उस रोशनी के पीछे कोई और नही बल्कि स्वयं माता वैष्णो देवी थी और केवल देवकन्या और वैष्णवी को दिखाई दे रही थी बाकी यशोदा और राघव उनको देख पाने में असमर्थ थे।
देवकन्या ने माता को प्रणाम किया और पूछी …
माता
आपने मुझे रूप बदलने की शक्ति से वंचित कर रखा था फिर मैं कैसे सक्षम हो पाई इसमें और जब मैं देवकन्या का रूप वैष्णवी के सामने ले रही थी तो उधर राधिका के शरीर में हलचल कैसे हुई जबकि उसके प्राण आपके पास सुरक्षित है..
इसका मतलब अब वो जीवित है?
हां अब वो जीवित है क्योंकि मैंने उसके प्राणों को उसके शरीर में प्रवेश करा दिया है और उस अग्नि पुंज के खतम होने से पहले तुम्हे वैष्णवी को लेकर उसके पास जाना है नही तो राधिका के साथ साथ वैष्णवी भी अपनी जान गवां बैठेगी
इतना कहकर माता ने देवकन्या को एक त्रिशूल दिया और बोली इसे तुम अपने पास रखना और जब राधिका अपनी मूर्छा से वापस आयेगी तो उसे और वैष्णवी को एक साथ इस त्रिशूल को उसके माथे में मारने बोलना और ये काम दोनो मिलकर एक साथ करेंगे तभी उसका अंत होगा
इसके बाद माता अंतर्ध्यान हो जाती है
अंतर्ध्यान होने के बाद राघव और यशोदा को वैष्णवी और देवकन्या दिखने लग जाते हैं
माता ये किस प्रकार का प्रकाश था ….यशोदा बोली
ये स्वयं माता वैष्णो देवी का तुम्हारे घर पर आगमन हुआ था मेरी बच्ची
मां क्या हम इतने पापी है की माता वैष्णो मेरे घर आई और हम दोनो उनके दर्शन न कर पाए?…. राघव के आंखों में आंसू था और देवकन्या से प्रश्न
तुम दोनो अगर पापी होते तो क्या माता का तुम्हार घर आगमन हो पता ?
तुम दोनो तो के निष्पाप आत्म हो जो पिछले किसी जन्म का पुण्य तुम्हे वैष्णवी रूपी पुत्री के रूप में मिला है जो न जाने कितने निर्बलों के उद्धार के साथ साथ तुम दोनो को भी जन्म जन्मांतर के खेल से मुक्त करने आई है
तो माता ने हमे दर्शन क्यूं नही दिए….(यशोदा बोली)
अभी तुम दोनो में वो क्षमता जागृत नही हुई है जो माता के ओजस का सामना कर सको इसलिए जब राधिका और वैष्णवी दोनो मिलकर उस नवलासुर का वध कर देगी तो तुम दोनो अपनी पुत्री वैष्णवी के कारण और रामेश्वर जी तथा अंबिका जी अपनी पुत्री राधिका के कारण तथा नारायण जिसकी बहन रक्षाबंधन के दिन मेरे कारण बिछड़ गई थी उसे मेरी कृपा से एक साथ माता वैष्णो देवी के दर्शन दुर्लभ होंगे और तुम सब कुछ अलौकिक घटनाओं को देख पाओगे…
अब समय व्यर्थ नहीं करना है तुम सब नहा धोकर शुद्ध हो जाओ मैं अभी मंदिर से होकर आती हूं..
उधर नवलासुर को आभास हो चुका था की उसके खिलाफ षड्यंत्र रचा जा चुका है अगर उसने जल्दी से जल्दी राधिका का वरण नही किया तो उसके साथ अनर्थ हो जायेगा…
अब उसने अपने गुरु शुक्राचार्य का आवाहन शुरू किया और तभी शुक्राचार्य वहां प्रकट हुए
बोलो नवलासुर किसलिए मेरा आहवान किया
गुरुदेव मैं अमर होना चाहता हूं और मुझे इस राधिका का वरण करना है लेकिन इस अग्नि पुंज के घेरे के कारण मैं उस तक पहुंचने में पिछले 40 वर्षों से नाकामयाब हूं
अब आप ही उपाय बताएं गुरुदेव…..( नवलासुर बोला)
तुम अपनी मुष्ठा से 1001 बार ॐ नमः शिवाय का नाम लेकर प्रहार करो राधिका तुम्हारी पहुंच में होगी लेकिन इसके बाद अब मैं तुम्हारी कोई मदद करने में असमर्थ रहूंगा तुम्हे मिली श्राप के कारण इसलिए इसके बाद इस संकट से तुम्हे स्वयं निपटना होगा….( शुक्राचार्य इतना कहकर अंतर्ध्यान हो गए)
बस इतनी ही मदद काफी है गुरुदेव … हाहाहाहाहा (नवलासुर हंसा)
और अपनी मुष्ठा से भोलेनाथ का जप करते हुए उस अग्नि पुंज पर प्रहार करने लगा
इधर मंदिर में पहुंचते ही देवकन्या शिवजी के सामने बैठकर उनका जप करने लगी और कुछ ही देर के बाद देवों के देव महादेव उस देवकन्या के सामने प्रकट हो गए …
पूरे मंदिर में एक दिव्य प्रकाश का आवरण फेल गया जो उस गांव वालों को भी दिख रहा था इसलिए सभी मंदिर की ओर भागे लेकिन किसी की हिम्मत नही हो रही थी मंदिर में प्रवेश करने की
प्रभु आपके दर्शन हुए मैं धन्य हो गई…(देवकन्या ने भोलेनाथ से कहा)
प्रभु अब मुझे देवलोक ले चलिए प्रभु मैं इस मृत्युलोक से ऊब चुकी हूं
ही देवकन्या
ये तुम्हारी स्वयं की इच्छा थी लेकिन तुम्हारी स्वयं की इच्छा होते हुए भी इसमें स्वयं श्री हरी विष्णु की सहमति थी इसलिए हे देवी तुम जिस पाप कर्म को पाई हो और जिसके लिए तुम्हारे मन में आत्मग्लानि गई है ये सब तुम्हारे मन का भ्रम है और जैसे ही तुम देवलोक वापस जाओगी तुम्हारे मनुष्य रूप के सारे पाप अपने आप ही मालिन हो जायेंगे क्योंकि तुम एक कारण बन रही हो नवलासुर के अंत का …( भोलेनाथ ने देवकन्या से कहा)
अब मुझे नवलासुर भी बुला रहा है देवकन्या इसलिए मुझे उसके पास भी जाना पड़ेगा
इसलिए अब तुम जल्दी नवलासुर के पास वैष्णवी को लेकर जाओ और हां साथ में वैष्णवी और राधिका के पूरे परिवार को बैकुंठी गांव के वैष्णो मंदिर के प्रांगण में ही रहने को कह देना और किसी भी परिस्थिति में उस प्रांगण से बाहर न निकले….
( शिवजी इतना बताकर अंतर्ध्यान हो गए)
उधर देवकन्या बुढ़िया के रूप में आ गई और सारे गांव वाले उस बुढ़िया के चरणों में नतमस्तक हो गए…
सबको बुढिया ने आशीर्वाद दिया और वहां से राघव के घर आ गई…
देवकन्या ने राघव से कहा
राघव बेटा तुम यशोदा को लेकर बैकुंठी गांव जाओ और रामेश्वर जी के घर जाकर जल्दी से जल्दी उनके पूरे परिवार को वही वैष्णो मंदिर के प्रांगण में रहने को कहना
याद रहे किसी भी परिस्थिति में मंदिर से बाहर न निकले..
मैं वैष्णवी को लेकर नवलासुर के पास जा रही हूं
जी माता ( राघव बोला)
इतना कहकर माता वैष्णवी को पानी गोद में लेकर अंतर्ध्यान हो गई और राघव और यशोदा बैकुंठी गांव के लिए निकल पड़े…..
अगला भाग
कच्चे धागे-एक पवित्र बंधन ( अंतिम भाग ) – शशिकांत कुमार : Moral Stories in Hindi
कहानी का अंतिम भाग अगले भाग में लिखने जा रहा हूं
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