यह बंधन है प्यार का – श्वेता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

“अरे वाह! आज तो लगता है,कोई बहुत खुश है | तभी तो गजलें गुनगुनाई जा रही है| ऑफिस से आकर सनी को गजलें गुनगुनाते देख मीनल ने हंसते हुए कहा|

“हाँ, मीनल पता है मेरा प्रमोशन हो गया है| सैलरी भी डबल हो गई है| आज ही गणतंत्र दिवस के फंक्शन में चेयरमैन सर ने अनाउंस किया है|”

“वाह! इस बार का गणतंत्र दिवस तो हमारे जीवन में ढेरों खुशियाँ लेकर आया है| इसी खुशी में चाय के साथ गरमा-गरम पकोड़े हो जाए| मैं अभी बनाकर लाती हूँ|” मीनल ने खुश होते हुए कहा|

“मीनल,अब मुझे लगता है कि मैं छुटकी की ख्वाहिश अवश्य पूरी कर पाऊँगा| सनी की आँखें खुशी से चमक रही थी|”

“जी बिल्कुल| आपकी़ बढी हुई सैलरी को सेव कर हम छुटकी की ख्वाहिश जरूर पूरा करेंगे|

आखिर छुटकी के अलावा हमारा है ही कौन?” सनी को हौसला देते हुए मीनल ने कहा|

अब सनी जी जान से अपने काम में लग गया| लेकिन तभी देश में कोरोना का कहर फैला और इस कहर ने सनी की खुशियाँ लील ली| मार्च के खत्म होते-होते पूरे देश में लॉकडाउन लग गया| स्कूल, कॉलेज,ऑफिस, दुकानें सभी बंद कर दिए गए| काम धंधे ठप हो गए| अर्थव्यवस्था पटरी से उतर गई| लोगों की नौकरियाँ जाने लगी| सनी की नौकरी भी जाती रही| बढ़ते खर्चों का हवाला देकर कंपनी ने उसे नौकरी से निकाल दिया|

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ऑनलाइन ट्यूशन करके और अपनी शेविंग से वह जैसे-तैसे अपना घर चला पा रहा था| इसी तरह तीन-चार महीने बीत गए| सनी की लगभग सारी जमा-पूँजी खत्म होने आ रही थी| इसकारण जो रकम उसने छुटकी की ख्वाहिश के लिए बचा कर रखी थी| वह उसे निकालनी पड़ी थी इतना बेबस और लाचार तो उसने खुद को कभी भी महसूस नहीं किया था| तब भी नहीं,जब अचानक उसके माता-पिता उन दोनों भाई-बहन को अकेला छोड़ इस संसार से चले गए थे| जब छुटकी क्लास नाइन में और सनी अपने ग्रेजुएशन के फाइनल ईयर में था,

तभी एक रोड एक्सीडेंट में उसके माता-पिता की मौत हो गई थी| तब सनी ने ना सिर्फ ट्यूशन कर अपनी ग्रेजुएशन पूरी की बल्कि छुटकी को भी बड़े प्यार से संभाला, पढ़ाया-लिखाया और अभी आठ महीने पहले ही तो उसने छुटकी की शादी भी खूब धूमधाम से की थी| जब वह शादी के लिए गहने खरीद रहे थे तभी छुटकी को एक गोल्ड ब्रेसलेट बहुत पसंद आया था लेकिन उस वक्त शादी के खर्चों के कारण ब्रेसलेट खरीद पाना उसके लिए संभव नहीं था| तभी उसने छुटकी से वादा किया था कि वह उसे राखी पर यही ब्रेसलेट गिफ्ट करेगा|

तब छुटकी ने उसे मना भी किया था कि “भैया, मुझे यह ब्रेसलेट नहीं चाहिए|” लेकिन उस ब्रेसलेट को हाथ में लेते ही उसकी प्यारी छुटकी की आंखों में जो चमक उभरी थी| वह उस से छिपी नहीं थी और उसने मन ही मन में सोच लिया था कि छुटकी की यह ख्वाहिश वह जरूर पूरी करेगा|

लेकिन इस कोरोना की मार ने तो उसकी कमर ही तोड़ दी थी| कहाँ तो वह छुटकी को गोल्ड ब्रेसलेट देने की सोच रहा था और कहाँ अब उसकी एक अच्छी साड़ी देने की हैसियत भी नहीं रह गई थी| अपनी इस बेबसी पर वह रो पड़ा|

तभी उसे खोजते हुए मीनल कमरे में आई| अरे! अंधेरे में क्या कर रहे हो? लाइट जलाते हुए मीनल ने पूछा|

“सनी, तुम रो रहे थे?”

“तो और क्या करूँ? अपनी नाकामी पर आंसू बहाने के अलावा मैं और कर भी क्या सकता हूँ | बीस दिन बाद राखी है| गोल्ड ब्रेसलेट तो छोड़ो, एक ढंग की साड़ी देने की भी औकात नहीं है मेरी| शादी के बाद पहली राखी है छुटकी कि ऐसे खाली हाथ कैसे चल जाऊँ?” सनी फट पड़ा|

“क्यों जाओगे खाली हाथ?” एक पोटली उसके हाथ में देते हुए मीनल बोली|

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“यह क्या है?” सनी ने चौंकते हुए पूछा|

“मेरे गहने|” इन गहनों को बैंक में गिरवी रखकर गोल्ड लोन ले लो और उससे छुटकी के लिए गोल्ड ब्रेसलेट,’सिंपल’| मीनल ने मुस्कुराते हुए कहा|

“पर, मैं तुम्हारे गहने कैसे ले सकता हूँ?” पहली बात हमारे रिश्ते में कोई तेरा या मेरा नहीं है| सब हमारा है और दूजी बात छुटकी सिर्फ तुम्हारी बहन ही नहीं मेरी भी प्यारी ननद है| अब समय मत बर्बाद करो और गोल्ड लोन के लिए अप्लाई कर दो|” मीनल ने सनी के आँसू पोंछते हुए कहा|

आखिरकार सनी ने छुटकी के लिए गोल्ड ब्रेसलेट ले ही लिया| जब राखी वाले दिन सनी ने छुटकी की कलाई में गोल्ड ब्रेसलेट पहनाया तो वह रो पड़ी “भैया आप जिन मुश्किल हालात से गुजर रहे हैं, उसमें आपने यह सोच भी कैसे लिया कि आपकी बहन यह ब्रेसलेट लेकर खुश हो जाऊँगी| मैं इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती हूँ? मेरी असली ख्वाहिश यह ब्रेसलेट नहीं आप सब की खुशी है| आप सब सदा खुश रहें, हर मुसीबत से दूर रहें| यही मेरी ख्वाहिश है| मुझे यह गोल्ड ब्रेसलेट नहीं आपके और भाभी का प्यार-दुलार और आशीर्वाद चाहिए| यही मेरी सबसे बड़ी दौलत है|”अपनी भाभी की सुनी कलाई को गोल्ड ब्रेसलेट से सजाते हुए छुटकी बोल पड़ी|

लेखिका – श्वेता अग्रवाल

साप्ताहिक शब्द- #बहन

शीर्षक- यह बंधन है प्यार का

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