बहु आँखों में आंसू भर अपने सास के पांव पर झुक गई – शनाया अहम : Moral Stories in Hindi

सुनो रजत, मैं अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती , आखिर मैं अकेली क्या क्या करूँ।  मुझे घर दफ़्तर सब देखना पड़ता है और अभी कुछ टाइम में हमारे बीच एक बच्चे की ज़िम्मेदारी भी होगी , ऐसे में तुम्हारी माँ की ज़िम्मेदारी भी मुझे ही उठानी पड़ रही है , वो ख़ुद तो सारा दिन बिस्तर पर आराम फरमाती रहती हैं या तो इधर उधर घर में चक्कर लगाती रहती है। “

निशा , अपने पति रजत के साथ लड़ते हुए अपनी भड़ास निकाल रही थी। 

निशा को समझाते हुए रजत ने उससे कहा कि “निशा , वो मेरी मां हैं , बचपन में ही मैंने अपने पापा को खो दिया था , माँ चाहती तो दूसरी शादी कर सकती थी , सबने उनसे कितना कहा था कि शादी कर लो, अकेले कैसे जी पाओगी , बच्चे को कैसे संभालोगी लेकिन माँ ने सबको एक ही जवाब दिया कि अपना भविष्य मुझे नहीं देखना ,

मुझे मेरे बच्चे का वर्तमान देखना है , शायद मुझे दूसरा पति मिल जाये लेकिन इसकी क्या गारंटी है कि मेरे बेटे को पिता मिल पायेगा , मैं अपने बच्चे को ख़ुद माँ और पिता का प्यार और उसे पालूंगी। 

निशा, माँ ने सिर्फ मेरी ख़ातिर अपनी पूरी जवानी अपने सपने सब क़ुर्बान कर दिए ,,मैं अब उन्हें बुढ़ापे में ख़ुद से अलग करने का पाप नहीं कर सकता. 

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तो अगर उन्होंने शादी नहीं की तो ये उनका फ़ैसला था , और ख़ुद ने शादी नहीं की तो अब हमारी शादी को बिगाड़ कर रख देना चाहती हैं। 

निशा के इतना कहते ही रजत ने एक ज़ोरदार थप्पड़ निशा के जड़ दिया , निशा को रजत से ये उम्मीद नहीं थी , रजत ग़ुस्से से बाहर निकल गया और पीछे से निशा ग़ुस्से से चीखती रह गई.

रजत की माँ निर्मला देवी ये सब सुन चुकी थी और आज उनकी आँखों से आंसुओं की गंगा बह निकली , वो रजत से दूर नहीं जाना चाहती थी लेकिन उनकी वजह से उनके बेटे और बहु के बीच शादीशुदा ज़िंदगी ख़राब हो , वो ये भी नहीं देख सकती थी , इसलिए उन्होंने मन ही मन एक फैसला किया। 

शाम को रजत के वापस आने पर निर्मला देवी ने उसे अपने कमरे में बुलाया , और उससे कहा कि “रजत, मैं तुम्हारी शादीशुदा ज़िंदगी को बर्बाद होते नहीं देख सकती , मेरी वजह से तुम दोनों के बीच रिश्ते बिगड़े ये मैं कभी नहीं चाहूंगी , इसलिए, मैं चाहती हूँ कि तुम दोनों के बीच से हट जाऊं और अलग रहने लगूँ “. 

ये तुम क्या कह रही हो माँ, अगर किसी को इस घर से अलग रहना है तो वो निशा रहेगी , तुम नहीं , ये घर तुम्हारा है , तुम इसी घर में रहोगी मेरे पास।  अगर निशा से साथ नहीं रहा जा रहा तो वो बेशक जा सकती है। 

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रजत, मैं तुम लोगों की गृहस्थी सँभालने की कोशिश कर रही हूँ और तुम हो कि बात बिगाड़ने पर आमादा हो।  मैंने कहा कि मैं तुम दोनों से अलग रहूंगी , इस घर से जाने को नहीं कहा।  तू बस इतना कर ऊपर वाला कमरा खुलवा दे और कुछ सहूलियत का सामान वहां रखवा दे. मेरा खाना पीना ऊपर ही बन जाया करेगा , वहां बस कुछ इंतज़ाम करवाने होंगे। 

नहीं माँ , आप को ऐसे अकेले नहीं रहने दूंगा , रजत ने कहा तो निर्मला देवी की आँखों में ममता के आंसू आ गए। 

उन्होंने रजत को समझाते हुए कहा कि बेटा , मैं तेरी आँखों के सामने ही तो रहूंगी और तुम दोनों मेरी आँखों के सामने। . ऊपर नीचे आते जाते रहेंगे , मैं नीचे न भी आ पाऊं तो तुम दोनों ऊपर आ जाना। 

निर्मला देवी के बहुत समझाने पर रजत ने ऊपर का कमरा सही करवाकर हर सहूलियत का सामान वहां रखवा दिया , साथ वाले छोटे कमरे को रसोई घर में तबदील करवा दिया। 

माँ की देखभाल के लिए एक नौकरानी रखवा दी , जो खाना बर्तन के साथ साथ निर्मला देवी का हर काम करती थी। 

निशा ख़ुश तो थी कि अब उसे सास का कोई काम नहीं करना पड़ता था लेकिन उसे रजत के बर्ताव में अब वो पहले वाली बात नहीं दिखती थी , रजत ने अब निशा से बात करना भी काफ़ी हद तक कम कर दिया था ,लेकिन माँ को ये सब ज़ाहिर नहीं करता था।  

कुछ दिन सब ठीक ठाक चलता रहा।  एक दिन निर्मला देवी की नौकरानी को अपने गाँव जाना पड़ा और संयोगवश रजत भी दफ्तर के काम से बाहर था

उस दिन बारिश हो रही थी और निशा को अचानक से लेबर पेन शुरू हो गया , वो रोने चिल्लाने लगी।  निर्मला देवी ने जब निशा के रोने की आवाज़ सुनी तो उन्होंने ज़ोर से निशा को आवाज़ लगाई लेकिन निशा की हालत नहीं थी कि वो ऊपर जा सके। 

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निर्मला देवी ससमझ चुकी थी की निशा को लेबर पेन शुरू हो चूका है , भारी बारिश के कारण फ़ोन डेड थे , रजत से कांटेक्ट नहीं हो पा रहा था।  निर्मला देवी बहु के लिए परेशान हो उठी थी उधर निशा की चींखे बढ़ती जा रही थी। निर्मला देवी ने बालकोनी में आकर देखा पर मूसलाधार बारिश की वजह से कोई पडोसी या मदद नज़र नहीं आ रही थी।

निर्मला देवी जल्दी जल्दी नीचे उतरी, निशा के कमरे में गई,,,न एम्बुलेंस का इन्तेज़ाम हो पा रहा था, न और कोई मदद थी।।। 

निर्मला देवी ने अपने अनुभव का इस्तेमाल किया, उन्होंने बहुत आराम से अकेले ही निशा की डिलीवरी कराई।।। 

वो एक दाई की तरह निशा की डिलीवरी करवा रही थी और बीच बीच में उसके माथे को माँ की तरह चूम कर सहला कर उसे संभाल रही थी।। 

निर्मला देवी के हाथों उनके पोते का जन्म हुआ। निर्मला देवी खुशी से उछल पड़ी क्योंकि उस पोते में उन्हें अपने बेटे का रूप नज़र आया।।। इतने में सुबह हो चुकी थी और रजत भी वापस घर आ चुका था रजत ने अपने बेटे को गोद में लिया और मां की सारी बातें सुनकर मां के चरण स्पर्श करके उनके गले लगा लिया।

निर्मला देवी ने निशा की गोद में उसके बेटे को दिया तो निशा ने अपने बेटे को गोद में लेने से मना कर दिया जिसके बाद रजत और निर्मला देवी उसका मुंह देखने लगे। रजत ने निशा को कहा अब क्या हुआ, बेटे को गोद में क्यों नहीं ले रही हो ,तुम कैसी माँ हो , तो निशा ने कहा कि मैं अपने बेटे को उतने दिन तक गोद में नहीं लूंगी

जितने दिन तक मैंने तुम्हें तुम्हारी मां से दूर रखा। यही मेरी सज़ा है, मैं भूल गई थी कि माँ सिर्फ तुम्हारी नहीं मेरी भी है और मैंने उन्हें तुमसे अलग करके ऊपर कमरे में भिजवा दिया।।। 

कल अगर माँ न होती तो न जाने क्या हो जाता। रजत समझ चुका था कि निशा को अपनी गलती का एहसास हो गया है , निशा ने धीरे से उठते हुए निर्मला देवी के पैर छुने चाहे, तो निर्मला देवी ने आगे बढ़कर निशा को सीने से लगा लिया।

निशा निर्मला के सीने से लगकर उन्हें माँ पुकार उठी, उसे अपनी गलती का अहसास हो चुका था।।। यह सब देखकर रजत ने अपनी मां से कहा कि मां तेरा बेटा निशा को नहीं सुधार सका लेकिन निशा के बेटे ने उसे सुधार दिया और सब हंसने लगे। 

निर्मला देवी का परिवार एक बार फिर से पूरा हो गया और वो हंसी-खुशी अपने पोते को लेकर उसकी बलायें उतारने लगी।।।

शनाया अहम

VM

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