क्या कहें हमारे तो कर्म ही फूट गए जो ऐसी संतान को जन्म दी – के कामेश्वरी : Moral Stories in Hindi

शारदा घर के सारे काम ख़त्म करके टी वी देखने के लिए बैठक में पहुँची । उसके पति रघुनाथ जी ने हँसते हुए कहा कि तुम्हारे सीरियल का समय हो गया है क्या?

शारदा ने हाँ में सर हिलाया और सीरियल देखने लगी तभी अचानक टी वी बंद हो गया था तो उन्होंने सोचा बिजली चली गई है शायद परंतु यह क्या टी वी को बहू नेहा ने बंद किया था ।

शारदा ने ग़ुस्से से कहा कि नेहा टी वी क्यों बंद कर दिया है । वह अपने हाथों को हिलाते हुए कहने लगी कि वाह क्या बात है आराम से बैठकर टी वी देख रहे हो एक बार भी नहीं सोचा कि बिजली का बिल कितना आता होगा उसे भरने के लिए हमें कितनी तकलीफ़ उठानी पड़ती है । यह मेरा घर है तो यह सब मुझे ही देखना पड़ेगा इसलिए आज से रिमोट मेरे कमरे में रहेगा । शाम को पाँच बजे एक घंटे के लिए टी वी ऑन करूँगी तब देख लेना बस कहते हुए उनकी तरफ़ बिना देखे रिमोट लेकर कमरे में चली गई थी ।

शारदा के उदास मुँह को देखते ही रघुनाथ जी को ग़ुस्सा आया । उन्होंने कहा कि उसकी इतनी हिम्मत कि टी वी बंद करके चली गई है ।

शारदा ने कहा कि जाने दीजिए क्या कर सकते हैं । जब बेटा ही हमारा नहीं रहा तो बाहर से आई हुई लड़की से क्या उम्मीद कर सकते हैं । क्या करें हमारे कर्म ही फूट गए जो ऐसी संतान को जन्म दी है कहते हुए अपनी सारी की छोर से आँखें पोंछते हुए रसोई में चली गई थी ।

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रघुनाथ जी ने सोचा ऐसे नहीं चलेगा मुझे ही कुछ करना पड़ेगा । मैं अपना पेंशन घर के लिए खर्च करता हूँ शारदा दिनभर कोल्हू के बैल के समान घर के काम करती है फिर भी बेटा और बहू उन्हें बातें सुनाते हैं ।

उसी समय उन्हें अपने दोस्त यशवंत की बातें याद आईं थीं । पिछले महीने वाकिंग करते हुए उन्होंने यशवंत से कहा कि मैं अपना घर और जायदाद बेटे सोहम के नाम कर देना चाहता हूँ । अब हमें यहीं इसके साथ ही रहना है ना ।

यशवंत ने कहा कि मेरी बात मानकर ऐसी गलती मत करना अपना घर और जायदाद अपनी पत्नी के नाम कर दे तुम्हारे बाद उसे तीन वक़्त की रोटी तो नसीब हो जाएगी । मैंने भी ऐसा ही किया है ।

 मैने कहा कि मेरा बेटा ऐसा नहीं है वह मेरी बहुत इज़्ज़त करता है । यशवंत ने हँसते हुए कहा कि ठीक है एक काम कर अपने बेटे को बता देना कि तुमने घर और जायदाद उसके नाम कर दिया है झूठ बोल फिर देखना उसके रंग कैसे बदलते हैं ।

पंद्रह दिन पहले ही मैंने उन दोनों को यह बात बताई थी कि घर और जायदाद उसके नाम पर कर दिया है मैंने सोचा नहीं था कि बेटा बहू इतनी जल्दी रंग बदलेंगे ।  

शारदा काम ख़त्म करके उदास होकर रघुनाथ जी के पास बैठती है तो उन्होंने कहा कि शारदा मेरा बचपन बहुत ही अभावों में गुजरा था अपने पिता को देखते हुए मैंने सोचा था कि मैं अच्छे से पढ़ लिखकर सरकारी नौकरी ही करूँगा ।

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मैं पढ़ लिखकर सरकारी स्कूल में नौकरी करने लगा था और वे सारी चीज़ें सोहम को दी जो उसे पसंद थी । उसे अच्छे से पढ़ा लिखाकर काबिल बनाया है ।

मेरी बचपन से ही एक ख़्वाहिश है जिसे मैं आज पूरी करना चाहता हूँ । शारदा ने आश्चर्य से रघुनाथ जी की तरफ़ देखते हुए कहा कि कौनसी ख्वाहिश बच गई है आपकी ।

रघुनाथ जी ने कहा कि बचपन में मैं एयरप्लेन को दूर से आसमान में उडते हुए देखा करता था । मेरी ख़्वाहिश थी कि एक बार उस पर बैठूँ । बचपन की ख़्वाहिश को अभी पूरा कर लेते हैं चलो हम दोनों घूमने चलते हैं ।

शारदा ने डरते हुए कहा कि बापरे बहू ने सुन लिया तो हँगामा मच जाएगा । रघुनाथ जी ने उन्हें चुप रहने को कहा और दूसरे दिन अपनी पेंशन के पैसों से दोनों के लिए फ़्लाइट टिकट ख़रीद कर ले आए । बहू ने सबेरे सबेरे ही कहा कि माँजी दस तारीख़ हो गई है ससुर जी ने पेंशन ड्रॉ नहीं किया है क्या ?

शारदा ने डरते हुए रघुनाथ जी की तरफ़ मुड़कर देखा तो उन्होंने कहा कि हम दोनों घूमने जा रहे हैं इसलिए इस बार पैसे नहीं दे सकते हैं ।

बस नेहा ने तो शिव ताँडव मचा दिया था कि बुढ़ापे में बाहर जाना चाहते हो शर्म नहीं आती है । आपके बेटे के आने के बाद बताती हूँ रुक जाइए कहते हुए कमरे में चली गई ।

शारदा को वह दिन याद आया जब रघुनाथ जी ने उसके लिए एक हज़ार की साड़ी शादी की सालगिरह के लिए ख़रीद कर लाए थे तो एक हज़ार रुपये कम दिए हैं कहते हुए बहुत ही हँगामा किया था बहू के साथ बेटे ने भी बहुत सारी बातें सुनाई थीं । अब तो पूरे पैसे नहीं देंगे तो पता नहीं क्या होने वाला है ।

सोहम ने घर आते ही अपनी पत्नी की बातें सुनकर ग़ुस्से से लाल पीला होते हुए कमरे से बाहर आया और अपने माता-पिता का लिहाज़ भी नहीं किया और उनके ऊपर चिल्लाने लगा कि आप दोनों को इस उम्र में घूमने जाने की सूझ रही है थोड़ी सी भी शर्म बची हुई है या नहीं?

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रघुनाथ जी ग़ुस्से से खड़े हुए और कहा कि तुम कौन होते हो इस तरह के सवाल हमसे करने वाले । हर वीकेंड में बाहर जाकर घूम फिरकर खाना खाकर आते हो । पिछले साल यूरोप ट्रिप पर गए थे । दो दिन की छुट्टियों में भी घर से बाहर चले जाते हो कभी हमसे पूछा कि आप लोग भी चलोगे ? नहीं ना ।

हम इतने बूढ़े भी नहीं हुए हैं और हमारी भी कुछ ख़्वाहिशें हैं हमें भी उन्हें पूरा करने का हक है ।

सोहम ने कहा कि मैं अपने पैसों से यूरोप ट्रिप पर गया था । आपसे तो पैसे नहीं माँगे थे ।

रघुनाथ – मैंने भी अपने ही पैसों से टिकट ख़रीदें हैं । तुम से नहीं माँगा है समझ गए हो ना ।

सोहम- अब आप इस तरह कह ही रहे हो तो मैं बता दूँ कि मैं मुफ़्त में आप दोनों को खाना नहीं खिलाऊँगा । आप अपना बोरिया बिस्तर बाँधिए और निकलिए मेरे घर से ।

रघुनाथ- बेटा सोहम यह घर तुम्हारा कब से हो गया है ।

सोहम- यह आपने ही तो मेरे नाम कर दिया था तो फिर मेरा ही होगा ना ।

रघुनाथ- तुम इस ग़लतफ़हमी में मत रहो यह घर तुम्हारी माँ के नाम पर है ।

सोहम— आपने मुझे धोखा दिया है मैंने कभी नहीं सोचा था कि माता-पिता बच्चों को इस तरह से धोखा दे सकते हैं । मैंने आपसे कई बार कहा था कि मुझे पेपर्स दिखाओ पर आपने नहीं दिखाया था आप धोखेबाज़ हैं ।

रघुनाथ जी ने कहा कि भला हो मेरे दोस्त यशवंत का जिसने मुझे पहले ही आगाह कर दिया था कि सब कुछ बच्चों के नाम मत करना मैंने तो तुम पर बहुत ही भरोसा किया था और तुम्हारे नाम पर सब कुछ करने वाला था परंतु यशवंत के कारण आज मैं बच गया हूँ ।

मेरे सुपुत्र अब तुम सोच लो मैं तुम्हें दस दिन का मोहलत देता हूँ । अपने लिए घर ढूँढ लो कहते हुए शारदा की तरफ़ मुड़कर कहा चल शारदा शापिंग के लिए तैयार हो जा हमें हमारे टूर के लिए कपड़े ख़रीदने हैं ।

दूसरे दिन टूर पर जाने के पहले उन्होंने सोहम को बुलाया और कहा चाहे तो तुम ऊपर के हिस्से में रह सकते हो परंतु हर महीने दस हज़ार रुपये किराया दे देना । हम चलते हैं दस दिन बाद मिलेंगे तब तक अपना सामान यहाँ से निकाल लेना ।

एयरपोर्ट पहुँच कर सारी फारमॉलटी पूरा करके उन दोनों ने जैसे ही फ़्लाइट में पैर रखा तो रघुनाथ ने धीरे से शारदा से कहा शारदा यह तो बहुत बड़ा है हम आसमान में उड़ते हुए देखते थे तो छोटा सा लगता था । उन दोनों ने एयरप्लेन के सफर का भरपूर आनंद लिया।

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उन्होंने अयोध्या का टिकट लिया था वहाँ रामलला के दर्शन कर अपने आपको धन्य समझा । आसपास की तीर्थों का भी दर्शन करते हुए दस दिन कैसे बीते उन्हें पता ही नहीं चला ।

साल में एक बार इस तरह की यात्रा करने की सोचते हुए वे घर वापस आए ।

घर के अंदर आते ही बेटा बहू इनके पैर पर गिर कर गिड़गिड़ाने लगे कि दस हज़ार किराया देकर वे अपने  बच्चों को पढ़ा लिखाकर बड़ा नहीं कर सकते हैं। इसलिए उन्हें माफ कर दे । बहू नेहा ने भी कहा कि माँ मैं घर का सारा काम कर दूँगी आपको कोई काम नहीं करने दूँगी हमें माफ कर दीजिए ।

दोस्तों बच्चे माता-पिता के साथ कैसा भी व्यवहार करें परंतु माता-पिता बच्चों को दिल से माफ कर देते हैं । रघुनाथ जी ने भी सोच लिया था कि सोहम और नेहा को सबक मिल गया है । इसलिए उन्होंने उन दोनों को माफ कर दिया था ।

के कामेश्वरी

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