“दुनिया में और कोई काम नहीं बचा… कोई कोर्स नहीं रह गया करने को… ले देकर तुम लोगों की सुई वहीं अटक जाती है… अरे भाई कुछ नाम कमाने वाला हुनर सीखो ना… सिखना ही है अगर तो… नहीं तो बैठो घर… पढ़ाई लिखाई खत्म हो गई… ब्याह की जिम्मेदारी मेरी है… मैं ढूंढ रहा हूं ना लड़का… रोज एक से एक फितूर सूझता है तुम्हें…!”
” पर पापा उसमें क्या बुराई है…!”
” देख पायल… मेरे सर में उतनी शक्ति नहीं… की एक ही बात तुझे बार-बार समझाऊं… कुछ ऐसा कोर्स कर जिससे खानदान की इज्जत बढ़े… यह नाई का कोर्स करने के पैसे मैं नहीं भरूंगा…!”
” पापा ब्यूटीशियन का कोर्स है… नाई नहीं है…!”
” मेरे लिए नाई ही है… मैंने कह दिया नहीं… और मैं पैसे भी नहीं दे रहा… अगर फिर भी करेगी तो मुझसे कोई उम्मीद मत रखना…!”
पायल उदास हो गई… घर बैठे ब्याह का इंतजार करना उसे बहुत खल रहा था… वह भी कुछ करना चाहती थी… बचपन से ही उसे सजने सजाने का शौक था… तो सोचा इस शौक को ही थोड़ा निखार लूं… पर पापा मानें तब ना… कई दिनों तक उदास बैठी बेटी की जिद मां ने पूरी कर दी… पापा की मर्जी के खिलाफ जाकर मां ने पायल का दाखिला उसके मनपसंद कोर्स में करवा दिया…
कैसे गुजरा वह एक साल यह पायल और उसकी मां से बेहतर कोई नहीं जानता… दिन रात पापा के ताने…” हां तो अब बाल कटवाने के लिए बाहर पैसे क्यों दें…” ” बोलो तो मोहल्ले वालों के लिए बोर्ड लगवा देता हूं… सब को थोड़ा फायदा होगा…!” “किसी को बताने लायक नहीं छोड़ा… क्या इसलिए पढ़ाई लिखाई किया था तूने… इतना कुछ है दुनिया में सीखने को… इस नालायक को नाई ही बनना था…!”
किसी तरह साल लगा… कोर्स खत्म हुआ… तानों का दौर भी… और साथ ही साथ पायल का ब्याह भी पक्का हो गया…
अजीत बहुत प्यारा लड़का था… उसे पायल के कोर्स से कोई परेशानी नहीं थी… उल्टे खुश था कि कोई अलग हुनर है उसकी होने वाली पत्नी में… समय के साथ पायल का ब्याह हुआ… पायल ससुराल आ तो गई पर उसने कभी अपने हुनर को आजमाने की कोशिश नहीं की… अजीत बार-बार उससे कहता…
“घर बैठे क्या करती हो… जो सीखा है वही करो… कुछ तो करो जिंदगी में…!” पर पापा के तानों का असर इस कदर उस पर हावी था कि वह सोचकर सिहर जाती… कि अगर पापा को पता चला कि मैंने पार्लर खोल लिया है… तो पापा तो मेरे घर कभी आएंगे भी नहीं… इसी डर और झिझक में पायल ने पूरे दस साल निकाल दिए… दो बच्चों की मां बनी… घर परिवार की जिम्मेदारियां निभाते कब समय निकलता गया पता ही नहीं चला…
एक दिन अचानक अजीत का एक्सीडेंट हो गया… इस एक्सीडेंट में अजीत का एक पैर जाता रहा…उसकी नौकरी घूमने फिरने वाली थी… मार्केटिंग का जाॅब था… एक पैर चले जाने से उसके लिए घूमना फिरना उतना सहज नहीं रह गया… घर में लाख परेशानियों ने धीरे-धीरे सर उठाना शुरू कर दिया… पायल सब कुछ पूरे मनोयोग से मैनेज कर रही थी… लेकिन कब तक…
अजीत ने तो उससे कहना छोड़ ही दिया था… एक दिन पायल खुद अजीत से बोली…” अजीत क्या करूं पार्लर खोल लूं… क्या होगा तुम्हारी इज्जत पर तो नहीं पड़ेगा…!”
अजीत ने पायल के हाथों पर हाथ रख उसे हौसला दिया और कहा…” मेरी इज्जत और तुम्हारी इज्जत अलग-अलग नहीं है… यह तुम अब तक नहीं समझी… तुम काम करो यह तो मैं शुरू से चाहता हूं… तुम ही मना कर रही थी… अरे पागल मेहनत करके पैसे कमाने में खानदान की इज्जत कब से जाने लगी… इज्जत तो तब जाएगी जब तुम बैठे-बैठे अपना सब लुटा दोगी… कुछ आते हुए भी कुछ ना करोगी…!”
” वह तो ठीक है अजीत… पर पापा को पता नहीं चलना चाहिए… पापा को पता चला तो उनका अहम आहत हो जाएगा…!”
“ठीक है… जैसा तुम चाहो…!”
अजीत का सहयोग पाकर… पायल ने घर के ही सामने वाले कमरे में अपने पार्लर का काम शुरू कर दिया… वह हुनरमंद थी… कुछ ही दिनों में उसका काम चल निकला… दो साल जाते-जाते उसने अपना एक अलग कमरा किराए पर ले लिया… अब ग्राहक भी अधिक आने लगे थे… तो उसने अपनी सहायता के लिए तीन-चार और लड़कियों को भी रख लिया… 5-6 सालों में उसका पार्लर कस्बे का नामी पार्लर बन गया… दूर-दूर से लोग शादी ब्याह में मेकअप करवाने का आर्डर देने उसके पास आने लगे… पैसों की तो अब कोई कमी नहीं रही… इस बीच पापा जब भी आए… पायल ने उन्हें पता नहीं लगने दिया कि वह काम भी करती है…
एक दिन अचानक पापा आ गए… पायल घर में थी नहीं… उसकी बेटी नाना जी को अचानक आया देखकर हड़बड़ाहट में कुछ समझी नहीं और उसने सब बता दिया… मम्मी कहां है… उन्हें लेकर सीधे मम्मी के पार्लर पहुंच गई… मेन मार्केट में इतना सुंदर सजा हुआ दुकान… एसी लगा कमरा… अंदर काम करती चार लड़कियां… आराम से सबको निर्देश देती पायल…
उन्हें तो भरोसा ही नहीं हुआ कि यह सब उनकी बेटी का है… पायल अचानक से पापा को देख सहम गई… “पापा आप यहां… वो पापा मैं बस घूमने आई थी…!” पर पापा सब समझ चुके थे… बेटी के सर पर हाथ रखकर उन्होंने कहा…” घबराओ मत बेटा… तुमने कुछ गलत नहीं किया है… मेरी सोच गलत थी… मुझे तो पहले से लगता था… अजीत के एक्सीडेंट के बाद कैसे तुमने घर को संभाला यह मैं जानता था… पर तुमने कभी जाहिर नहीं किया… तो मैं भी चुप रहा… पर आज तो मैं अपनी बच्ची की तरक्की देखने ही आया था… मुझे गर्व है तुझ पर… तूने अपने खानदान की इज्जत बढ़ा दी… तूने साबित कर दिया कि काम छोटा या बड़ा नहीं होता… उसके पीछे का तरीका और नियत सही होना चाहिए…!”
स्वलिखित
रश्मि झा मिश्रा