देवकन्या (भाग-16) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi

चंपापुरी  की राजकुमारी”””

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देवी कौन हो तुम “””

मै समय की मारी एक स्त्री””

अपना जैविक परिचय दो भगवती””””

अश्रुबूंदे   छलक आयी उस युवती के चेहरे पर””

वो विलख उठी”””उसके अधर उसका साथ न दे रहे थे””

मै चंपा नरेश, दधिवाहन, रानी धारणी की पुत्री, राजकुमारी,चद्रबाला हूँ।

उस युवती  ने इधर उधर पलट कर देखा “”

कही उसके बारे मे कोई जान न ले”

खुद को सम्भालते हुऐ राजकुमारी बोली””””

डरो मत देवी,,और पूरी बात विस्तार  से  बताओ””

भगवन,,ओठ थरथराऐ,चन्द्रबाला के”””

कौशम्बी नरेश शतानीक   ने,अचानक आक्रमण कर दिया”

कुछ भी न सुरक्षित  बच सका,न अभिमान न स्वाभिमान “””

चंपा नगरी ध्वस्त हो चुकी थी!

युद्व  मे पराजित पिता श्री”अज्ञातवास मे अंतर्ध्यान हो गये”””

रक्त की गंगा बह निकली, सभी नवजात शिशुओ और पुरूषों की हत्या कर दी गयी””चारों ही तरफ शव ही शव ,,,उफ”””

उस श्रण को याद कर सिहर उठी,,राजकुमारी चन्द्रबाला “””

फिर कुछ क्षण रूककर बोली”””

वासना के चलते,कन्याओं,और स्त्रियों को बंदी बना लिया गया”

और उन्ही बंदी युवतियों  में, ,मै भी थी”””

मेरी एक प्रिये दासी को मेरे वस्त्र  उतारने का आदेश मिला, मै जड बनकर रह गयी””””

पांच मास तक मै कौशम्बी नरेश की  पंलगदासी बनकर रही”””

मेरा रूप मेरे लिए  ,श्राप बन गया, ,,जब तक मै चंपा नगरी की राजकुमारी रही तबतक  मेरे सौन्दर्य पर मोहित होने वाले असंख्य थे””

परन्तु , ,नियति की कठोरता  की राजकुमारी से दासी,,,और दासी से ,गणिका”””अविरल अश्रुधार बह निकली चंद्रबाला की आंखो से”””

धैर्य रखो देवी””””

कौशम्बी रानी के कोई संतान न थी,,

मै गर्भवती हो गयी ,राजा का स्नेह मेरे लिए बढ गया “””

और वो स्नेह धीमे धीमे, प्रेम मे परिणिति हो गया””””

उन्होनें मुझसे  विवाह का प्रस्ताव रखा”””

मैने स्वीकार भी कर लिया”””

इस बात की भनक रानी को हुई ,तो उनमे सौतिया डाह उत्पन्न हो गया “”

रानी ने अपने विश्वासपात्र  संमतों से मिलकर ,मुझे वैशाली के हाट मे बिकवा दिया”””

मेरी दासी को इसकी भनक लगी ,तो वो मुझे ढूढंती हुई वैशाली पहुंची”””

और उसकी सहायता से मै भाग निकली””तबसे भाग ही रही हूं,,,,कौशम्बी नरेश के आलावा अभी तक किसी ने मुझे नही छुआ”””भगवन मै पराधीन,हो चुकी थी””

क्या करती ,एक जीवन मेरे अंदर पल रहा था””चाह कर भी मृत्यु को अलिंगन नही कर सकती थी!

स्वाधीनता हो अथवा पराधीनता “” स्त्री के लिए दोनों एक समान है”””

मेरे पीछे कुछ लोग आऐगे भगवन ,मै शरण की आकांक्षी  हूं”””

मेरी प्रिये दासी कुछ क्षण मे मुझे ढूढंती हुई  आयेगी “”

आह “” बोलते बोलते ,प्रसव की वेदना से तडप उठी चंद्रबाला “

पीडा बढती जा रही थी”””धरा पर वो असहाय पडी तडप रही थी!

दक्षांक कुछ समझ नही पा रहा था ,वो संतानहीन था””

पर उसने देखा”की””

भगवन्  महावीर स्वामी ने आंखे बंद कर ली”””

चन्द्रबाला को असहाय देखकर ध्यानमुद्रा  में चले गये”””

चन्द्रबाला की प्रसव बेदना, पीडित स्वर, के संग भगवान्  महावीर स्वामी का भक्ति स्वर,गुजांयमान हो उठा”””

दक्षांक  ने देखा,विस्मय से उसकी आंखे फटी रह गयी””

अकस्मात ही उस वन मे ,हिरणियों का झुंड जाने कहा से आकर ,चंद्रबाला के समीप जाकर घेरा बना लेता है””

ये वही क्षण था जो एक शिशु ने जन्म लिया “””

वो नवजात  शिशु जैसे किसी आभा से युक्त था,,,शिशु  के जन्म होते ही ,राजकुमारी  चंद्रबाला, निढाल हो गयी”””तभी एक युवती ने प्रवेश किया “””

उसकी दृष्टि  चंद्रबाला पर पडी वो दौडकर उसके समीप पहुंची”””राजकुमारी, “””

उसने रक्तभरे शिशु को बाहों मे उठा लिया””और उसे चुमने लगी”””वो नवजात शिशु जन्म के साथ रूदन करने लगा”””

राजकुमारी आप ठीक है”””

चंद्रबाला ने आंखे खोली,,,और हा”, मे सिर हिलाया “””

आज गंगा मैया उफान पर थी,

उधर भगवान महावीर ध्यानमुद्रा  मे लीन थे”””

दक्षांक   ने  ,लकडियों को काटकर एक छोटी सी झोपडी बना दी थी,ताकि राजकुमारी चन्द्रबाला, नवजात शिशु और दासी के साथ सुरक्षित रह सके””””

अंधेरा घिर आया था”””

आज की घटना  राजनायक को उद्देलित कर रही थी”””

क्या युवराज  हर्षवर्धन को सुरक्षा की अवश्यकता है””, जिसकी सुरक्षा स्वंयम् प्रकृति कर रही है”””

वो जिसकी सुरक्षा के लिए  प्रतिदिन  यहां आता है,वो खुद सबकी सुरक्षा  करता है,  तू मूर्ख ही है ,दक्षांक “”” राजनायक के अंतर्मन से आवाज आयी””भगवान् के पास रहकर ,भगवान को ढूंढ रहा है””

वो संतान का इच्छुक, ,,शायद भगवान उसकी विनती स्वीकार कर ले”””

वो भगवान महावीर के समीप पहुंचा “” उसने देखा उनके आसपास प्रकाश फैला है,वो अभी भी ध्यान मुद्रा   मे है उनके चेहरे पर सौम्य मुस्कान फैली है””

भगवन् “””” आगे बोल न सका दक्षांक  “””

कुछ क्षण बाद,,,

गंगा कल कल बह रही थी,नदी के समीप चट्टान पर उदास बैठा दक्षांक सोच रहा था”””

तभी चुडियों की खनखन”””पायल की रुनझून””

वो पलटा सामने से राजकुमारी चद्रबाला  उसी की ओर चली आ रही थी”””

देवी””””””

*

अचानक घोडा रूका, ,राजनायक की तन्द्रा टूटी”” “”

वो भवन के सामने खडा  था””””

अब सारी कडियां जुड चुकी थी”””

वो सोच रहा था की अब आगे का जबाब उसे सध्वी मां से ही प्राप्त  होगा ,की उनका ये त्यागपूर्ण जीवन किसकी देन है””

राजनायक ने सिर को झटक कर  सारे विचार  झटक दिये”””

कक्ष  मे रोशनी फैली हुई  थी”

वो उधर ही बढ गया “”””

बाबा आ गये,चहकती हुई “अमरा,  दक्षांक के करीब आ गयी”””

बाबा आज पता है क्या  हुआ””””

क्या””””

उपवन मे घटित सारी घटना का विवरण एक ही सांस मे  दक्षांक को सुना डाला अमरा  ने”””

बाबा आप कुछ सोच रहे है”””

नही तो””

छुपाओ मत””””

आंखो की गहराई मे झांकती हुई  बोली अमरा ,””

बडा राज है बाबा आपकी आंखो मे””

नही पुत्री””कल की चिन्ता है”‘

चिन्ता “”” कैसी चिन्ता बाबा””

कल से घुड़सवारी  और तीरांदाजी  का प्रशिक्षण लेना है तुमको”””

चिन्ता न करो बाबा,पुत्री हूं आपकी,तीव्रता से सीखूंगी, ,

ठीक है पुत्री”””

मै थक गया हूं ,थोडी देर आराम करना चाहता हूं “”

बाबा मै मालिश कर दूं सिर मे”””चलों””

नही पुत्री उसकी अवश्यकता  नही””””

जाओ तुम भी विश्राम करो कल बहुत कार्य है”””

ठीक है बाबा चलती हूं”””

पुत्री “”‘

जी “

कल से उपवन मे मत जाना”””

कुछ सोचते हुऐ बोले दक्षांक “””

पर क्यूँ  बाबा”””

मै नही चाहता समय से पहले किसी की कुदृष्टि तुम पर पडे”””

जो आज्ञा बाबा”””

शुभ रात्रि”””

रात गहरा गयी थी”””

पर अमरा  की आंखो से नींद कोसो दूर थी”

अमरा”””जैसे किसी ने आवाज दी”””

कौन “””

खिडकी पर एक साया नजर आया “”

संदेश है”””

किसका””‘

तनिक इधर आओ”””

अमरा  शैया से उतरकर द्धार की ओर बढ गयी”‘”‘

रूको सखी”””

पीछे से किसी ने उसका हाथ पकडकर खीच लिया”

अमरा   के पैर जड हो गये!

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रीमा महेंद्र ठाकुर

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