नहीं …..हमारे खानदान में ऐसा कभी नहीं हुआ और जब तक मैं जिंदा हूं मैं किसी को ऐसा करने नही दूंगा.. हमेशा की तरह मैंने गुर्रा कर सबको चुप कराने की कोशिश कर दी थी।
लेकिन इस बार स्थिति कुछ अलग दिखी मुझे ।आज पहली बार अपने घर में अपनी बात का विरोध करने के स्वर उभरते दिखे मुझे..!
लेकिन पापा पहले आप हमारी बात तो सुन लीजिए…छोटी बेटी ने कुछ कहना चाहा था लेकिन तब तक मैं उसे अनसुनी छोड़ बाहर चला गया था।
उनसे तर्क करना और अपनी बातें मनवाना मेरे बस के बाहर था।ऐसी ही बारिश से बचाव के लिए तो मैं छतरी खोल लेता था।विचारो का आदान प्रदान और पारस्परिक विचार विमर्श से घरेलू राय बनाना हमारे खानदान के विरुद्ध था।
मां आप पापा से कुछ कहती क्यों नहीं देखिए कितनी तानशाही है पापा की …..निकलते समय छोटी बेटी का अक्रोशित स्वर मेरे कानो में पड़ गया था।
मां सुरभि क्या कहती..!!
शादी के बाद ही जब सुरभि ने नौकरी करने की इच्छा जाहिर की थी तब भी मैने खानदान की इज्जत की दुहाई देकर उसे घर की चहारदीवारी में रहने को विवश कर दिया था।
कुछ महीनो बाद जब उसने फिर से घर पर ही मोहल्ले के कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने की बात कही तब तो मैं आगबबूला ही हो गया था।
यही कसर रह गई है खानदान की इज्जत डुबोने के लिए मेरी कमाई क्या कम पड़ जाती है तुमको जो ये बार बार कमाने का मुद्दा उठाती रहती हो पिता जी सुनेंगे तो घर से बाहर निकाल देंगे।
पिता जी ने सुना तो बरस ही पड़े
अपनी घरवाली को अच्छी तरह से समझा दे इस खानदान के मरद अपनी कमाई का खाते और खिलाते है औरत की कमाई हाथ नहीं लगाते!!
इसके बाद फिर कभी सुरभि ने अपनी कोई इच्छा जाहिर नहीं की थी।
मैं अब बहुत प्रसन्न था.. शायद मेरे अहम को संतुष्टि मिल गई थी क्योंकि शादी के बाद से ही मेरे दिल के किसी कोने में यह कटु सत्य हमेशा दस्तक देता रहता था कि मेरी पत्नी सुरभि मुझसे ज्यादा पढ़ी लिखी और समझदार है। यह बात मुझमें हीन भावना भर देती थी ।अगर वह मोहल्ले के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लग जाती तो निसंदेह पूरे मोहल्ले में उसका गुणगान गूंजने लगता ।लोग मुझसे तुलना करने लगते और मुझे कमतर आंकते उसकी तारीफ करते रहते ये सब मेरे लिए असह्य हो जाता।
पुरुष अपना वर्चस्व सदैव कायम रखना चाहता है।नारी को तन से मन से असहाय करने की उसकी मुहिम प्रतिपल जारी रहती है ।
फिर तो जब भी सुरभि की मांगों या ख्वाहिशों की बारिश तेज होती जो मेरी संकीर्ण सोच या सामर्थ्य के परे होती मैं खानदान रूपी छतरी की शरण में चला जाता और उसे मूक करा देता।
एक बार उसके मायके की एक शादी में जब उसने बारात जाने और नृत्य करने की बात बताई तब मैं उखड़ गया था तुम्हारे मायके के खानदान का तो पता नहीं परंतु तुम यह मत भूलना कि हमारे खानदान की बहुएं सड़क पर नहीं नाचती हैं आइंदा इस तरह के ओछे विचार मत लाना।
सुरभि और उसकी बहन का मुंह उतर गया था।सुरभि ने कुछ कहा नहीं था लेकिन फिर वह उस शादी में गई ही नहीं थी क्योंकि उसके मायके में तो बारात जाना और नृत्य करना बड़े सम्मान की बात मानी जाती थी अगर वह जाती और नृत्य करने से यह कहकर इनकार कर देती कि उसके ससुराल में ऐसा करने की मनाही है तो उसकी ससुराल की इज्जत सबकी नजरों में कम हो जाती अतः उसने ना जाना ही श्रेयस्कर समझा।
मैं जानता था सुरभि बहुत धैर्यवान और समझदार है मेरे विरुद्ध नहीं जाएगी मेरे विरुद्ध जाना मतलब पूरे खानदान के विरुद्ध जाना हो जाता।
सुरभि ने अपने आपको पूरी तरह से घर गृहस्थी और दोनों बेटियों श्रुति और प्रीति के पालन पोषण शिक्षा दीक्षा के कर्तव्य निर्वहन में समर्पित कर दिया था।
सुरभि की मेहनत का परिणाम था की श्रुति और प्रीति पढ़ाई में हमेशा अव्वल आती रहीं।मुझसे तो दोनों बेटियों की बोलचाल बहुत कम होती थी।
हमारे खानदान में पिता लोग बच्चों के साथ खासकर पुत्रियों के साथ एक दूरी बनाए रखते थे ज्यादा बातचीत हंसी मजाक नहीं करते थे।मेरे पिता जी तो हमेशा ताना ही देते रहते थे खानदान को आगे बढ़ाने वाला कोई वारिस नहीं दिया इन लड़कियों का मैं क्या करूं!!दोनो पुत्रियों के जन्म के बाद से तो सुरभि की पिता जी से बातचीत ही बंद हो गई थी।
दो बेटियों का असहाय पिता… मैं शर्म और ग्लानि के बोझ तले प्रतिदिन दबता जाता था।जिसके सिर्फ बेटियां हों बेटा ना हो ऐसा पिता कितना अभागा होता है वंश आगे ना बढ़ा पाने का पाप मुझे खाए जाता था और यही आत्मग्लानी मुझे दोनों बेटियों से उनके अव्वल आने से उनकी उपलब्धियों से कोसों दूर कर देती थी।
उन्हें देख हमेशा मेरे दिल से आह सी निकलती थी काश इनकी जगह मेरे दो बेटे होते..!! शायद मेरी बेटियां उनके प्रति मेरे उलाहना पूर्ण बर्ताव को बखूबी महसूस करती थीं।
वैसे भी बेटियों की प्रतिभा वृद्धि में भी सुरभि का ही एकतरफा योगदान था दोनो बेटियां भी मां से ही हिलिमिली थीं हर सलाह मां से ही लेती थीं हर जिज्ञासा का समाधान मां से ही करवाती थीं यह बात भी मुझे बहुत चुभती थी ।मेरी ही बेटियां मुझसे डर कर रहतीं थीं संकोच करती थी मुझे आते देख उठ कर दूसरे कक्ष में चली जाती थीं।
पर शायद मैं यही चाहता भी था मैने भी कभी उनके पास आने की उनके दिल की हिस्सेदारी करने की कोशिश ही नही की।बल्कि उन्हें और उनकी मां को कमतर साबित करने के सुअवसर तलाशने में ही लगा रहता था।
इसीलिए आज जैसे ही सुरभि ने बड़ी बेटी को बाहर हॉस्टल में रख कर पढ़ाने की बात उठाई मैं तिलमिला गया “….सुरभि तुमको हर बार याद दिलाना पड़ता है कि इस खानदान की यह रीत नहीं है लड़कियों को ज्यादा पढ़ाना लिखना वो भी बाहर भेज कर अनुचित है।अब इनकी उम्र है शादी करके घर गृहस्थी बसाने की ।शादी के बाद जो करना हो पति से पूछकर करती रहना।
घर से बाहर मैं आ तो गया था लेकिन दिल दिमाग मेरे पीछे घर पर घटित होने वाली प्रतिक्रियाओं की कल्पना में व्यस्त था।
शाम के झुटपुटे में घर वापिस आया ।मेरी आदत में शामिल था घरेलू जिम्मेदारियों को सुरभि पर या खानदान की गर्दन पर रख अपनी जिम्मेदारियों से किनारा करने की।
यही सोच कर आज भी घर में प्रविष्ट हुआ था कि दोनो बेटियों की उभरती ख्वाहिशों को सुरभि ने अब तक शांत कर दिया होगा और अब घर में मेरे अनुकूल वातावरण निर्मित हो गया होगा।
आते ही देखा तो दो सूटकेस बैठक में रखे हुए थे..!!
पापा हम लोग दीदी का एडमिशन करवाने जा रहे हैं।दीदी ने बहुत मेहनत की थी तब जाकर इतने बड़े कॉलेज में एडमिशन हो पाया है उसके भविष्य का सवाल है छोटी प्रीति ने देखते ही तोप का गोला दाग सा दिया था..!
आग लग गई मुझे!!
..” इतनी हिम्मत तुम लोगो की..!! क्यों सुरभि ये तो बच्चे है तुम्हारी अक्ल घास चरने गई है क्या!! खानदान की इज्जत की कोई परवाह ही नही है.. मैंने फिर अपनी छतरी खोल ली थी।
जी अभी तक घास ही चरने गई थी आज ही तो अकल आई है मुझे ।शादी के बाद मैने भी अपने पति से पूछ कर अपनी ख्वाहिशें पूरी करनी चाही थीं लेकिन संभव नहीं हो पाया।हर बार खानदान की दुहाई देकर मुझे कमजोर कर दिया गया।आज अपनी इन बेटियो में भी मुझे अपनी ही जिंदगी का प्रतिबिंब दिखाई देने लगा तब मैं व्याकुल हो गई और आज पहली बार सोच समझ कर बेटियों के अनुसार निर्णय लेने की हिम्मत कर रही हूं।
मेरा मानना है कि खानदान कोई नमक की डली नही है जो छोटी मोटी बातों से बिखर जाता है ।हर खानदान समयानुसार नए और सार्थक विचारों को अंगीकार करने से और भी सम्मानित और समृद्ध होता है।अगर मेरी बेटियां ज्यादा सुशिक्षित होंगी नौकरी करेंगी धनार्जन करेंगी तो स्वावलंबी बनेंगी समाज को नई दिशा दे सकेंगी
समाज उन पर गर्व कर सकेगा खानदान की इज्जत बढ़ेगी … जो अच्छा काम तब नही हुआ था वह आज भी ना हो केवल इसलिए कि खानदान में ऐसा नहीं होता ये असंगत और अव्यवहारिक है। हमें जिम्मेदार माता पिता की तरह अपनी बेटियों को बेटो की ही तरह मानकर आगे बढ़ने और सार्थक जिंदगी जीने का हौसला देना चाहिए…कहते कहते सुरभि हांफ सी गई थी मगर अपने फैसले पर अडिग थी।
मां चलो कैब आ गई है छोटी ने मां का हाथ पकड़ कर कहा और तीनों मेरे उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही कैब में बैठ गए थे… एक नई राह की ओर एक नई मंजिल की ओर…!!
एक ही झटके में सुरभि ने आज मेरी छतरी उतार दी थी….और मैं बिना छतरी के पहली बार इस भीषण बारिश में भीग रहा था …ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो बाढ़ आ गई है जो अपने प्रवाह में आज मेरे रूढ़िवादी संकीर्ण नकारात्मक विचारों को अपने साथ बहाए लिए जा रही थी….!!
लतिका श्रीवास्तव
खानदान की इज्जत#