रत्ना और किशोर जी ने सीमित आय में भी अपने दोनों बेटों अमित और सुमित की पढ़ाई में कोई व्यवधान नहीं आने दिया। खुद की जरूरतों को अनदेखा कर बच्चों की परवरिश अच्छी तरह की। जब अमित पढ़ाई खत्म कर जॉब में आया तो रिश्तों की बाढ़ सी आ गई। आये भी क्यों ना, अमित अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज से पढ़ कर मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब पर आ गया,
हर तरह से होनहार लड़का। अमित को अपनी सहपाठी नलिनी बहुत पसंद थी, जैसी पारिवारिक दशा अमित की उसी तरह नलिनी का भी परिवार था।
एक दिन जब अमित घर लौटा तो रत्ना जी ने कुछ लड़कियों की फोटो दे, उनमें से एक फोटो दिखा बोली -ये लड़की मुझे और तेरे बाबूजी को बहुत पसंद है, अगर तुझे ना पसंद हो तो बाकी फोटो में से देख ले, सब टक्कर के घराने हैं, मोटा दहेज देंगे।
“पर माँ मैं तो नलिनी से शादी करना चाहता हूँ, वैसे भी रिश्ता बराबरी में करना चाहिए, कहीं ऐसा ना हो कि बाद में पछताना पड़े.”
नलिनी से शादी कर तुझे क्या मिलेगा, हमलोगों की तरह तू भी जिंदगी में पिसता रहेगा, अमीर घराने में शादी से रुतबा तो बढ़ेगा साथ ही धन भी मिलेगा “रत्ना जी बेटे को समझाती हुई बोलीं।
अमित अपनी बात पर अड़ा रहा, रत्ना जी ने साम -दंड -भेद सब तरीके आजमा लिये पर अमित ने अपनी जिद नहीं छोड़ी। हार कर रत्ना जी ने अपना आखिरी दांव फेंका-तेरे लिये कल की लड़की इतनी महत्वपूर्ण हो गई, तू माँ की ममता भुला बैठा। अमित माँ को दुखी नहीं देख पा रहा था, इसी माँ ने दो कपड़ों में साल गुजारा कि बच्चे अच्छे से पढ़ -लिख जाये।
अमित ने माँ के लिये अपने प्यार का बलिदान दे दिया। रत्ना जी की पसंद की लड़की रीमा से शादी कर ली।रीमा के पापा ने बेटी की सुविधा को देखते हुये एक बंगला शादी से पहले उपहार में दे दिया। पुराने घर की बजाय नये घर से धूमधाम से शादी हुई। नाते -रिश्तेदार मुँह पर तारीफ और पीठ -पीछे जलन निकाल रहे। रत्ना जी गर्व से आयोजन में लगी हुई थीं।
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वर -वधु के आगमन पर रत्ना जी आरती का थाल ले कर आईं और बेटे -बहू की आरती उतार अंदर ले आई। रीमा ने अमित से बोला -वो थक गई है अपने कमरे में आराम करना चाहती है। सारे रीति -रिवाज़ को परे कर रीमा अपने कमरे में चली गई। दो घंटे बाद जब रत्ना जी ने दुबारा रीमा को बुलाया तो उसने इंकार कर दिया, बोली कल रिसेप्शन पार्टी है ही,
वहीं मुँह दिखाई हो जायेगी।रिश्तेदार कानाफूसी करने लगे, “और बड़े घर की लड़की लाये “। रत्ना ने अमित से शिकायत की तो अमित ने बोला -आपकी पसंद है, आप जानो।
दहेज में मिले घर में रहते रत्ना को समझ में आया, यहाँ पिछले मोहल्ले जैसी आत्मीयता नहीं है, बड़े बँगले के अपने रीति -रिवाज़ हैं, जिसमें वो फिट नहीं बैठती हैं। बहू के माता -पिता या भाई -बहन जब देखो तब आते थे, जो समधी -समधन शादी से पहले विनम्रता के पुतले बने रहते अब उनको पूछते भी नहीं। बहू ने किसी दिन भी उन्हें सास होने का मान नहीं दिया।
धन तो आ गया पर परिवार की सुख -शांति चली गई। बेटे की गृहस्थी में दरार ना पड़े ये सोच रत्ना जी और किशोर जी वापस अपने पुराने घर में आ गये। अब सुमित भी पढ़ाई पूरी कर नौकरी में आ गया उसके लिये भी रिश्ते आने शुरु हुये पर इस बार रत्ना जी सतर्क थीं। बड़े घर की लड़की नहीं लानी हैं। सोचा थोड़ा गरीब घर की. लड़की लाएंगे तो कुछ दब कर रहेगी। बड़ी बहू तो रत्ना जी को ही दबा कर रखती थी।
सुमित के लिये, उन्होंने एक गरीब परिवार की सुन्दर लड़की पसंद की। धूमधाम से शादी कर छोटी बहू मीता घर लाई। मीता ने रीति -रिवाज़ पूरे किये। रत्ना जी गर्वित हो उठीं।पर मीता ने भी कुछ दिन बाद रंग दिखाने शुरु कर दिया। जो इच्छायें पिता के घर में पूरी नहीं हो पाई, अब पति की कमाई से पूरी करने लगी। पूरे समय अपने कमरे में बैठी अपनी सुंदरता निखारने में लगी रहती।
रत्ना जी को सारे काम करने पड़ते।घर में कामों को ले कर लड़ाई -झगडे होने लगे। मीता को जिठानी की तुलना में ये घर छोटा और टूटा -फूटा लगने लगा, साथ ही सास -ससुर बोझ लगने लगे। मीता ने अलग घर लेने की मुहीम छेड़ दी।सुमित ने मीता को बहुत समझाने की कोशिश की पर फिर हार कर वो भी अलग घर ले कर रहने लगा।
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सुमित और मीता के जाते ही, रत्ना जी टूट गई, पहली बार अहसास हुआ अमित की बात मान कर बराबरी में शादी की होती तो आज उनकी ये हालत नहीं हुई होती। आज रत्ना और किशोर जी फिर उसी घर में थे जहाँ से जिंदगी शुरु की थी। बस फर्क ये था पहले युवा मन और हौसले थे अब थका हुआ तन -मन..।बड़े लोग सही कहते हैं रिश्ता बराबरी में करना चाहिए…।
ना ज्यादा बड़े घर से रिश्ते बनाने चाहिए ना छोटे, तभी संतुलन बन पाता हैं।हाँ रिश्ते बनाने के लिये पारिवारिक संरचना एक जैसे होने चाहिए।
… दोस्तों आप क्या कहते हो, अक्सर देखा जाता है ना बड़े घर की लड़कियाँ एडजस्ट कर पाती ना छोटे घर की…. हाँ अपवाद सभी जगह होते हैं।
—=संगीता त्रिपाठी