बाबुल – वीणा सिंह   : Moral Stories in Hindi

दो बहनों और एक भाई के बाद मेरा जनम हुआ था… जनम के दो महीने बाद हीं मां की मृत्यु हो गई… पापा और दादी ने कैसे मुझे पाला… थोड़ा समझदार होने पर जब दादी बताती तो आश्चर्य होता.. प्यार से मेरा नाम रखा निधि….. अपने पांचों बच्चों में पापा सबसे ज्यादा मुझे प्यार करते थे.. बाद में समझ में आया मां की कमी पूरा करने का प्रयास कर रहे था.. मेरा स्कूल में एडमिशन हुआ उस समय निभा दीदी प्लस टू कर चुकी थी

और नीमा दी प्लस टू में थी, नमन भैया पीएमसीएच में एडमिशन लिए थे… कभी पापा कभी दादी मुझे अपने हाथों से खाना खिलाते, चोटी करते.…मेरी छोटी सी तकलीफ पर पापा चिंतित और दुखी हो जाते.. एक बार मिजिल्स निकल जाने पर एक सप्ताह बैंक नही गए… दिन रात मेरे साथ रहते… कहानी सुनाते चुटकुले सुनाते… कभी मां की बात करती तो कहते मैं हीं तुम्हारा पापा हूं और मां भी… दादी थोडा दुखी रहती…

बेटा इसी उमर में विधुर होने का कष्ट भोग रहा है… इसी बेटी के जनम के बाद ऐसा हुआ था.. पर पापा के डर से कुछ नही बोलती…. दादी मेरा लंच बॉक्स पैक करती तो पापा खोल के देखते.. एक छोटे से डब्बे में कभी सेव तो कभी इलाहाबादी अमरूद कभी ड्राई फ्रूट्स तो कभी अनार छिल कर डाल देते… बेटा इसे जरूर खाना…

                   वक्त गुजर रहा था….. मैं पढ़ने में मेघावी थी… मैं टेंथ में पहुंच चुकी थी… अक्सर मैं पढ़ाई करते रहती तो पापा रात में मेरे रूम में बैठ कर पेपर वर्क करते और मुझे कुछ कुछ मुंह में खिलाते रहते…. बचपन से अब तक मेरे यूनिफॉर्म आयरन करने की ड्यूटी उनकी हीं .. मेरी फ्रेंड्स बताती जानती है निधि तेरे पापा इस दुनिया के इंसान नही हैं…

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जैसे तुम्हारे जनम के बाद तेरी मां नही रही वैसे हमारे यहां कई लड़कियां हैं जिनके साथ ऐसा हुआ है उनके घरवाले उसे मनहूस अपशकुनी कहते हैं और उनके पिता ने दूसरी शादियां भी कर ली है…

             प्लस टू में मैं पूरे जिले में टॉप की…. पापा पूरे मुहल्ले में मिठाइयां बांटी… कांवर लेकर नंगे पांव देवघर गए बाबा बैद्यनाथ को जल चढ़ाने सावन में…

             हमेशा कहते तू अपने #बाबुल# की आन बान और शान है…

         वक्त गुजरता गया और मैं ग्रेजुएशन कर चुकी थी… भैया विदेश चले गए थे.. दोनो बहनों की शादी हो चुकी थी…. दादी बहुत बूढ़ी हो चुकी थी… चलने फिरने में जब असमर्थ हो गई तो छोटे चाचा चाची उन्हे अपने पास ले गए.…

                    मुझे यूपीएससी परीक्षा निकालना था… पापा वैसे तो मुझे फ्री छोड़ दिए थे मैं जो कैरियर चुनूं… पर जब उन्हे पता चला यूपीएससी की तैयारी करने के लिए मैं दिल्ली जाना चाहती हूं तो बहुत खुश हुए…. पापा की नौकरी एक साल और बची थी… पहली बार दिल्ली जा रही थी.. मन घबरा रहा था.. पापा दस दिन की छुट्टी लेकर साथ गए… पीजी खोजे… कोचिंग में एडमिशन करवाया, जरूरत के समान खरीद कर दस दिन बाद वापस आ गए…

                रोज दिन में दो तीन बार फोन करते… पापा अब अकेले हो गए थे… कमला आंटी घर की साफ सफाई और खाना बना देती थी..

                 तीन महीने तो पढ़ाई में खूब मन लगा फिर धीरे धीरे दोस्त बनने लगे… जेएनयू का एक ग्रुप था जिसमें मेरी एंट्री मेरी एक दोस्त रमा ने करवा दिया… फिर में फैशन के नए नए तरीके सीखने लगी… लड़के मेरे दोस्त बन गए.. छोटे से कस्बे की लड़की महानगर की संस्कृति में ढलने लगी.. छः महीने बीतते बीतते गांजा सिगरेट और शराब सब शुरू कर दिया…. कई छात्र नेता भी हमारे ग्रुप में थे..

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साउथ दिल्ली के एक नेता से मेरी नजदीकी बढ़ने लगी… और फिर मैं कुछ महीनो बाद लिव इन रिलेशनशिप में उसके साथ रहने लगी… पीजी कब का छोड़ चुकी थी… पापा फोन करते तो पढ़ाई की बातें करती और कहती बहुत लोड है पढ़ाई का अभी… पापा आने वाले थे मुझसे मिलने, मैने कहा अभी मत आइए एग्जाम नजदीक है…मैं एग्जाम बाद खुद हीं आ जाऊंगी… मैं भी आपसे मिलना चाहती हूं… बहुत दिन हो गया…

                          एग्जाम हो गया.. ये मेरा तीसरा अटेम्प्ट था… इस बार भी मेरा पीटी नही निकला.. पापा बहुत दुःखी हो गए…. शरद जिसके साथ मैं लिव इन में रहती थी पहले बोलता था शादी करेंगे पर अब रिश्ते में भी ठंडापन आ गया था… उसका मन मुझ से भर गया था..फिर भी मैं अपने तरफ से रिश्ता चलाने की पूरी कोशिश कर रही थी..

एक सप्ताह के लिए मैं घर गई… पापा बहुत कमजोर हो गए थे.. मैने शरद के साथ शादी की बात की पापा से… पापा बोले क्या करता है मैने कहा छात्र नेता है… बोले इसका भविष्य क्या है..

तुम घर रहकर और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करो.. उस लड़के से रिश्ता खतम करो… पर मुझे नशे की लत लग गई थी… मैं अगले दिन हीं वापस दिल्ली चली गई….. पापा को उसी रात दिल का दौरा पड़ा और चल बसे… अपना दर्द अपने अंदर समेटे… क्योंकि उनकी जीवन निधि उनकी बेटी निधि हीं थी….कमला आंटी ने मेरी दोनो बहनों को बताया निधि आई थी पता नही क्या बात की…

उसके जाने के बाद से हीं साहेब बेचैन और परेशान थे…

                    भईया का इंतजार हो रहा था अंतिम संस्कार के लिए.…मैं गई पर सबकी नजरों में अपने #बाबुल #की कातिल थी मैं… और घर में इतने सारे लोग थे मैं नशा कैसे करती इसलिए अगले दिन वापस चली गई.. बारहवीं तक रुकना नामुमकिन था…

                      दो साल बीत गए…. शरद ने दूसरी लड़की से शादी कर ली है… मैं एक दिन होश आने पर नशा मुक्ति केंद्र में खुद को पाया… 

Veena siingh 

भईया और दोनो बहनों ने रिश्ता खतम कर लिया है..और अब मैं मर जाना चाहती हूं…मैं अपने #बाबुल #की गुनहगार हूं… इस अपराध बोध से मुक्ति मुझे मरने के बाद हीं मिलेगा… यहां के सभी स्टाफ बहुत अच्छे हैं… सकारात्मक सोच को बढ़ावा देते हैं… शायद मैं भी नशा छोड़ फिर से अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करूं….. पर मेरे #बाबुल #अब शायद अगले जनम में हीं मुझे मिले…..

                   

#स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #

Veena singh

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