“बेटा!.मेरे चश्मे का शीशा टूट गया है,.इसे रख लो! दफ्तर जाते वक्त बनवा देना!”
राजिव की मांँ अंजना जी अपना चश्मा वहीं टेबल पर रख कर अपने कमरे के भीतर चली गई।
दफ्तर जाने के लिए तैयार हो रहा राजीव अपनी मांँ का टूटा हुआ चश्मा उठाकर अपनी शर्ट की ऊपर वाली जेब में रख ही रहा था कि कॉलेज के लिए निकल रही उसकी छोटी बहन सलोनी ने उसे टोक दिया..
“भैया!.मेरे कॉलेज की फीस जमा करने की कल अंतिम तारीख है!”
“मैंने तुम्हारे कॉलेज की फीस कल ही जमा कर दी है!. तुम निश्चिन्त होकर कॉलेज जाओ!”
राजीव ने मुस्कुराते हुए अपनी बहन की ओर देखा तो सलोनी खिलखिला उठी..
“थैंक यू भैया!”
“पगली!. भैया को थैंक यू नहीं कहते!”
भाई-बहन के बीच अभी बातें चल ही रही थी कि राजीव की पत्नी रंजना अपने पति के लिए नाश्ते की प्लेट लेकर रसोई से बाहर डाइनिंग हॉल में आ पहुंची….
“आप इस घर के लिए कितना कुछ कर रहे हैं!.इन सब लोगों को आपसे थैंक यू तो कहना ही चाहिए!”
“ये तुम कैसी बातें कर रही हो रंजना!.अपनों के बीच कोई फॉर्मेलिटी नहीं होनी चाहिए!”
यह कहते हुए राजीव ने मुस्कुराकर अपनी छोटी बहन के सर पर अपना हाथ रखा तो वह मुस्कुराती हुई कॉलेज के लिए निकल गई।
ननंद के बाहर जाते ही अपने पति के साथ नाश्ता करने बैठी रंजना ने राजीव की ओर देखा..
“आपको पता है!.इस महीने राशन और बिजली का बिल मिलाकर मुझे आपके दिए रूपयों में से पूरे दस हजार रुपए खर्च करने पड़े हैं।”
“पांच-सात लोगों के परिवार में महीने का इतना खर्चा तो आम बात है रंजना!”
“जब कमाने वाला एक और खाने वाले पांच हो तो यह आम बात नहीं होती है जी!”
रंजना के तेवर देख राजीव के हाथ का निवाला हाथ में ही रह गया। वह रंजना का मुंह ताकने लगा..
“तुम कहना क्या चाहती हो!”
“बाबूजी अब रहे नहीं!.मांँ जी को पेंशन आधी मिलती है!.अपने बच्चों के साथ साथ अपनी छोटी बहन की पढ़ाई का खर्च भी आप ही को उठाना है!.ऊपर से अपने छोटे भाई की नौकरी लगवाने का ठेका भी आप ने ही ले रखा है!.आमदनी एक और खाने वाले पांच!. जैसे तैसे कर पाई पाई जोड़ कर घर चला रही हूंँ मैं!”
“यह सब तो अब कुछ ही दिनों की बात है रंजना!. सुमित की नौकरी लगते ही वह कमाने के लिए दूसरे शहर में सेटल हो जाएगा और मेरी छोटी बहन भी कौन सा जीवन भर इस घर में रहने वाली है!. उसका भी तो एक न एक दिन ब्याह होना ही है!”
राजीव ने अपनी पत्नी को समझाना चाहा लेकिन रंजना के मन में कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी..
“वह सब तो जब होगा तब होगा!.लेकिन मैं सोच रही हूंँ कि देवर जी से पहले हम लोग ही कहीं और शिफ्ट क्यों नहीं हो जाते!”
“मैं कुछ समझा नहीं?”
“आपकी नौकरी में तबादला तो होता ही है ना!”
“हाँ!.होता तो है!”
“फिर आप ही क्यों नहीं यहां से किस दूसरे शहर में ट्रांसफर ले लेते?”
“कैसी बातें कर रही हो रंजना!.अगर मैं ट्रांसफर लेकर किसी और शहर में रहने चला गया तो इस घर को कौन देखेगा?”
“आपने इस घर का ठेका ले रखा है! जो रहेगा इस घर में वही देखेगा!.हमारी कुछ तो बचत होगी!”
रंजना बेफिक्र अंदाज में बोल गई। लेकिन राजीव पल भर के लिए सोच में पड़ गया..
“क्या सोचने लगे आप?.मेरी सलाह अच्छी नहीं लगी आपको!”
अपने पति के चेहरे पर नजरें गड़ाए रंजना की ओर देखकर राजीव धीरे से मुस्कुराया..
“तुम्हारी सलाह तो अच्छी है!.लेकिन इस घर को इसके हाल पर छोड़ने से पहले हमें इस घर से जुड़ी कई और चीजें भी छोड़नी होगी।”
“तो छोड़ देंगे!. इस में दिक्कत क्या है!.और वैसे भी हमें कौन सा इस घर से कोई खजाना मिला है जिसे छोड़ने में हमें दिक्कत होगी।”
“फिर तो ठीक है रंजना!.सबसे पहले मैं अपने पिता के देहांत के बाद अनुकंपा पर मिली अपनी यह नौकरी छोड़ देता हूँ।”
“यह क्या कह रहे हैं आप!. बिना नौकरी के आप कमाएंगे क्या और मुझे और अपने बच्चों को खिलाएंगे क्या?”
“यह बात तो तुम्हें सोचना चाहिए!.तुम तो जानती ही हो की यह नौकरी मैंने अपनी मेहनत के बल पर इंतिहान दे कर नहीं पाया है!.मुझे यह नौकरी पिताजी के देहांत के बाद उनके परिवार के पालन-पोषण के लिए दिया गया था,.इस नौकरी पर मेरा अकेले का कोई हक नहीं है! इस घर को छोड़ने से पहले मुझे यह नौकरी छोड़नी होगी,.मंजूर हो तो कहो!”
अपने पति की बिना लाग लपेट खरी खरी सुनकर रंजना मानो अचानक आसमान से सीधा जमीन पर औंधे मुंह गिरी। अपने दिए हुए सलाह का पति पर उल्टा असर होता देख वह चुप हो गई। कुछ कह ना सकी।
लेकिन कमरे के भीतर मौजूद राजीव की मांँ अंजना जी अपने बेटे और बहू के बीच हो रही बातचीत का अंत सुनकर मन ही मन अपने दिए संस्कारों पर गर्व महसूस कर रही थी।
पुष्पा कुमारी “पुष्प”
पुणे (महाराष्ट्र)