25 वर्षीय माधुरी अपने पति के ऑफिस से आने से पहले ही शाम के धुंधलके में घर से निकल पड़ी और ऑटो से रेलवे स्टेशन पहुंच गई। वहां पर मुंबई जाने वाली ट्रेन खड़ी थी। पूछने पर पता लगा, ट्रेन के चलने में अभी काफी समय है।
माधुरी चुपचाप जाकर एक बेंच पर बैठ गई। हल्की सर्दी वाली रात थी। अंधेरा हो गया था पर अभी रेलवे स्टेशन पर चहल-पहल थी। बैठे-बैठे माधुरी को कल की बात याद आ गई और वो रोने लगी। उसके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे और आते जाते लोग भी उसे देख रहे थे।
तभी उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा। माधुरी ने पलट कर देखा तो एक बहुत सुंदर युवती खड़ी थी जो कि लगभग 35- 36 साल की लग रही थी। उसने माधुरी से पूछा-“क्या मैं आपके पास बैठ सकती हूं?”
माधुरी ने गर्दन हिलाते हुए कहा “हां”
युवती बैठ गई। माधुरी उसे एक टक निहारती जा रही थी, बहुत ही सुंदर थी वह।
तभी उस युवती ने कहा-मेरा नाम गायत्री है। आपका नाम क्या है?”
माधुरी ने अपना नाम बताया।
गायत्री-“आप यहां अकेली बैठकर क्यों रो रही थी? देखिए अगर आप ठीक समझे, तो बताएं वरना कोई बात नहीं। अपना दुख किसी से कहने पर मन का बोझ हल्का हो जाता है।”
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पता नहीं क्यों माधुरी के मुंह से निकला “क्या मैं आपको दीदी कहूं?”
गायत्री खुश होकर बोली -“हां हां क्यों नहीं।”
माधुरी अपनी परेशानी बताने में हिचकिचा रही थी।
गायत्री-“माधुरी, मैं किसी से नहीं कहूंगी क्योंकि मैं कह ही नहीं सकती, फिर भी तुम्हारी मर्जी। लगता है किसी से लड़कर, रूठ कर, नाराज होकर घर छोड़कर आई हो।”
माधुरी जैसे नींद से जागी। क्या कहा दीदी, कह ही नहीं सकती, मतलब, वैसे ठीक समझा है आपने। कल वो, कल ना मैं घर का सामान लेने बाजार गई थी तो वहां पर मुझे बहुत देर हो गई। ऑटो भी नहीं मिल रहा था। अंधेरा हो गया था। घर की चाबी भी मेरे पास थी। मैं वापस आई, तो मेरे पति निकुंज दरवाजे के बाहर खड़े थे। ताला खोलकर अंदर जाते ही मुझ पर बरस पड़े।
“सारा दिन न जाने कहां कहां घूमती रहती हो, घर में पैर नहीं टिकते तुम्हारे। थके हुए आओ और घर के बाहर खड़े रहो। महारानी माधुरी जी का कोई अता पता नहीं। फोन करो तो उठाती नहीं हो।”
दीदी फिर मुझे भी गुस्सा आ गया। मैंने कहा-“घूमने या मटरगश्ती करने नहीं गई थी। घर का सामान लेने गई थी। जल्दी-जल्दीमें फोन घर पर रह गया था। पहली बार ऐसा हुआ है और आप मुझे इतना सुना रहे हो। जब आप ऑफिस से थक कर आते हो तो मैं आपको पानी देती हूं। आपके लिए चाय बनाती हूं और मैं जब थक कर आई हूं तो आपने क्या किया, सामान तक उठवाया नहीं, बल्कि बातें सुना रहे हो।”
फिर निकुंज ने मुझे बहुत गालियां दी और मुझ पर हाथ भी उठाया। तभी मैंने घर छोड़कर जाने का फैसला ले लिया था। बिना किसी गलती के मैं क्यों इतना कुछ सहन करूं।”
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गायत्री-“हां माधुरी, हाथ उठाना और गालियां देना सचमुच गलत है लेकिन तुम्हारा रात के समय में यूं अकेले घर छोड़ना, यह भीतो गलत है। तुम लोग आपस में बातचीत करके मसले को सुलझा सकते थे। दुनिया बहुत खराब है खासकर अकेली औरत के लिए। पता है मैंने भी यही गलती की थी।”
माधुरी हैरानी से बोली -“आपने?”
गायत्री-“हां, मैं उस समय 14- 15 वर्ष की थी। मेरे पापा ने मुझे स्कूटी दिलवाने से मना कर दिया था और मैं उनसे नाराज होकर रात के अंधेरे में घर छोड़ दिया। मैंने कभी समझने की कोशिश नहीं की,कि पापा क्यों मना कर रहे हैं। उस उम्र में मैं फिल्मी दुनिया में जीती थी। मुझे दुनिया के असली रंग बाद में पता लगे।
मैं तुम्हारी तरह रेलवे स्टेशन पर अकेली उदास बैठी थी। एक आंटी पास आकर बैठ गई और मुझसे प्यार से सारी बातें पूछ ली और मुझसे कहा-“बिटिया, क्या तुम्हें डांस करना आता है?”
गायत्री-“हां जी आटी, लेकिन क्यों?”
आंटी-“क्योंकि अगर तुम अच्छा डांस करोगी तो पैसे कमाकर स्कूटी ले सकती हो। मैं नादान, उसकी बात मानकर उसके साथ चली गई। उसने मुझे बार गर्ल बना दिया।
बार के मालिक मेरे साथ बहुत सहानुभूति रखते थे। एक बार आंटी से धोखा खाकर भी मैं बेवकूफ उसकी झूठी हमदर्दी को सच समझ बैठी। एक दिन उसने कोल्डड्रिंक में नशीला पदार्थ पिलाकर मुझे काल गर्ल वाले गलत काम में धकेल दिया। मैं घर वापस लौटना चाहती थी,पर बहुत मुश्किल था और मैं क्या मुंह लेकर पापा के पास वापस जाती और फिर इस जिंदगी से तंग आकर एक दिन मैंने——-”
गायत्री की बात अधूरी रह गई क्योंकि कोई माधुरी माधुरी पुकार कर उनकी ओर आ रहा था, वह शायद निकुंज था।
माधुरी ने देखा उसका पति आ रहा है। दीदी देखो,ये आ गए हैं। बातों बातों में आधी रात होने वाली थी। ट्रेन भी जा चुकी थी।
माधुरी के पति निकुंज ने कहा-“माधुरी, मुझे माफ कर दो, आइंदा कभी भी तुम्हारा अपमान नहीं करूंगा और ना कभी तुम पर हाथ उठाऊंगा। चलो अब घर चलो। अच्छा हुआ तुम सही सलामत मिल गई। मैं तो बहुत घबरा गया था। यह समय मेरे ऊपर बहुत भारी बीता है। कहां-कहां नहीं ढूंढा तुम्हें।”
माधुरी-“अरे आप इनसे तो मिलिए, गायत्री दीदी। दीदी, आप भी हमारे साथ चलिए।”
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निकुंज, माधुरी को वहां से खींच कर ले गया।
माधुरी-“अपने गायत्री दीदी से ना तो बात की और ना ही नमस्ते। उनकी वजह से ही आज मैं आपके साथ हूं। आखिर में आपने बात तक करने नहीं दी।”
निकुंज-“माधुरी, वहां पर कोई नहीं था, तुम अकेली बैठी बड़बड़ा रही थी और लोग तुम्हें पागल समझ कर इग्नोर कररहे थे, इसीलिए शायद तुम बच भी गई।”
माधुरी-“ऐसे कैसे, वहां कोई नहीं था। गायत्री दीदी की पूरी कहानी सुनी थी मैंने। उसने पूरी कहानी अपने पति को सुना दी।”
दो-तीन दिन बाद घर में पुराने अखबार रद्दी वाले को देते समय एक अखबार माधुरी के हाथ से छूटकर गिर गया। जब उसने वह उठाया तो उसे देखकर चौंक गई। अखबार में गायत्री की फोटो छपी थी और लिखा था अपनी जिंदगी से तंग आकर बारगर्ल गायत्री ने की आत्महत्या। उसने तुरंत निकुंज को बुलाया और तस्वीर दिखाई निकुंज ने अखबार की तारीख देखी तो वह खबर 4 महीने पुरानी थी।
माधुरी सोच में पड़ गई कि क्या वो गायत्री की आत्मा थी जो उसे समझाने आई थी कि”घर लौट जाओ”और इसीलिए वह सिर्फ माधुरी को ही दिखाई दे रही थी। माधुरी धीरे से बुदबुदाई
“धन्यवाद मेरी प्यारी गायत्री दीदी”
स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली
#नाराज