बस बहुत हुआ अब ओर नहीं ना एक शब्द ना एक और दायित्व कुछ नहीं ।
कुछ नहीं करेंगे अब मेरे माँ पापा किसी के लिए भी सिवाय नानी माँ के क्योंकि वो उनकी जिम्मेदारी है जो उन्होंने अपने पूरे मन से ली है और सच्चे मन से निभा भी रहे है।पर आप लोग उनकी जिम्मेदारी नहीं है फिर भी वो आप लोगों को निभाते आ रहे है पर बस अब ओर नहीं।
देख मीनल तुझे बीच में पड़ने की कोई जरूरत नहीं और वैसे भी किस बात पर इतनी नाराजगी दिखा रही है ? अरे नाराज तो हमें होना चाहिए कि हमारी अच्छे से आवभगत नहीं की जाती यहाँ। हम आते है तो हमारे लिए तेरे माँ-बाप दो दिन आफिस से छुट्टी नहीं ले सकते क्या ?महीने दो महीने में एक दो बार आते है हम और उस पर भी तुम लोग हमारी पूछ नहीं कर सकते।
ये तेरी नानी मेरी भी माँ है मौसी हूँ मैं तेरी।
इस घर पर मेरा भी बराबर का हक है।
हक के लिए कौन मना कर रहा मौसी लेकिन दायित्वों का क्या वो भी तो बराबर है आपके और मेरी माँ के अपनी माँ यानि मेरी नानी के लिए।
वो क्यों भूल जाते हो आप?
खैर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप केवल हक जताना जानते हो फर्ज निभाना नहीं ।वो आपके और नानी जी के बीच की बात है लेकिन मेरे माँ-पापा को परेशान करने या उनकी बेइज्जती करने की कोशिश भी करने का आपको कोई अधिकार नहीं है।
देख मीनल अब तु बहुत ज्यादा बोल रही है ।
तेरी माँ-बाप यहाँ तेरी नानी के साथ उनकी देखभाल करने यहाँ आए है। और यहीं रहते है तो यहाँ आने वाले हर व्यक्ति की सेवा तो उन्हें करनी पड़ेगी ही। हम जब भी आएँगे तो हमारी नौकरी तो बजानी ही पड़ेगी उन्हें भी और तुम दोनों भाई बहन को भी।
ये नाराज होने का नाटक क्यों?
यहाँ क्या मुफ्त में रहोगे।मेरी माँ की अच्छी देखभाल और आने जाने वालों का सारा काम तो करना ही पड़ेगा तुम लोगों को।
मुफ्त कैसे मुफ्त बताना आप जरा।
मीनल चुप हो जा बेटा जाने दे दीदी बड़े है हमसे
मनोज जी अपनी बेटी को चुप कराते हुए बोले।
क्यों पापा क्यों चुप करें दीदी ?
आप और माँ हमेशा खुद भी चुप रहे और हमें भी चुप करते रहे उसी का नतीजा है ये कि आज अपना सब कुछ दाँव पर लगाकर और सारे फर्ज निभाकर भी हम इनकी बकवास सुन रहे है और यह कुछ ना करके केवल हक और घमंड बता रहे है।
पर अब और नहीं पापा। दी और मैं आपके हर फैसले हर फर्ज को निभाने में आपके साथ है पर आपके और माँ के लिए जो हमारा कर्तव्य है हम उसे भी निभाएँगे। आप दोनों का मान सम्मान हमारा दायित्व है और उसे हमें पूरा करने से कोई नहीं रोक सकता।
विशु ने अपनी बहन का साथ देते हुए कहा और अपने माँ पापा को आराम से बैठाया।
हाँ मौसी अब जब बात बढ़ाई ही दी है आप लोगों ने और चार लोगों को इकट्ठा कर ही लिया है तो अब सारी बातें खुल ही जाए तो अच्छा है।हम भी अपने घर में शांति चाहते है जो आपको पसंद नहीं तो आज सब फैसले हो ही जाए।
आप कर्तव्य और फर्ज की बात कर रही थी ना तो जरा बताइए आज तक कौन सा फर्ज निभाया आपने अपने माँ पापा के लिए।
जब नानाजी बीमार हुए तब आप लोग यह कहकर नहीं आए कि उन्हें कैंसर है छूत का रोग है इसलिए आप नहीं आ सकते। तब हमारे माँ पापा हमें यानि अपने स्कूल जाते बच्चों को अपने पड़ोसी के भरोसे छोड़कर अपने ऑफिस से छुट्टी लेकर यहाँ उनकी सेवा कर रहे थे।
आपने तो हर जरूरत के वक्त अपने संयुक्त परिवार और व्यापार का बहाना दिया कभी ये सोचा कि आपकी बहन जो एकल परिवार और नौकरी करने वाले लोग है वो कैसे सब करते होंगे।
नानाजी के जाने के बाद जब उनकी पेंशन पापा ने भाग दौड़कर निकलवायी तब आपने कहा कि वो पैसे पापा को चाहिऐ । जब नानी की देखभाल के लिए मेरे पापा ने अपनी नौकरी छोड़कर यहाँ कम वेतन पर नौकरी करना स्वीकार किया तब भी आप लोगों ने यहीं कहा। पर यहाँ मौजूद हर इंसान जानता है कि हमने आज तक नानी से एक पैसे की मदद तक नहीं ली उल्टा उनके खर्च भी पापा उठाते है।
ऊपर से आप लोग भी जब तब आकर बेफूजूल की हरकतें करके उन्हें ही परेशान करते है उल्टा सीधा कहते है ।
वो यहाँ पैसों के लिऐ नहीं है रिश्तों के लिए है, क्योंकि मेरे दादा दादी तभी गुजर गए थे जब पापा 16साल के थे।
नानी के अकेले होने के बाद यहाँ शिफ्ट होने का फैसला पापा ने इसलिए लिया क्योंकि वो चाहते थे कि वो अपने माँ-बाप की सेवा तो कर नहीं पाए पर यह भी तो माँ है तो इनकी तो सेवा करे।
मम्मी और हम तो चाहते ही नहीं थे यहाँ आना पर पापा ने मम्मी को कहा कि उनका एक कर्तव्य नानी के लिए भी है तो अपने बेटी होने का फर्ज निभाऐ।
और हम सब आजतक अपना फर्ज निभा रहे है ।
लेकिन आप यह बताओ कि आपने कौन सा फर्ज निभाया या आप केवल दूसरों की बेवजह बेइज्जती करने का अधिकार ही जानते हो?
मौसी और उनका परिवार चुप था और नानी और बाकी सब सच के साथ।
मौसी आप हमारी बड़ी हो आपका सम्मान करना हमारे संस्कार और फर्ज दोनों है और वो हम हमेशा निभायेंगे।
लेकिन हमारे माँ पापा की इज्जत और सम्मान बनाए रखना हमारा पहला और सबसे जरूरी संस्कार और दायित्व और वो निभाना हमारा पहला धर्म।
तो बिना बात का बतंगढ़ बनाना और रिश्तों को उलझाना छोड़िए । सबको प्रेम पूर्वक साथ लेकर चलिए और अपना दायित्व निभाइऐ।ताकि हम छोटे भी आप से कुछ अच्छा सीखें और सही राह चुनें।
मीनल के माँ पापा गर्व से सर तान कर अपने बच्चों को देख मुस्कुरा दिऐ ।
स्वरचित
स्वाती जितेश राठी
#नाराज