सूरत तो सभी देखते
सीरत ना देखे कोई,
कोई कोई भगवान का भैया
सीरत जो समझे कोई।
तारा शादी का एल्बम देखते देखते 18 वर्ष पहले की यादों में पहुंच गई। जब तारा को देखने लड़के वाले आ रहे थे।ये छठी बार था जब तारा को कोई लड़के वाले देखने आ रहे थे। रोज-रोज के इस देखने दिखाने से तारा तंग आ चुकी थी और वह लगभग नाराज थी इस सब व्यवस्था से कि आखिर क्यों एक लड़की को उसके रूप रंग से आकां जाता है। आज भी जब लड़कियां लड़को के बराबर पढ़ रहीं हैं, उनके बराबर के ही सब काम कर रही हैं तब भी किसी लड़की के रूप रंग को प्राथमिकता देना उसके नैसर्गिक गुणों की अवहेलना करना कहां तक उचित है।
हालांकि आज शहरों में पढ़े-लिखे लोगों के बीच में पहले जैसे विचार नहीं है,लोगों के विचार बदल रहे हैं, लड़कियों के गुणों को भी समान प्रधानता दी जाने लगी है, पर फिर भी गांव कस्बो में आज भी रूप रंग किसी भी लड़की के गुणो पर भारी पड़ जाते हैं।
तारों के गुणों में भी क्या कमी है, उसे सभी कुछ तो आता है उसकी मां को विश्वास है कि खुद उनकी दोनों बेटियों में तारा में वो सारे हुनर ज्यादा है कि जिस घर भी जाएगी उस घर को स्वर्ग बना देगी। लेकिन क्या करें शादी से पहले सिर्फ रुप के आधार पर ही लड़के वाले किसी लड़की के रिश्ते के लिए हां या ना करते हैं। और यदि लड़की ज्यादा सांवली है तो उसके लिए लड़की के पिता पर शादी का अतिरिक्त बोझ किसी ना किसी तरीके से डाल ही दिया जाता है।
अब तो तारा के पिता के भी जूतियां घुस गई थी ,मां के अरमान फीके पढ़ने लगे थे ,तारा का विवाह हो तो छोटी बेटी की भी कहीं बात करें। बेटियों के बाप की उम्र तो शायद उनके पैदा होते ही मन ही मन उनके ब्याह की तैयारी की व्यवस्था बनाने में निकल जाती है।
आज घर में तारा की ताई और बड़ी बुआ भी आई थी । तारा की बुआ तारा की मां को कहती है ,भाभी तारा को दूध में खसखस मिलाकर लेप लगाया करो थोड़ा तो रंग निखर ही आयेगा।
ताई भी बुआ की हां में हां मिलाते हुए तारा की मां को कहती है, छोटी अरी ओ छोटी जरा मैया की मनौती मांग कर पैसे रख दे कि इस बार हमारी तारा की बात बन ही जाए, ईश्वर इसे अच्छा जीवनसाथी दे।
ये सब बातें सुन सुनकर तारा मन ही मन परेशान और नाराज हो जाती है, पर क्या करें उसे मां-बाप की आंखों का दर्द नजर आता है, नहीं तो क्या नहीं आता तारा को ? घर गृहस्थी तो ऐसे संभालती है जैसे पूर्व जन्म से ही सब सीख कर आई हो ।
आसपास के घरों में भी उसके हाथों की बनी गुझियां,बेडमी पुरियों और दहीभल्लों की बहुत तारीफ होती है। जब तारा की मां तारा के हाथों से सिले नए डिजाइन के ब्लाउज पहनती है तो आसपास की महिलाएं तारीफ करते ना थकती । पड़ोस की किसी भी बेटी का सिंधारा हो या शगुन जा रहा होता तो तारा को विशेष कर उसके हाथों की बनी मीठी मठरी बनाने के लिए बुलाया जाता।
पर क्या करें खुद तारा के लग्न को दिन पर दिन देर हो रही थी। इस बार घर वाले किसी भी कीमत पर तारा का रिश्ता करना चाहते थे।तारा को देखने आया दुष्यंत देखने में बहुत ही सलोना, पर सरल स्वभाव और थोड़े निम्न मध्यम वर्ग के परिवार से था। हर मां की तरह उसकी मां ने भी अपने दुष्यंत के लिए सुंदर सलोनी बहू लाने का सपना देखा था पर दुष्यंत का मानना था कि इस दुनिया में रंग तो दो ही होते हैं, और दोनों ही ईश्वर के बनाए हैं और स्वयं कृष्ण भगवान भी तो श्याम रंग के होकर सबके मन को मोह लेते हैं।
नियत समय पर लड़के वालों का परिवार तारा को देखने पहुंच गया। दुष्यंत को देखते ही तारा की मां का माथा ठनक गया। सोचने लगी इतना सलोना लड़का उनकी तारों को कैसे पसंद करेगा ।वो रसोई में आकर आंसू बहाने लगीं ,तब तारा ने आकर कहा मां इस बार यदि रिश्ता हो गया तो ठीक है , नहीं तो बस फिर कभी उससे ब्याह की बात मत करना ,आप बेफिक्र होकर छोटी की शादी कर देना, वह अपना बुटीक खोलेगी और अपनी अलग पहचान बनाएगी, पर यह सब कहना इतना आसान कहां था। सब बस यही प्रार्थना कर रहे थे कि कैसे भी आज इस रिश्ते को रजामंदी मिल जाए। पर जैसे ही दुष्यंत की मां ने तारा को देखा उनकी पेशानी पर लकीरें खिंच आई, उन्होंने रिश्ते को मना करना चाहा कि तभी तारा की बुआ ने दुष्यंत की मां को तारा के गुण बताने शुरू कर दिए। उन्होंने कहा हमारी तारा सच में एक रोशनी है जिस घर में जाएगी खुशियों से भर देगी आप सिर्फ इसके रंग पर ना जाओ।
हर काम का हुनर है हमारी तारा में, और फिर दुष्यंत जी का भी कदम से कदम मिलाकर साथ देगी हमारी तारा ,देखना आप ही एक दिन कहेंगी बहु हो तो तारा जैसी। बस दुष्यंत को तो कोई खास इनकार था ही नहीं उसने अपनी मां को भी लगभग मना ही लिया।
तारा के स्वभाव और सीरत को जान कर उन्होंने भी न जाने कैसे हां कर दी और आखिर तारा की भी ब्याहनी रात आ ही गई।
शादी के बाद तारा और दुष्यंत ने हालांकि बहुत कष्ट सहे ,बहुत सी परेशानियां उठाईं। लेकिन तारा कदम से कदम मिलाकर दुष्यंत का साथ देती गई और दोनों ने तिनका तिनका जोड़कर अपना घर बनाया। दोनों ही अपने परिवार का संबल और पहचान बने और दो बहुत ही काबिल और होनहार बच्चों की परवरिश की।
आज आसपास के लोग उनके प्रेम समर्पण लगन और स्वभाव की मिसाल दिए बिना नहीं थकते ।आज तारा की सास भी कहती है बहू हो तो तारा जैसी,जिसके आने से उनके घर के दिन फिर गये। ये रुप रंग तो चार दिन की चांदनी है सबसे बड़ा गुण तो मीठा स्वभाव और मेहनती व्यक्तित्व होता है।आज तारा सोचती है कि ऐसा भी नहीं है कि जिंदगी हमेशा नाराज रहे कभी ना कभी तो जिंदगी में खुशियों की चांदनी बिखर ही जाती है।
तभी दुष्यंत बाथरूम से गाना गाते निकलते हैं….. तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हूं मैं, हैरान हूं मैं
इसे सुनकर तारा मंद मंद मुस्कुराने लगती हैं।
ऋतु गुप्ता
खुर्जा बुलन्दशहर
उत्तर प्रदेश