सुरेखा जी और गोपाल जी अपने बुढ़ापे को अंधकार में देखते हुए आपस में बातचीत कर रहे थे कि क्या कमी रह गई थी उनकी परवरिश में जो उनके बेटे अंकित ने इस उम्र में उनको यह दिन दिखाया।
काजल, पूजा और अंकित के पिता गोपाल जी सरकारी स्कूल में अध्यापक थे और उनकी मां सुरेखा जी एक कुशल गृहणी थी। उन दोनों ने अपने तीनों बच्चों को बहुत अच्छे संस्कार दिए थे। अब उनकी लड़कियों पढ़ लिखकर शादी लायक हो गई थी तो उन्होंने अपनी नौकरी के सेवा काल में ही अपनी दोनों बेटियों के लिए अच्छा लड़का देखकर उनकी शादी कर दी। वे दोनों अक्सर अपने सुखद बुढ़ापे की कामना करते हुए सोचा करते थे कि उनका बेटा अंकित भी जल्द ही अपनी पढ़ाई पूरी कर अपने पैरों पर खड़ा हो जाए और वह उसका भी अच्छी लड़की देखकर घर बसा दें तो उन्हें भी उनकी जिम्मेदारियां से आजादी मिले।
लेकिन वो कहते हैं ना कि गलत संगत का असर बहुत जल्दी होता है, ऐसा ही अंकित के साथ भी हुआ। अंकित की दोस्ती तुषार नाम के एक बहुत ही बिगड़े हुए लड़के से हो गई। तुषार को शराब का नशा करने की बहुत बुरी लत थी और साथ ही वह जुआ भी खेलता था। अंकित भी कहां ज्यादा दिन इन आदतों से दूर रह पाया और समय ने ऐसी करवट ली कि अंकित ने भी तुषार के साथ शराब पीनी और जुआ खेलना शुरू कर दिया, जिसकी वजह से कुछ ही समय में उस पर बहुत लोगों का कर्ज चढ़ गया।
सुरेखा जी और गोपाल जी अपने बेटे की पीने की आदत से तो परेशान थे पर उन्हें उसकी जुआ खेलने की बात का नहीं पता था। वें दोनों अक्सर अंकित को उसकी संगत बदलने के लिए समझाते, तो अंकित उनसे ऊंची आवाज में बात करता और उन्हें घर छोड़कर जाने की धमकी देने लगता था। बेटे के मोह में आकर सुरेखा जी गोपाल जी को चुप करा देती।
हद तो तब हो गई जब कर्जदार अंकित के दरवाजे तक आ पहुंचे, जिन लोगों से अंकित ने जुआ खेलने के लिए कर्ज करा था आखिरकार वह उसके घर तक पहुंच गए और पैसा वापस न करने पर अंकित को जेल कराने की धमकी देने लगे। मामले की गंभीरता को देखते हुए गोपाल जी ने कर्जदारों से बात करके कुछ समय की मोहलत मांगी। कर्जदारों ने भी गोपाल जी का सम्मान करते हुए उनकी बात मान ली और उनको एक महीने का समय दिया।
सुरेखा जी परेशान होते हुए गोपाल जी से कहने लगी “कि हमारे तो कर्म ही फूट गए जो ऐसी संतान को जन्म दिया”। गोपाल जी उनको समझते हुए बोले यह समय समझदारी से काम लेने का है। उन्होंने अपनी कुछ जमा पूंजी से और कुछ और पैसों का इंतजाम करके पहले तो कर्जदारों से मुक्ति पाई और फिर सोचने लगे कि अब अपने बेटे को सही राह पर कैसे लाएं।
सांची शर्मा
हरिद्वार
स्वरचित एवं अप्रकाशित