नाराज़ – मधु वशिष्ठ : Moral Stories in Hindi

खुशी-खुशी माताजी ने घर में प्रवेश करा। उनकी आवाज सुनकर शोभा अपनी कमरे से बाहर निकली और मुस्कुराते हुए उनका स्वागत करके चाय बनाने रसोई में चली गई। उनकी बेटी राधिका कॉलेज गई हुई थी।

बाबूजी भी खाना खाकर दुकान पर चले गए थे। विनय दोपहर को दुकान से खाना खाने घर आया था। नियम के अनुसार विनय के दुकान पर जाने के बाद बाबूजी शाम को जल्दी घर आ जाएंगे। 

        माताजी पिछले सप्ताह से अपने मायके में भाई के घर पोता होने के कारण गई हुई थी। असल में तो अपनी बूढ़ी मां के साथ समय बिताने की उनकी बहुत इच्छा थी और अपनी बहु रानी शोभा के घर संभालने पर उन्हें पूर्ण विश्वास था

इसलिए वह बेफिक्र हो कर चली गई थी। घर आईं तो जैसा उन्होंने सोचा था शोभा ने घर उससे भी अच्छी तरह से घर संभाला हुआ था।

       राधिका का कॉलेज पास ही था तो इसीलिए कई बार लंच टाइम में उसकी हॉस्टल की सहेलियां भी घर में खाना खाने के लिए आ जाती थी। शोभा बहुरानी को घर का काम करने में कोई एतराज नहीं होता था लेकिन विनय अपनी पत्नी शोभा को हर सुख और

आराम देना चाहता था। शोभा को जब भी वह घर में काम करते देखता था तो उसे हमेशा यूं ही लगता था कि जाने शोभा पर कितना अत्याचार हो रहा होगा।

         माताजी की अनुपस्थिति में शोभा का काम भी बढ़ ही गया था। अभी 2 दिन पहले की ही बात है राधिका की भी परीक्षा नजदीक ही थी इसलिए हॉस्टल में रहने वाली राधिका की सहेलियां भी राधिका के साथ आकर ही पड़ रही थी। शोभा अपनी ननद राधिका की सहेलियों के लिए लगातार रसोई में ही लगकर उनके कुछ खाने के लिए बना रही  थी।

     विनय को भी खाना खाने घर में आया देख शोभा ने जब विनय को भी खाना दिया तो विनय शोभा से बोला कामवाली तो आ नहीं रही है और सारा काम अब तुमको खुद ही करना पढ़ रहा है

तो तुम राधिका को अपनी सहेलियों को घर लाने के लिए मना क्यों नहीं करती? वह नाराज़ होते हुए बोला राधिका को बोलो माताजी भी नहीं है तो कम से कम रसोई में ही तुम्हारी सहायता करवाएं।

     विनय को लगातार भुनभुनाते हुए देखकर शोभा ने विनय को राधिका को कुछ भी कहने से मना कर दिया। शोभा ने विनय को कहा एक तो माता जी भी नहीं है, दूसरे उसके पेपर भी हैं। इसीलिए ही राधिका की हॉस्टल वाली सहेलियां अगर यहां आकर के देर

तक पढ़ लेती हैं और घर का खाना खाती हैं तो राधिका का मन भी पढ़ाई में लग जाता है और उसकी पढ़ाई भी हो जाती है मुझे काम करने से कोई फर्क नहीं पड़ रहा। अच्छा है राधिका अपने घर में ही तो है। तुम बिना वजह परेशान और नाराज ना हुआ करो और अपनी दुकान संभालो।

      शोभा विनय को कुछ नहीं कहती थी और सच मानो तो घर में सब शोभा को इतना प्यार करते थे कि उसे कभी महसूस ही नहीं होता था कि वह किसी का भी काम कर रही है।

वह अपने मायके में जिसमें कि बहुत बड़ा संयुक्त परिवार था यूं ही काम करती रहती थी और उसे सबका साथ बहुत अच्छा लगता था। राधिका की सारी सहेलियां भी शोभा भाभी को बहुत प्यार और सम्मान देती थी।

    राधिका को घर में काम करते देख विनय को लगातार यही महसूस हो रहा था कि शोभा को माता जी की अनुपस्थिति में घर का कितना काम करना पड़ रहा है वह थक भी जाती है।

इस बात का उसे इतना गुस्सा था कि रात को शोभा ने जब पापा और राधिका को दूध देने के बाद रसोई में बर्तन समेटने चाहे तो वह चिल्लाकर बोला थोड़ा आराम भी कर लो किसी को कोई फिक्र थोड़ी ना है तुम कितना काम कर रही हो? 

       इतना सुनते ही घबराकर अपने कमरे में पढ़ती हुई राधिका कमरे से बाहर आई और बोली भाभी आप थक गई होगी, आप सोने चली जाओ यह रात के दूध वाले बर्तन मैं धो कर सो जाऊंगी।

अरे नहीं पगली, तुम अपनी पढ़ाई करो। मेरे लिए तो यह सिर्फ 2 मिनट का काम है, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कहो तो तुम्हारे लिए भी एक कप चाय बना दूं तुम्हें तो देर रात तक पढ़ाई भी करनी है।

नहीं भाभी, अगर मुझे पीनी होगी तो मैं बना लूंगी प्लीज आप सो जाओ। शोभा को विनय का इस तरह से बोलना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा था।

         अभी जब माताजी आकर बैठी तो शोभा घर का काम समेट कर तभी अपने कमरे में आराम करने के लिए आई थी। विनय तब दुकान से खाना खाने के लिए आया हुआ था जैसे ही शोभा माताजी के आने पर कमरे से बाहर

भागी तो विनय इससे पहले कि माता जी को कुछ भी बोले शोभा ने विनय को कहा कि मुझे कोई परेशानी नहीं हो रही है और हुई भी नहीं थी। प्लीज  माताजी अभी अभी आई हैं बिना वजह उनसे कुछ मत कहना मैं वास्तव में खुश हूं।

         बाहर आकर शोभा ने जब माताजी के पैर छुए तो उन्होंने शोभा को ढेरों आशीर्वाद दिए और कहा बेटा तूने घर को कितनी अच्छी तरह से संभाला हुआ है सिर्फ तेरे ही कारण मैं अपनी मां के पास इतने दिन रह कर आ पाई हूं।

परमात्मा ने मुझे कितनी अच्छी बहू दी है।सदा सुहागन रहो विनय को भी बाहर आया देखकर वह बोली तुम दोनों की जोड़ी सलामत रहे। माताजी ने शोभा और विनय के लिए लाए हुए बहुत सारे उपहार निकालकर शोभा को दिए।

विनय दुकान जाते हुए यह सब देख रहा था। दोनों की आंखों में झलकती खुशी देखकर उसे शोभा की कही हुई यह बात समझ आ रही था कि सच्ची खुशी घर का हिस्सा बनने से होती है ना कि अलग होने से। सारे हक अपनी जिम्मेदारी पूरी करने से स्वत: ही मिल जाते है।

मधु वशिष्ठ 

#नाराज़

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