सुमन का फोन फिर से आया तो रागिनी को मन मार कर उठाना पड़ा था वो…
“हां दीदी!मिल गई आपकी राखी”,फोन उठाते ही वो बोली।
“और भाभी ठीक हैं आप सब?बहुत चिंता हो रही थी मुझे जब आपने दो तीन बार न फोन उठाया न कॉल बैक
की।”
“व्यस्त थी जरा,घर में मेहमान आए हुए हैं”,उसने झूठ बोल दिया ननद से अपनी।
“सॉरी भाभी!रखती हूं,बस आप सबकी कुशल जानना चाहती थी।”
रागिनी ने झट फोन रखा और चैन की सांस ली।
उसके पति उमेश ने पूछा,”किसका फोन था?”
“रॉन्ग नंबर था कोई…” कहते हुए उसने बहाना बनाया,उमेश की तीन तीन बहने थीं और जानती थी रागिनी कि
एक बार इनका बहन प्रेम जाग गया ,ये पूरा महीना बेकार चला जाएगा…।
उमेश एक मध्यमवर्गीय परिवार का होनहार लड़का था,तीन बहनों में सबसे छोटा,मां बाप की बचपन में ही
मृत्यु हो गई थी तो तीनों बहनों ने ही मां बनकर उसे पाला था,एक एक बहन की शादी होती गईं और उसके
बाद उमेश ऑफिसर बन गया।
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बहनें अपने भाई पर जान छिड़कती थीं,रातों रात भाई और उनके जीवन स्तर में बहुत अंतर आ गया था
लेकिन उमेश का मानना था,उसको उसकी बहनों ने ही बनाया है और वो उनका ऋणी हमेशा रहेगा,बस ये ही
बात उसकी पत्नी रागिनी के गले नहीं उतरती थी।बेवजह वो तीनों से चिढ़ने लगी थी।
उसके बच्चे भी बुआओ की जरा इज्जत न करते,यहां तक की तीनों बुआ के नाम उन्होंने बुखार,खांसी और
जुकाम रख रखे थे।
अपने पिता के पीछे,वो अपनी मां रागिनी के साथ उनकी अक्सर मजाक उड़ाते।आज भी उनकी बड़ी बेटी
वान्या हंसते हुए मां से बोली,”खांसी का फोन आया था अभी?”
उसका भाई वीनू हंसा,”नहीं बुखार का था।”
“चुप..” मां ने इशारा किया, “तुम्हारे पापा सुन लेंगे तो बबाल हो जाएगा।”
रागिनी भूल रही थी कि वो खुद भी किसी की बहन है,अगर उसका भाई शेखर भी उससे यही व्यवहार करे तो
उसे कैसा लगेगा?
उमेश जब भी अपनी किसी बहन को बुलाने की बात करता,रागिनी बहाना बना कर टाल देती,उसे वो तीनों
हमेशा बोझ ही लगतीं।
इस बार,रक्षा बंधन पर वो अपने मायके गई थी अपने भाई शेखर को राखी बांधने,उसे पता था कि भाई के घर
खाली हाथ नहीं जाना है,बहने भाई को तभी बोझ लगती हैं जब वो उनसे कुछ लेने की उम्मीद रखती हैं।
अपनी सामर्थ्य से ज्यादा फल,मिठाई,उपहार ले कर है थी वो।
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जितनी ठसक से आई थी,उतनी ही निराश हुई इस बार वो।उसकी भाभी रीता बड़े घर की बेटी थी। उसकी
पहली राखी थी ये। उसके दोनो भाई वहां पहले ही पहुंचे हुए थे।वो अपनी बहन के लिए जो बड़े,मंहगे
तोहफे,आभूषण लाए थे,उन्हें देखकर रागिनी की आंखें चुंधिया गई।उसने अपने उपहारों को एक कोने में
छुपा लिया।
उसके बच्चे फुसफुसाके बोले अपनी मां से…क्या हुआ मां?लगता है रीता मामी के लिए आप बुखार नहीं
टाइफाइड हो…कहकर वो दोनो हंसने लगे।
रागिनी ने गुस्से से खींच कर तमाचा मारा अपनी बेटी वान्या को।
उसकी भाभी दौड़ी चली आई..”क्या हुआ दीदी..क्यों मारा आपने इस बेचारी को?”
“जिद करती है हर बात पर,इसे तमीज नहीं है..” बात बदलती वो बोली।
“चलिए!राखी बांधते हैं,आपके भैया इंतजार कर रहे हैं,मेरे भाइयों को भी जल्दी निकलना है फिर…ले आइए
थाली सजाकर आप भी।”
सहजता से कही गई अपनी भाभी की बात भी रागिनी को ताना ही लगी और बड़ी मुश्किल से वो अपना
सामान लगाकर भाई को राखी बांधने लगी।
सारे वक्त ,उसे कमतरी का एहसास खाए जाता रहा जबकि उसके भैया,भाभी और उनके भाई बिल्कुल
सामान्य थे।
उसके भाई शेखर ने उसे यथासंभव नेग और उपहार देकर विदा किया लेकिन इस बार रागिनी का मन बहुत
विचलित था।उसे रह रह कर खुद की ओछी सोच पर शर्म आ रही थी।
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उसे पहली बार एहसास हुआ,भाई बहन के प्यारे रिश्ते को रुपए पैसे के तराजू में नहीं तौलना चाहिए,न कोई
बहन भाई पर बोझ होती,सबके जीवन स्तर में फर्क हो सकता है पर बात तो भावनाओं की है।आज तक वो
खुद को बहुत अमीर समझती थी पर उसकी भाभी के भाइयों ने ये दर्शा दिया था कि वो उससे भी ऊपर हैं।तो
जैसे वो अपनी गरीब ननदों को अपने पति और खुद पर बोझ समझती थी,उसे भी तो उसकी भाभी बोझ
समझ सकती है।
फिर सबसे बड़ी बात,वो अपने बच्चों को क्या शिक्षा दे रही है,आज वो उनकी बुआ को बुखार,खांसी कह कर
बुलाती है,कल को उसका बेटा,उसकी बेटी को इन उपनामों से बुलाएगा तो…सहन कर पाएगी वो?
इस बार,घर लौटते ही रागिनी पूरी तरह बदल गई थी।जाते ही उसने बड़ी ननद रेखा को। फोन किया…और
जीजी!आ नहीं रहीं इस बार,सुमन और कंचन दी को भी लेती आइए साथ,आप सबकी राखी तो आ गई हैं
पर जो मजा साथ में त्यौहार मनाने में है वो दूर दूर कहां?
पास से निकलते उमेश को आश्चर्य हुआ,आज सूरज पश्चिम से निकला है क्या?
समाप्त
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
#बहन