अब कैसी नाराजगी – सीमा प्रियदर्शिनी सहाय : Moral Stories in Hindi

सन् 1980, 8 फुट की ऊंचाई ,लंबा चौड़ा शरीर घनी घनी मूंछें और कंधे तक झूलते हुए बाल ,यह पहचान थी रघुनाथपुर की लाला जी की।लाला अमरनाथ सिंह जी कहने को तो पहलवान थे मगर कई गांव के मालिक थे।उनके पैतृक गांव रघुनाथपुर में तो उनकी तूती बोलती थी।तीन बेटे और एक बेटी का उनका परिवार था। तीनों का घर परिवार बस गया था‌।बड़े बेटे शशिकांत की बड़ी बेटी सिया को वह दिलो जान से मानते थे। अपनी जान तक देने के लिए तैयार रहते थे।

जब वह पैदा हुई तो दाई आकर कहा” लक्ष्मी हुई है दादाजी!”

लालाजी हा हा करके हंस पड़े थे “लक्ष्मी नहीं बोलो धनु, सरस्वती बोलो। हमारे घर में साक्षात सरस्वती आई है।”

जब दाई ने उसे गोद में दिया तो फूल सी कोमल और रुई सी नाज़ुक बच्ची को देखकर लालाजी की आंखें डबडबा गई।

“यह तो दुर्गा मां की कृपा है कि हमारे घर में साक्षात् देवी आई है। शशिकांत इस बच्ची को तो हम पढ़ाएंगे और इसे डॉक्टर बनाएंगे। तुम बीच में रोड़ा मत अटकाना। इसका शादी विवाह तब होगा जब यह डॉक्टर बन जाएगी।”

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“जी पिताजी मुझे भला क्या एतराज होगा?”

घर में किसी को भी लालाजी के खिलाफ चूं तक करने की इजाजत नहीं थी।शशिकांत अपने पिता के इस नए रूप को देखकर कृतज्ञ हो गए थे। लालाजी अपने वचन में अडिग भी रहे। उन्होंने उसे बच्चे का नाम सिया रखा और उसे पढ़ाने लगे।वह रोज उसकी पढ़ाई देखते थे।

देखते देखते समय का चक्र बदलता गया। सिया ने एएफएमसी( इंडियन आर्मी मेडिकल एसोसिएशन)निकाल लिया और दाखिला भी मिल गया।लालाजी का पूरा परिवार इससे बहुत बहुत खुश था।

सिया पढ़ने में बहुत अच्छी थी ।हर साल बाद मेरिट में ही नाम लाया करती थी। लालजी फुलकर कुप्पा हो जाते थे।

शशिकांत और उनकी पत्नी सरला मन ही मन घबराते भी थे क्योंकि उस समय का समाज ऐसा नहीं था।इतनी पढ़ी-लिखी लड़की के लिए लड़का मिलना संभव नहीं था लेकिन लाला जी को उसकी कोई चिंता नहीं थी।

वह खुशी से उस दिन का इंतजार कर रहे थे जब सिया डॉक्टर बनाकर निकलेगी और वह उसके लिए एक योग्य लड़का ढूंढेंगे।

वह भी दिन आ गया लेकिन सिया ने अपने लिए राघव को ढूंढ लिया था।राघव उसका ही क्लासमेट था। दोनों एक दूसरे से प्यार कर बैठे थे।

“ मां ने शादी करूंगी तो डॉक्टर राघव से ही!”

“कैसी बातें कर रही हो तुम, तुम्हें शर्म नहीं आती। चार पैसे कमाने की लायक हो गई हो तो तुम अपने घर से बगावत करोगी?”

“ मां मैं अपने दिल से हार गई हूं । मैंने राघव को अपना दिल दे दिया है।मैं किसी और के साथ भी शादी करूंगी ना तो वह मेरे लिए तो आत्महत्या के समान ही होगा और मैं राघव के अलावा किसी को खुश भी नहीं रख सकती। वह एक तरह से एक परिवार का अंत हो जाएगा! प्लीज मां मेरे लिए आप रोड़ा मत बनो।”

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“अब यह बता कि तेरे दादाजी क्या बोलेंगे?”

“ कुछ नहीं बोलेंगे।ऐसा कभी हुआ है कि मेरी बात नहीं मानें हों।राघव बहुत अच्छा लड़का है मां एक बार मिल तो लो।” “

नहीं सिया तुम अपने दादाजी को अच्छी तरह से जानती हो।”

सिया अपने फैसले पर अडिग थी। उसके भीतर भी लाला जी का ही गुण आया हुआ था।

सिया अपने मेडिकल कॉलेज में सेकंड टॉपर थी और राघव फर्स्ट टॉपर। दोनों के बीच लव अफेयर पूरे कॉलेज में फेमस था।

जब सिया की अवार्ड सेरेमनी हो रही थी और मेडिकल की डिग्री प्रदान की जा रही थी तब कॉलेज के अध्यक्ष से लेकर सारे टीचर्स , प्रोफेसर्स और यहां तक दोस्त ,स्टाफ सब ने सिंह परिवार को यही सलाह दिया था कि डॉक्टर राघव ही सिया के लिए योग्य वर होंगे।यह शादी गलत नहीं है।सब के दबाव पर आकर सिंह परिवार ने चुपचाप रजामंदी तो दे दी लेकिन सिया के लिए घर का दरवाजा हमेशा के लिए बंद हो गया।रघुनाथपुर से बहुत दूर एक होटल में दोनों की शादी हुई जिसमें लालाजी शरीक भी नहीं हुए थे। शादी के बाद पगफेरे के लिए जब वह अपने घर आई तो अकेले ही आईं।

लालाजी ने साफ-साफ कह दिया “सिया यह रास्ता तुमने खुद चुना है।अब तुम्हारे लिए इस घर का दरवाजा बंद हो गया है। यहां पलट कर मत आना।”

सिया अपनी आंखों में आंसू भर कर वहां से चली गई।उसका मायके से रिश्ता खत्म हो गया था बड़ी मुश्किल से एकाध बार फोन किया करती थी, वह भी तब जब दादाजी घर पर नहीं रहते थे। वह खेती करवाने गांव में जाया करते थे।

शशिकांत और सरला ना तो रो पाते थे और ना हंस पाते थे। यह क्या दिन दिखा दिया बिटिया ने, इस तरह इस टैलेंट और हुनर लेकर क्या फायदा जो घर से ही बगावत कर दे!!!

देखते ही देखते 5 साल बीत गए। लालाजी जी अपनी पत्नी कोकिला को लेकर लंबी तीर्थ यात्रा के लिए निकले थे।“अब हम बूढ़े हो गए हैं। भगवान का दर्शन कर लेना चाहिए।”

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“ पिताजी आप और मां अकेले कैसे जाएंगे ?हम भी साथ चलते हैं ना!”

“ नहीं शशि,तुम दोनों इस गांव में रहो। हम जाते हैं।”

लालाजी अपनी पत्नी को लेकर जैसे ही ओडिशा पहुंचे वहां भयानक आंधी पानी और बारिश शुरू हो गई।

तूफान के कारण सब कुछ अस्त व्यस्त हो गया।लालाजी और उनकी पत्नी का बुरा हाल हो गया।जिस होटल में ठहरे थे उसे होटल को आनन-फानन में खाली कराया गया ।उन्हें सरकारी कैंप में भेजा जाने लगा। क्योंकि उस होटल में शॉर्ट सर्किट हो गया था।

लालाजी जी बूढ़े हो गए थे। चल नहीं पा रहे थे और उनकी पत्नी कोकिला तो पूरी तरह से ही असमर्थ थी।बारिश और आंधी के चक्रव्यूह में फंसकर वह एक दिन गिर ही पड़े।

उन्हें सेना के अस्थाई अस्पताल में एडमिट किया गया।जहां डॉक्टर की देखरेख में वह ठीक हो रहे थे।एक हफ्ते तक वह उस डॉक्टर को देख रहे थे। वह दिन में कई बार उनके वार्ड का चक्कर लगाया करता और उनका हाल-चाल पूछा करता था। यहां तक कि उन्हें खाने-पीने की भी पूरी ऐहतियात रखता था।

लालाजी उसे पहचान नहीं पाए मगर वह उसके व्यवहार से नतमस्तक हो गए थे।

उन्होंने उससे पूछा “डॉक्टर साहब मेरी पोती भी डॉक्टर है!”

“ मुझे पता है !”डॉक्टर ने जवाब दिया।

“आपको कैसे पता डॉक्टर ?”

“आपकी पोती सिया मेरी पत्नी है दादाजी।”

“आप डॉक्टर राघव हैं ?”लालाजी का मुंह खुला का खुला रह गया।

“जी दादा जी, मैं तो डर रहा था आपको अपना परिचय देने में मगर आपने तो मेरी तारीफ के पुल बांध दिया।”

फिर उसने लाला जी और कोकिला जी के पैर छूकर प्रणाम किया।

“कई दिनों से सिया मुझसे जिद कर रही है कि मैं दादाजी को देखने आऊंगी ,मैं ही उसे मना कर रहा था।”राघव ने लालाजी से कहा।

“अरे पगले तूने मना क्यों किया? उसे आने दे !अभी लेकर आ?”

“दादाजी मैं उसे फोन कर देता हूं वह अभी आ जाएगी।”

डॉ राघव ने अपने असिस्टेंट को सिया को बुलाने के लिए फोन करने के लिए कहा।

थोड़ी देर में सिया आ गई। बहुत कुछ बदल गया था। पतली दुबली सी सिया अब एक खुबसूरत महिला लग रही थी।

उसके गोद में एक 5 साल और एक 6 महीने का बच्चा था।

“ अरे मेरी सिया इतना बड़ी हो गई ?”लालाजी जी रोने लगे। उन्होंने अपनी पोती सिया और उसके दोनों बच्चों को अपने गले से लगा लिया।

“ मैं ही नादान मूर्ख था जो सिया के राघव को नहीं पहचान पाया। मेरी सिया कितनी सुंदर लग रही है, खुश लग रही है !जुग जुग जियो मेरे बच्चों !!मुझे माफ कर दो!!”

कोकिला जी चिढ़ कर बोली “आपकी नाराजगी ने तो हद ही पार कर दिया। कितनी अच्छी जोड़ी है यह,राम और सीता के जैसी। आपने इन्हें हमसे जुदा कर दिया था।”

“चलो अब नाराजगी दूर हो गई ना! राघव बेटा हो सके तो छुट्टी के लिए आवेदन दे दीजिए। हम आपके साथ ही रघुनाथपुर चलते हैं।”

“जी दादाजी ।”राघव ने कहा।

लाला जी ने अपने घर पर फोन कर कहा“शशिकांत और सरला बहू, तुम दोनों आरती की थाल सजा कर रखना। हम बेटी और दामाद दोनों को लेकर आते हैं।”

*समाप्त

सीमा प्रियदर्शिनी सहाय ®©# नाराजपूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित रचना

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