बहू … क्या यह अच्छा लगता है तुम्हारी बहन हर दूसरे दिन यहां आ जाती है और फिर तुम दोनों दोपहर की गई हुई रात को घर वापस आती हो, बेटा..
अभी तुम्हारी नई-नई शादी हुई है अभी तुम्हें अपना सारा समय प्रतीक के साथ गुजारना चाहिए, तुम दोनों साथ-साथ घूमो फिरो, दोनों एक दूसरे को समझने की कोशिश करो,
जितना भी समय मिले एक दूसरे के साथ बिताओ बजाय इसके तुम अपनी बहन के साथ दिनभर घूमती रहती हो, क्या तुम्हारी बहन तुम्हें कोई सलाह नहीं देती
या उसे बिल्कुल भी शर्म नहीं है कि तुम्हारी नई शादी हुई है तुम्हारी नई गृहस्ती में आकर अनावश्यक हस्तक्षेप ना करें, वह तो खुद शादीशुदा है और अपने ससुराल में रहती है
फिर उसके पास इतना फालतू समय कहां से आता है, बेटा बुरा मत मानना पर ऐसी औरतें ही घर तोड़ने के लिए जिम्मेदार होती है, कहना मेरा फर्ज था बाकी तुम खुद समझदार हो!
शकुंतला जी के इतना कहते ही प्रतीक घर आ गया, तब प्रतीक की पत्नी रीता ने प्रतीक से कहा….. प्रतीक.. क्या मेरा इस घर में कोई हक नहीं है?
क्या मैं अपनी मर्जी से मेरे मायके वालों को यहां बुला भी नहीं सकती? तुम्हारे घर वालों को तो हमेशा ही उनसे आपत्ति रहती है, मैं इनके साथ नहीं रह सकती ,
कभी यहां मत जाओ, कभी ऐसे मत रहो तंग आ गई हूं मैं इनसे , मुझे लगता है अब हमें अलग घर ले ही लेना चाहिए! रीता की इस बात पर प्रतीक और उसके माता-पिता ने रीता को बहुत समझाने की कोशिश की किंतु अब
उसे लगने लगा उनके साथ रहकर उसकी आजादी में व्यवधान पड़ेगा,अंततःवह अलग होकर ही मानी! अलग होने के बाद उसे पता चला कि वह गर्भवती भी है,
कुछ दिन तो उसके अच्छे से निकले किंतु जब डॉक्टर के चेकअप के बाद उसे डॉक्टर ने कहा कि अब तुम्हें बिल्कुल आराम की जरूरत है तो उसका घूमना फिरना सब बंद हो गया
और जब उसने अपनी बहन से कहा.. नताशा दीदी… अब आप को ही मेरा पूरा ध्यान रखना है, और मुझे भी आपकी जरूरत रहेगी, तब नताशा ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया देखो..
रीता मेरे घर में भी बहुत सारे काम रहते हैं, मैं तो तुम नई-नई थी इसलिए तुम्हें संभालने आ जाती थी, मेरी भी गृहस्थी है, अब तो तुम खुद मां बनने वाली हो तो अब तुम्हें अपना ध्यान स्वयं को ही अच्छे से रखना होगा,
इसमें मैं क्या कर सकती हूं, और तुम्हें तो पता ही है मैंने कभी भी इतनी जिम्मेदारी वाला काम नहीं किया है हमेशा मेरे ससुराल वालों ने ही मेरी जिम्मेदारियां उठाई है,
अपनी बहन की बात सुनकर वह पछताने लगी, खुद अपनी बहन ससुराल वालों के साथ रहती है और मुझे अलग होते वक्त एक बार भी नहीं कहा कि तुम ऐसा कदम मत उठाओ,
अपने सास ससुर और दो प्यारी प्यारी नंद को छोड़कर आजादी की सुख में नए घर की तलाश तो कर ली किंतु क्या वह सच में आजाद हो गई बल्कि अब तो वह और बंदिश में बंध गई,
यहां तक की प्रतीक भी अब गुमसुम सा रहने लगा था, शाम को प्रतीक के आते ही उसने कहा… प्रतीक मुझे अपने घर जाना है मुझे मेरी गलती समझ में आ गई,
तुम्हारे मम्मी पापा और बहनों ने इस दिन के लिए कितने सपने देखे होंगे कि उनकी बहू या भाभी आएगी और उसके बच्चों को वह अपने आंगन में खेलता हुआ देखेंगे,
कितनी सारी उम्मीदें मुझ से लगाई होगी जिन्हें मैने एक झटके में ही तोड़ दिया, कितनी चीज जोड़कर रखी होगी उन्होंने अपने पोते पोतियो के लिए, मैंने उनसे उनके सारे हक छीन लिए,
मैं उनकी इकलौती बहू होने के बावजूद यह सब कैसे भूल गई प्रतीक, क्या तुम मुझे अपने घर वापस ले चलोगे? प्रतीक तो कब से इस दिन के इंतजार में बैठा था,
वह अगले दिन ही रीता को लेकर अपने घर पहुंच गया! रीता और प्रतीक को देखकर सभी घरवालों के चेहरे खुशी से खिल उठे, रीता ने सास ससुर से अपने किए व्यवहार की माफी मांगी!
रीता के सास ससुर ने कहा…. बहू ..हर मां-बाप की तरह हमने भी सपने देखे थे कि हमारे भी बेटे की शादी होगी, बहू आएगी, कल को उसके बच्चे इस आंगन में खेलेंगे,
मैंने तो तुम्हें कभी बहू जैसा समझा ही नहीं, हमेशा अपनी बेटियों की तरह ही प्यार दिया था, कहां कमी रह गई हमारे प्यार में, और बहू.. आज भी तुम्हारा इस घर पर उतना ही हक है
जितना पहले था, बल्कि मुझे तो इस बार बहुत खुशी है कि तुम्हें अपनी गलती समझ में आ गई और ऐसा कहकर सासू मां ने रीता को अपने गले से लगा लिया और फिर सारा परिवार एक साथ खुशी के ठहाके लगा रहा था!
सही समय आने पर रीता ने एक प्यारी सी गुड़िया को जन्म दिया, इसके बाद तो उसके घर में खुशियां ही खुशियां थी वह समझ गई इन खुशियों पर सबका हक है
और वह उनसे उनके कितने सारे हक छीन रही थी, अब वह यह सोचकर खुश थी चलो सही समय पर उसे अपनी गलती का एहसास हो गया वरना वह इतने प्यारे परिवार के सुख से हमेशा के लिए वंचित हो जाती!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
कहानी प्रतियोगिता हक (खुशियों पर सबका हक है)