चलिये तो आज आपको हम अपनी गृह सहायिका जी से मिलवाते हैं।
तो ये हैं हमारी सीमा रानी,,,,अब मन तो कर रहा है,कहें,,टन,,,टना,,,ना,,,पर थोड़ी सी शरम भी आ रही है,कहीं आप ये न सोचने लगें कि परिचय कराते हुए खुशी टपकी ही जा रहा है।
इन से हमारा रिश्ता कुछ खट्टा कुछ मीठा सा है।अब आप सोचेंगे ऐसा कैसे ????
चलो ,बता ही देते हैं,,,वो ऐसे कि हम तो चाहते हैं कि वो रोज हमारे पास आयें और वो तब ही दर्शन देतीं हैं जब उनकी मर्जी हो,,,बड़े नखरे के साथ ।
पर हम भी कम नहीं हैं,,मुँह फुला कर पूरी नाराजगी जता देते हैं और वो अपनी प्यारी बातों से रोज आने का वादा कर के हमारे सारे गिले-शिकवे दूर कर देती है।
और हम इतने भोले हैं न कि तुरंत उनकी बातों में आ जाते हैं,,,वैसे आप के कान में एक बात बतायें,,,,,,इतने भोले भी नहीं है हम,पर उनका जादू ही कुछ ऐसा है।
वैसे अगर एक बार वो आ गई तो “न”शब्द उनकी डिक्शनरी में है ही नहीं ।कैसा भी काम हो वो पूरी लगन के साथ करती हैं फिर न उन्हें समय की परिवार होती है और न ही थकान की।
जब भी मुझे सचमुच उनकी मदद की जरूरत होती है तो पता नहीं उन्हें कैसे आभास हो जाता है और ‘ चिराग के जिन्न ‘ की तरह वो तुरंत हाजिर हो जाती है,,,वैसे फोन से वो समुचित दूरी ही बनाये रखतीं हैं
पर
वादे की बड़ी ही पक्की हैं,एक बार मुझे कथा करवाने दूर मन्दिर जाना था तो सीमा रानी सुबह साढ़े 3बजे नहा धोकर मदद के लिए हाजिर अब तो आप समझ ही गये होंगे कि कि हम उन्हें प्यार से रानी क्यों कहते हैं।
एक बार घर में कोई प्रोग्राम था,मेहमान आने वाले थे।अचानक ही विचार आया कि क्यों न उन्हें देने के लिए कोई गिफ्ट मंगा लें।पर यह जब सोचा तो शाम गहराने लगी थी और हल्की-हल्की बूंदाबांदी भी शुरु हो गई।जाना जरूरी पर हिम्मत काम नहीं दे रही थी इतने में ही सीमा प्रकट हुई और मेरी जान में जान आई।तुरंत वो गई और काम कर के ही लौटीं।
मेरे पैर में मोच आने पर तो उन्होनें अपने ग्रुप के साथ अयोध्या जाने का प्रोग्राम ही कैन्सिल कर दिया।
सबसे कह दिया,”अगर मैडम ठीक हो जाएंगी तो ही जाऊँगी वरना नहीं।”
चोट ज्यादा थी बिल्कुल पैर जमीन पर नहीं रख पा रही थी मैं।वो दिन में 3बार आती सारा काम करती,बिस्तर पर ही खाना देती।एलोवीरा तवे पर गरम कर के नमक हल्दी से सिकाई करती,साथ में कहती भी जाती,”मैं आपको बहुत जल्दी ठीक कर लूंगी,फिर अयोध्या जाऊँगी और हाँ शाम को फिर प्याज बेसन की पुल्टिश बाँधने आऊंगी।”
मैं लाख कहती कि मैं दवाई ले रही हूँ पर वो बावरी कहाँ सुनने वाली है मेरी।मैं भी आज्ञाकारी शिष्य की भांति उसकी बात मान लेती और सचमुच उसकी मेहनत से मैं बहुत जल्दी ठीक हो गई।
अब आप ही बताइए ‘ ये रिश्ता क्या कहलाता है।’
कमलेश राणा
ग्वालियर