आपने कोई अहसान नहीं किया हमारे ऊपर, हमें इतने ऊंचे ऊंचे पदों पर पहुंचा कर, कौन मां-बाप नहीं करते.. सभी करते हैं और आप देखना.. हम अपने बच्चों के लिए आपसे ज्यादा करेंगे, हमने अपने बच्चों को कभी भी किसी चीज की कोई कमी नहीं होने दी, हर सुविधा दी है
उनके कहने से पहले ही हर चीज उनके लिए हाजिर हो जाती है, यह देखिए बड़े-बड़े कमरे वह भी ए.सी. वाले जिसमें दोनों बच्चे आराम से पढ़ लिख सकें और अपनी निजी जिंदगी का आनंद उठा सके, आपको याद है बाबूजी हम सब एक ही कमरे में रहा करते थे जहां एक कोने में मां खाना बनाती रहती थी और जब सब्जी बनाती थी पूरा धुआं घर में फैल जाता था और फिर भी हम लग्न के साथ अपनी पढ़ाई में लगे रहते ! आपको तो बस पैसा जमा करना था कभी नहीं सोचा कि बच्चे ऐसे घुटन भरे माहौल में
कैसे रहते होंगे और आपको क्या जरूरत थी तीन तीन बच्चे पैदा करने की जब उनको सारी सुविधाएं दे ही नहीं सकते थे और अभी भी इस उम्र में भी आप दोनों को बिल्कुल चैन नहीं है जब आपको दोनों समय का खाना यहां आराम से मिल रहा है तो क्या जरूरत है यह कहने की, की आज यह बना लेते आज वह बना लेते या आज छोटी बहन मिलने आ रही है या कभी बड़ा भाई मिलना आ रहा है परेशान हो गया हूं
ये कहानी भी पढ़ें :
आप दोनों से, पता नहीं भगवान ने सारे दुख मेरी जिंदगी में ही क्यों भर दिए, कितना अच्छा होता कि काश मुझे कोई गोद ले लेता जहां मेरा बचपन आराम से व्यतीत होता, कम से कम अभावग्रस्त जिंदगी तो ना जीनी पड़ती, कभी आपने हम तीनों बहन भाइयों के लिए कभी कुछ सोचा, बस अपनी ही ख्वाहिश पूरी की है आपने, एक एक चीज के लिए तरसे हैं
हम, पर आपको क्या.. कभी आपने अपने बच्चों से प्यार किया हो या हमारी कोई चिंता फिक्र हो तब ना….! हम तीनों बहन भाई अपनी मेहनत से ही यहां तक पहुंचे हैं, अपने बड़े बेटे वीरेंद्र के मुंह से ऐसी बातें सुनकर रमाकांत और प्रमिला जी तो हतप्रभ से रह गए, दोनों एक दूसरे का मुंह देखने लगे जिन बच्चों की परवरिश में उन्होंने दिन रात एक कर दिया अपना सुख चैन त्याग दिया वह बेटा आज उन्हें ऐसे सुना रहा है!
हम अपने बच्चों के लिए दुख का कारण है, उन्हें याद आने लगे आज से 35 साल पुराने दिन जब रमाकांत जी एक सरकारी क्लर्क थे उनकी तनख्वाह इतनी नहीं थी की आलीशान जिंदगी जी सके, घर वालों की तरफ से भी आर्थिक सुविधा नहीं मिलती थी जैसे तैसे करके उन्होंने एक कमरे का छोटा सा घर लिया था
जिसमें उनके तीनों बच्चों का जन्म हुआ था, कितने खुश थे वह तीनों बच्चों के साथ, वह अपना पेट काट काट कर अपने बच्चों की ज़रूरतें पूरी करते कभी-कभी तो उनकी खुद की स्थिति ऐसी हो जाती की खाने के भी लाले से पडने लग जाते, धीरे-धीरे तीनों बच्चे बड़े हुए उनका स्कूल, खाना पीना रहना इन्हीं सब में उनकी तनख्वाह खर्च हो जाती कभी बड़ा मकान लेने की जो उनके मन में इच्छा थी
ये कहानी भी पढ़ें :
बच्चे को मत डांटो, इसमें गलती बहू की है…- सिन्नी पाण्डेय : Moral Stories in Hindi
मन में ही रह जाती पर यह सोचकर संतोष कर लेते कि जब बच्चे बड़े होंगे और अपने पैरों पर खड़े होंगे तब बड़ा मकान लेंगे क्योंकि तब वह अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएंगे उन्होंने अपने बच्चों को बड़ा बनाने के लिए जी जान लगा दिया, उनकी पत्नी भी दिन-रात लोगों के कपड़े सिलती और जैसे तैसे घर चलाती,
धीरे-धीरे रमाकांत जी की तनख्वाह भी बढ़ने लगी और घर में थोड़ी बहुत सुविधा होने लगी लेकिन वह सुविधा भी सिर्फ बच्चों के लिए होती थी, वह जैसे शुरू से रहते आए थे वैसे ही रहते गए किसी त्योहार पर कपड़े भी सिर्फ बच्चों के लिए आते वह तो अपना काम जैसे तैसे चला ही लेते कुछ समय बाद बड़ा बेटा एक मल्टीनेशनल कंपनी में बहुत ऊंचे पद पर लग गया और दोनों छोटे बच्चे भी डॉक्टर बन गए समय के साथ तीनों की शादी हो गई,
अब रमाकांत जी सोचते अब कोई चिंता नहीं है अब आराम से बेटों के पास जाकर आराम से रहेंगे जो जो कष्ट उन्होंने अपनी जिंदगी में झेले थे अब उनका अंत होने वाला है और यही सोचकर वह 15 दिन पहले अपनी पत्नी के साथ बड़े बेटे के यहां आ गए किंतु यहां आकर उन्हें पता चला कि वह तो अपने गांव में अपने छोटे से मकान में ही खुश थे, यह तो बेटे का मकान है यहां पर आकर सारा दिन दिन जो परायापन उनको झेलना पड़ रहा था
वह दोनों पति-पत्नी से छुपा नहीं था, कभी उन्हें उनके पहनावे को लेकर कभी खाने-पीने को लेकर कभी बच्चों की निजी जिंदगी में दखल देने को लेकर उनको रोज कोई ना कोई ताने सुनने पड़ते, आखिरकार उन्होंने अपने उसी घर में जाने का फैसला कर लिया जहां से उन्होंने जिंदगी शुरू की थी पर आज भी उनके मुंह से यही निकलता है “क्या कहें हमारे तो कर्म ही टूट गए जो ऐसी संतान को जन्म दी” क्या हम इसी अपनेपन के लिए यहां आए थे जैसा बड़ा बेटा वैसा ही छोटा बेटा, क्या करें हमारी ही किस्मत खराब है! क्या माता-पिता अपने बच्चों से अपनेपन की भी उम्मीद नहीं लगा सकते!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
“क्या कहें हमारी तो कर्म ही फूट गए जो ऐसी संतान को जन्म दी”
VM
Kai kahaniyan aaj tak padhi mujhe ek hee baat samajh nahi aati agar kisi ki aarthik sthiti theek nahi hai to woh itne bacche paida hee kyun karte hain
Ek baccha bhi kaafi hota hai kam sey kam usey acche sey paal to payenge
Right, warna do bachche bhi le sakte hain