नंदिनी कठोर सी बन गई थी अब उसपर किसी के कुछ कहे का असर ना होता था।
” सुनीता नंदिनी बड़ी हो रही है उसकी शादी कर देनी चाहिए अब !” एक दिन नंदिनी के मामा ने फरमान सुना दिया।
” पर अभी तो उसकी पढ़ाई पूरी नही हुई !” सुनीता ने कहा।
इस कहानी को भी पढ़ें:
” पढ़ाई करके कौन सा कलेक्टर बनना है उसके दहेज़ के लिए पैसे नही है हमारे पास इसलिए बिन दहेज़ के रिश्ता देख रहे है !” मामी बोली।
नंदिनी अब समझ गई वक्त आ गया है उसे अपने पैरो पर खड़े होना होगा इसलिए उसने ओपन से कॉलेज शुरु किया और घर मे बिन बताये एक छोटे से स्कूल मे पढ़ाने लगी । स्कूल के बाद वो अपनी एक दोस्त के घर टूशन भी देने लगी थी साथ साथ बैंकिंग की तैयारी कर रही थी ।
दिन बीतते रहे नंदिनी ने कुछ पैसे भी जमा कर लिए थे साथ ही उसका कॉलेज भी खत्म होने वाला था। इधर उसकी मामी ने उसके लिए उससे डेढ़ गुना उम्र का लड़का या यूँ कहो आदमी देखा था जिसकी पहली बीवी कोरोना मे चल बसी थी।
” ये क्या भाभी आपको नंदिनी के लिए ऐसा ही रिश्ता मिला !” सुनीता ने दुखी हो पहली बार विरोध किया।
” सुनीता अब बिन दहेज़ कोई अमीर घराने का राजकुमार तो मिलेगा नही इसे । उसपर पिता भी नही इसके !” भाभी की जगह भाई बोला।
” मैं ये शादी नही करूंगी !” नंदिनी ने कहा।
” ज्यादा जबान चल रही है तेरी इस घर मे रहना है तो हमारी मर्जी से रहना होगा !” नंदिनी की मामी गुस्से मे चिल्लाई।
” हाँ तो नही रहेंगे हम यहां क्यो दीदी !” नंदिनी का भाई अचानक बोला।
” चुप रहो तुम बड़ो के बीच नही बोलते …भाभी ये तो बच्चे है आप शांत रहिये !” लाचार सुनीता हाथ जोड़ बोली।
” बस मम्मा अब हम नही रहेंगे यहाँ किराये का कोई घर देख लेंगे , कुछ भी कर लेंगे पर यहाँ नही रहेंगे , तुम्हे अपनी बेटी पर भरोसा तो है ना ?” नंदिनी माँ का हाथ पकड़ कर बोली और फिर उसने अपनी नौकरी की बात बता दी साथ ही ये भी कि उसने कुछ पैसे भी जोड़ लिए है । घर मे बहुत बवाल हुआ पर आखिरकार सुनीता अलग रहने को मान ही गई।
इस कहानी को भी पढ़ें:
इधर नंदिनी ने किराये का घर देखा उधर उसका बैंकिंग का रिजल्ट भी आ गया और कुछ समय बाद उसकी बैंक मे नौकरी लग गई । धीरे धीरे जिंदगी पटरी पर आने लगी पर सुनीता को अब नंदिनी की शादी की फ़िक्र होने लगी थी।
” बेटा अब समय आ गया है तुम्हे शादी कर लेनी चाहिए !” एक दिन नंदिनी माँ की गोद मे सिर रखे लेटी थी तब सुनीता बोली।
” मम्मा इतनी जल्दी क्या है ?” नंदिनी बोली ।
” बेटा सब समय से होता अच्छा लगता है !” सुनीता बोली।
” ठीक है मम्मा तो शादी के बाद भी हम साथ ही रहेंगे !” नंदिनी कुछ सोचते हुए बोली।
” ऐसा संभव नही बेटा !” सुनीता जी बोली ।
” सब संभव है मम्मा मैने तरुण से बात कर ली है इस बारे मे उसे एतराज नही !” नंदिनी बोली फिर उसने तरुण के बारे मे बताया जो उसके साथ ही नौकरी करता है और उससे शादी करना चाहता है । बाद मे ये तय हुआ कि नंदिनी शादी कर अपने ससुराल जाएगी और वही पास मे किराये का घर ले सुनीता अपने बेटे के साथ रहेगी । जब तक नंदिनी का भाई वंश अपने पैरो पर खड़ा नही होता नंदिनी अपने घर मे आर्थिक सहयोग देगी जिससे तरुण को एतराज नही था ।
आज नंदिनी दुल्हन बनी है और विवाह वेदी पर तरुण साथ फेरे लेने को तैयार है । जैसे ही पंडित जी ने कन्यादान को बुलाया नंदिनी ने देख सुनीता के साथ उसका पिता भी कन्यादान को आने लगा । नंदिनी अपनी जगह से खड़ी हो गई ।
” मेरा कन्यादान केवल मेरी माँ करेगी !” नंदिनी की ये बात सुन उसके पिता रुक गये ।
” बेटा कन्यादान माँ पिता दोनो करते है यही सोच कर मैने इन्हे यहाँ आने की इजाजत दी थी !” सुनीता बोली।
” मेरे माँ पिता दोनो आप हो कोई अजनबी आ मेरा कन्यादान करे ये मुझे मंजूर नही । मैं अपने नव जीवन की शुरुआत किसी ऐसे इंसान के आशीर्वाद से नही करूंगी जिसने सालो पहले इस रिश्ते को नकार दिया था और हमें दूसरों के रहमों करम पर छोड़ दिया था ।” नंदिनी गुस्से मे बोली । जनवासे मे खुसर पुसर मची थी कुछ नंदिनी को सही ठहरा रहे थे कुछ गलत।
इस कहानी को भी पढ़ें:
” बेटा मुझे माफ़ कर दे और ये हक मुझसे मत छीन तू बेटी का कन्यादान करना हर बाबुल की ख्वाहिश होती है !” नंदिनी के पिता हाथ जोड़ रोते हुए बोले।
” बाबुल शब्द का मतलब भी पता है आपको और कौन से फर्ज निभाए आपने जो हक की बात करने चले आये। क्या कसूर था हमारा जो हमें सब सहना पड़ा आपकी गलती की सजा भुगती है हमने। मम्मा इनसे कहिये चले जाये अगर इनसे कन्यादान करवाना इस विवाह की शर्त है तो मैं ये विवाह ही नही करूंगी !” नंदिनी नफरत से बोली ।
” नही नंदिनी ये विवाह होगा और इनके बिना होगा बहुत कुछ छीना है इन्होने तुमसे पर अब नही अब मैं हूँ तुम्हारे साथ इन्हे कोई खुशी नही छीनने दूंगा अब !” तरुण नंदिनी का साथ देते हुए बोला।
पिता के बहुत मिन्नत करने पर भी नंदिनी टस से मस नही हुई । उसकी आँखों मे नफरत देख मजबूरी मे उसके पिता को बिना कन्यादान किये लौटना पड़ा । सुनीता ने नंदिनी का कन्यादान कर विवाह की रस्म पूरी की । बाद मे सुनीता को पता लगा नंदिनी के पिता की दूसरी पत्नी और बच्चे उन्हे छोड़ कर चले गये थे और वो नंदिनी का कन्यादान करके अपने गुनाह का प्रायश्चित करना चाहते थे इसलिए उन्होंने नंदिनी के मामा से उनका पता लिया था। पर सच तो ये है कुछ गुनाहो का प्रायश्चित नही होता । बिन पिता और पति के जो उन लोगो ने जीवन गुजारा है उसके लिए नंदिनी कभी अपने पिता को माफ़ नही कर सकती और ये सही भी है ।
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल
#बाबुल