भाग्यविधाता – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

हरिनारायण मीना एक सम्पन्न किसान परिवार से थे। खेती बाड़ी, जानवर, सब तरह से  सुखी थे एवं व्यावहारिक प्रवृती के थे। इसीके चलते गाँव वालों ने उन्हें बिधायक  का चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया । पहले  वे ग्राम प्रधान बने फिर विधायक के चुनाव के लिए खडे हुए और भारी मतों से विजयी हुए।

 उनकाअच्छा व्यवहार एवं  ग्रामीण समस्याओं के निराकरण के लिए तत्पर रहना उन्हें जनता में लोकप्रिय बना दिया।वे जमीन से जुड़े व्यक्ति थे सो   ग्रामीणों की समस्याओं को भी सुलझाने में  प्रयासरत   रहते ,इसका परिणाम यह हुआ कि वे अगले चुनाव में भी विजयी हुए। इस बार वे मंत्री पद पाने में भी सफल रहे।

मंत्री बनते ही उनके स्वभाव में  अचानक परिवर्तन हो गया। अब उन्हें गाँव और ग्रामीणों से कोई सरोकार नहीं रह गया था। वे अपने  ठाठ-बाट में ऐसे खोये कि उन्हें गुरुर आ गया। अब ग्रामीणों के साथ बैठना उनकी समस्याओं को सुनना उन्हें समय की बर्बादी लगने लगी। वे अपने आगे ग्रामीणों को कमतर समझने लगे।

उन्हें लगता, कि वे उनके भागय विधाता बन गए हैं। सो अंहकार में भरे वे उन्हें हिकारत की  नजर से देखते और उनसे  बात करने में अपनी बेइज्जती समझते। उनके से इस व्यवहार से  ग्रामीणों में रोष पैदा हो गया। यदि कोई अपनी समस्या लेकर उनसे मिलने जाता तो वे घंटों इंतजार करवाते ।अब उन्होंने गाँव में रहना छोड शहर में ही रहने लगे थे।

तभी एक दिन रमन की पत्नी की तबियत ज्यादा खराब हो गई। वह साथ में एक दो गाँव के सम्भ्रांत व्यक्तियों को अपने साथ शहर ले गया। किन्तु जिस अस्पताल के लिए उसे रेफर किया था उन्होंने उसे भर्ती करने से मना कर दिया तब साथ आये ग्रामीणों ने सोचा कि हरिनारायण की मदद ली जाए। वे रमन को वहीं छोड़ उनके पास गये।

दो घंटे के इन्तजार के बाद वे मिले और बात सुनी बोले मेरे पास इस तरह के छोटे -मोटे कामों के लिए समय नहीं है क्या मुँह उठाये चले आते हो।

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बे बोले हम आपको तकलीफ़ नहीं देते किन्तु रमन की पत्नी की हालत चिन्ताजनक है उसे तुरंत इलाज की जरूरत है शहर में यहाँ हमें कोई नहीं पूछता यदि आप थोडा सा कह देते तो मदद हो जाएगी  और उसका इलाज चालू हो जाएगा अन्यथा  इलाज के अभाव में वह दम तोड देगी उसके छोटे-छोटे बच्चे हैं, बिना मां के हो जायेगें। 

तो मैं क्या करूं मैंने सबके जीने का ठेका 

लिया है क्या सैकड़ों  रोज मरते हैं उनमें ये एक और सही।

यह सुन  आये  हुए ग्रामीण चुप हो लौट गए  मन में रोष  लिए। कितना अभिमान आ गया है इसे कह रहा है मर जाने  दो । अभी  इसके बीवी बच्चों के लिए कोई इस तरह कहे तो इसे कैसा लगेगा। इसे अब सबक सीखाना ही पड़ेगा सोचते जब वे रमन के पास पहुंचे तब तक उसकी पत्नी की इलाज के अभाव में मृत्यु हो चुकी थी।

अब तो उनमें हरिनारायण के लिए बहुत ही आक्रोश था। आपस में बोले कोई बात नहीं इसे भी देख लेंगे। एक साल की बात है अगले चुनाव में वोट मांगने आयेगा तब बतायेंगे।

एक साल बीत गया चुनावी बिगुल बज उठा हरिनारायण को तीसरी बार टिकट मिल गया अब  उन्होंने  आजकल गाँव आकर अपना डेरा  डाल लिया और ग्रामीणों से मेलजोल बढाने लगे। किन्तु उनके व्यवहार से पूरा गाँव असन्तुष्ट एवं नाराज था।सो सबने  एक विचार कर लिया इस बार इसे कोई वोट नहीं देगा ।जहाँ तक पहुंच सके अपने रिश्तेदारों, मिलनेवालों को भी मना कर दिया।

परिणाम आया हरिनारायण इस बार चुनाव हार चुके थे, जिस जनता के वे भाग्यविधाता बने हुए थे असल में भाग्यविधाता  तो जनता थी जिसने उनके भागय में पराजय लिख दी।

जिस जनता ने खुशी-खुशी उन्हें फर्श से उठाकर अर्श तक   पहुंचाया उसी  जनता ने नाराज हो कर  उन्हें अर्श से फर्श पर ला पटका और उनका सारा अंहकार चूर-चूर 

कर दिया।

शिव कुमारी शुक्ला 

8/8/24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित

 

साप्ताहिक बिषय**** #नाराज

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