“बेटा बहुत वक़्त हो गया तुझे यहां आए हुए कुछ दिन के लिए आजा!” सावित्री जी अपनी बेटी पायल से फोन पर बोली।
” पर मां मैं कैसे यहां के हालात तो तुम जानती हो पापाजी की हालत ऐसी नहीं कि उन्हें अकेले छोड़ा जाए!” पायल ने अपनी मजबूरी बताई।
” बेटा पूरा एक साल हो गया यही सुनते सुनते ना किसी तीज त्योहार पर आईं ना ही कभी वैसे मिलने आई क्या हम सबकी याद नहीं आती तुझे!” सावित्री जी भावुक होते हुए बोली।
” मां कौन कहता है याद नहीं आती आप मेरी मां हो मेरे सबसे करीब पर मेरी मजबूरी भी तो समझो ना। पापाजी की बीमारी ऐसी है कि उन्हें हर वक़्त सहारे की जरूरत है। रितेश( पायल के पति) जॉब पर चले जाते हैं तो उनकी देखभाल मुझे ही करनी होती है!” पायल मां को समझाती हुई बोली।
” अरे तो ससुर की जिम्मेदारी सारी तेरी है क्या तू अपने दोनो बच्चों को ले इधर आजा और कुछ दिन उनकी जिम्मेदारी अपनी ननदों को सौंप दे एक शहर में रहते हो तुम सब इतना तो कर ही सकती हैं वो!” सावित्री जी ने समझाया।
” ठीक है मां मैं बात करती हूं दीदी से !” पायल ने मां की ज़िद्द के आगे झुकते हुए कहा।
पायल रितेश की पत्नी और दो छोटे बच्चों की मां । ससुराल में सास तो थी नहीं बस ससुर थे जिन्होंने पायल को हमेशा बेटी सा मान दिया और पायल ने भी उन्हें ससुर नहीं पिता का दर्जा दिया। पिछले साल अचानक उन्हें लकवा मार गया और शरीर का सीधा हिस्सा पूरा प्रभावित हो गया। अब वो बिन सहारे उठ बैठ भी नहीं पाते थे। आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि उनके काम करवाने को किसी सहायक को रखा जाए और पति रितेश की अपनी नौकरी। तो पायल ने सारी जिम्मेदारी खुशी खुशी उठा ली। सुबह रितेश नहलवा जाते थे बाकी सारा दिन पायल ही उनके खाने – पीने से ले सूसू – पॉटी तक का देखती थी। इसी कारण वो एक साल से पीहर भी नहीं गई थी अपने। अब मां की ज़िद्द के कारण दो दिन के लिए ननद को छोड़ वो अपने मायके पहुंची।
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” कितनी कमजोर हो गई मेरी बेटी !” सावित्री जी उसे गले लगाते हुए बोली।
” अरे कहां मां वैसी ही तो हूं!” पायल हंसते हुए बोली।
मां ने उसकी पसंद का बहुत कुछ बनाया था। बच्चे भी नानी – नाना और मामा की लाड़ में बहुत खुश थे। पायल बीच बीच में ननद से फोन पर ससुर का हाल चाल पूछती रही।
” बेटा दो दिन को तो आई है तब भी घड़ी घड़ी फोन में लगी है!” सावित्री जी ने टोका।
” मां पापा जी की दवाई उनके खाने पीने सबका ध्यान भी तो रखना है!” पायल बोली।
” वहां उनकी बेटी है ना वो सब देख लेगी तू यहां हम लोगों के साथ रह मन से भी तन से भी!” सावित्री जी बोली।
” अच्छा ठीक है रख दिया फोन अब खुश!” पायल मां के गले लगती हुई बोली।
पूरा दिन बच्चों की मस्ती और मां बाप के साथ बातों में बीत गया। रात को पायल जल्दी ही सो गई मायके का सुखद एहसास था या थोड़ा वक़्त सुकून का मिला था वजह जो हो पायल प्यारी सी नींद सोई थी। तभी उसका फोन बजा।
” अरे इतनी रात को किसका फोन है!” पायल गहरी नींद में होने के कारण हड़बड़ा कर उठी। तो रितेश का फोन था।
” पायल माफ़ करना तुम्हे इतनी रात को परेशान कर रहा हूं। पर पापा को अस्पताल में लाया हूं सोचा तुम्हे भी बता दूं!” रितेश घबराई आवाज़ में बोला।
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” क्या… ऐसा क्या हुआ पापाजी को सुबह तो मैं ठीक छोड़ के आई थी फिर अब एक दिन में ऐसा क्या हुआ?” पायल चिंतित हो बोली।
” वो …पायल मैं दिन भर का थका था तो सो गया रात में पापा को प्यास लगी होगी दीदी भी गहरी नींद में थी तो सुना नहीं पापा खुद उठने की कोशिश करने लगे तो बेड से गिर गए और बेहोश हो गए सिर में चोट आईं है उनके काफी!” रितेश शर्मिंदगी से बोला।
” रितेश एक दिन नहीं संभाल सके तुम लोग उन्हें?” पायल रोते हुए बोली।
” पायल तुम हर काम उनका अपने सर लिए थी तो हमे आदत ही नहीं रात को उठने की तुम जाने कैसे उनकी एक आवाज में उठ जाती थी!” रितेश बोला।
” मैं आ रही हूं अभी!” पायल बोली।
” नहीं पायल वो अब ठीक हैं डॉक्टर अपना काम कर रहे हैं तुम रात को परेशान मत हो सुबह आ जाना भले!” रितेश ने समझाया।
“नहीं रितेश मैं आ रही हूं!” पायल ने ये बोल फोन काट दिया। और अपने भाई को ले अस्पताल के लिए निकल गई।
वहां अस्पताल में पहुंच कर उसने देखा पापाजी को होश आ गया था। ननदें और रितेश भी वहीं थे। कुछ देर बाद ननदें तो घर चली गई अपने। पायल और रितेश ने उनकी खूब सेवा की जिससे कुछ दिनों में उन्हें छुट्टी मिल गई।
” अरे बेटा क्या हाल बना रखा है तुमने अपना। समधिजी की जिम्मेदारी खाली तुम्हारी तो नहीं दो बेटियां हैं उनकी वो भी तो सेवा कर सकती हैं इनकी। तुमको तो उस दिन भी दो दिन नहीं रुकने दिया था किसी ने !” पायल के ससुर को देखने आईं सावित्री जी ने पायल से कहा।
” मम्मी मैं इस घर की बहू हूं तो मेरी जिम्मेदारी ज्यादा हुई ना । उस दिन भी मैं पापाजी को छोड़ कर ना आती तो शायद उनको चोट ना लगती !” पायल ससुर को दलिया खिलाते हुए बोली।
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” पर बेटा तू बहू है तो क्या तूने ही गोद ले लिया इन्हे जो तू ही सेवा करेगी!” सावित्री जी बोली।
” हां मम्मी गोद ले लिया है मैने अपने ससुर को अब मैं इनकी बहू नहीं मां हूं । जैसे अपने बच्चों के सब काम करती हूं वैसे इनके करती हूं तो मां बराबर ही तो हुई मैं। और आपसे एक विनती करना चाहूंगी मेरे इन गोद लिए बेटे के बारे में कुछ नहीं सुनूंगी मैं उम्मीद है आप मेरी भावनाओं का सम्मान करेंगी!” पायल हाथ जोड़ कर सावित्री जी से बोली।
सावित्री जी हैरान थी उनकी बेटी तो आज उनसे भी बड़ी बन गई थी। पायल के ससुर नम आंखों से अपनी बहू को देख रहे थे जिसमे उन्हें मां की छवि नजर आ रही थी।
दोस्तों ये कोई काल्पनिक कहानी नहीं है सच्चाई है ये। पायल जैसी बहू भी हैं दुनिया में। वैसे भी घर के किसी इंसान को तकलीफ हो तो अपने ही काम आते कोई पराया नहीं तो हम सभी का फर्ज है अपनों के दुख में उनके काम आएं ।
कैसी लगी आपको ये कहानी बताइएगा जरूर
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल