एक कदम – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

अजीब सी चुप्पी थी घर में.., तूफान के बाद का सन्नाटा, वैसे भी कष्टकारी होता है। महेश को घर में घुसते ही समझ में आ गया, कुछ अनहोनी तो हुई है। रसोई की बत्ती भी बंद थी, घड़ी में समय देखा, “सात बजे ही रसोई में सन्नाटा “..। माँ के कमरे में झांका, माँ किताब पढ़ रही, बाऊ जी अपने अखबार में व्यस्त…।

बच्चे भी अपनी किताबों में सर गड़ाए बैठे थे।महेश सोच में पड़ गये। हर समय शोर से गुंजता घर, आज सन्नाटे में क्यों था।दो भाईयों का परिवार और माता -पिता सहित इस घर में हमेशा ही चिल्लपों मँची रहती। इतनी चुप्पी तो कभी नहीं देखी।

कमरे में पहुँचा देखा ,मीरा बिस्तर पर लेटी, चलते पंखे को टकटकी लगाये देख रही थी।”क्या हुआ मीरा ” उनकी आवाज सुनते ही मीरा, बिस्तर से उठ उनके गले लग रोने लगी। समझ गये कुछ खुटपुट हुआ है।

          “रोना बंद करो मीरा, क्या बात है बताओ “

        “आज बड़ी जिज्जी नाराज हो, चली गई,”

     “क्यों, क्या हुआ था “

      मायके की बात चल रही थी, जिज्जी बोली तुम मायके ज्यादा जाती हो, तो मैंने भी कह दिया था,” जिज्जी आप भी तो रोज -रोज मायके आती हो,बस जिज्जी और मेरी बहस हो गई, जीजी को बुरा लग गया”।

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           “वो नाराज हो चली गई “रोते हुये मीरा ने कहा।

       “माँ -बाऊ जी ने रोका नहीं उन्हें “

        “ना, माँ ने एक बार भी जिज्जी को रोका नहीं, ना मुझे डांटा “

       “सुबह से घर में किसी ने खाना नहीं खाया है, आप जिज्जी को मना कर ले आओ “

 मै जानता था, जिज्जी का अक्सर आना, मीरा को अच्छा नहीं लगता था। पर जिज्जी क्या करें, असमय जीजाजी के चले जाने से, मायका ही उनका सम्बल था।इसलिये वो अक्सर मायके आ जाती, पास में ही दस मकान छोड़ उनका घर था ।बड़ी बहू लता थोड़ा शांत स्वाभाव की थी, जिज्जी का दुख समझती थी, अक्सर वो जिज्जी को बुला लेती थी, पर उग्र स्वाभाव की मीरा को, जिज्जी का जब -तब आना खटकता था। इसलिये आज उसका बेसब्र होना, मुझे हैरान कर दे रहा

जिज्जी के घर पंहुचा तो फोन पर बात कर रही थी, “तुम ने ही तो कहा था, मै रोज -रोज आती हूँ, अब नहीं आऊंगी”…. क्या खाना नहीं खाया तुम सब ने “..। चल महेश घर चलते, जब तक मै कुछ कहता या पूछता, जिज्जी बच्चों को बाहर निकाल, ताला बंद करने लगी।”मीरा को देखो, सुबह से कुछ खाई नहीं, अरे लड़ाई -झगड़ा तो होता ही रहता, ननद -भाभी में “..।

जो घर कुछ देर पहले, अजीब सी चुप्पी में डूबा था, अपने पुराने रूप में लौट आया। रसोई से मसाले की तेज खुश्बू आ रही थी, जिज्जी की पसंद का मटर -पनीर बन रहा था। जिज्जी को देखते ही मीरा भाग कर जिज्जी के गले लग गई “जिज्जी मुझे माफ कर दो “..। मीरा का ये ह्रदय -परिवर्तन मेरे लिये रहस्य बन गया। माँ -बाऊ जी भी जिज्जी को देख खुश हो गये।

इतनी देर बाद मुझे याद आया ऑफिस से आने के बाद, मैंने चाय भी नहीं पिया। भूख की तीव्रता को महसूस कर, मै जल्दी -जल्दी हाथ -मुँह धो रसोई में पंहुचा, दोनों ननद -भाभी अपनी प्लेट में खाना निकाल एकदूसरे को खिला रही। मै चिल्लाया -मुझे भूख लगी है,

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  “भाई थोड़ा सब्र कर, हम खा ले, फिर तुम्हे देते “

            जिज्जी के वापस जाने के बाद मैंने बच्चों से पूछा “आज क्या हुआ था “

     “मम्मी और बुआ में अचानक बहस होने लगी, बुआ खाना छोड़ कर, रोते हुये चली गई,”

     “तब तो दादी ने जरूर तेरी माँ को डांटा होगा “

      “नहीं, पापा, दादी और दादू ने, माँ को एक शब्द नहीं कहा, जबकि बुआ ने उनसे शिकायत भी की थी,”।

           रात मीरा ने रहस्य से पर्दा उठाया, उनका झगड़ा होने के बाद जब जिज्जी चली गई, तो मीरा को लगा, माँ, बेटी का पक्ष ले उसे डाटेंगी, पर माँ ने उसे कुछ नहीं कहा, तो मीरा को आत्मग्लानि हुई। आखिर जिज्जी का भी तो इस घर में हक़ है।अगर माँ, मीरा को डांट देती तो मीरा को अपनी गलती समझ में नहीं आती।

              माँ का समझदारी वाला एक कदम, घर की खुशियों को वापस कर गया।माँ ना सास बनी, ना माँ बनी, निरपेक्ष रह कर रिश्ते संभालना दोनों को बता दिया।दोस्तों घर में कई बार छोटे -छोटे मनमुटाव, बड़े हो जाते। ननद -भाभी का रिश्ता, ऐसा ही होता है, जो संभाल लो तो सुन्दर हो जाता,और छोड़ दो तो बिगड़ जाता है..।

                                      —-=संगीता त्रिपाठी 

         #नाराज

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