आज से करीब 40 वर्ष पहले वैष्णवी का राधिका के रूप में बैकुंठी गांव में जन्म हुआ था उसके पिता का नाम रामेश्वर पांडे था और माता अंबिका देवी ।
राधिका का एक छोटा भाई नारायण था जिसे राधिका बहुत प्यार करती थी और छोटा भाई भी अपनी बहन से ज्यादा लगाव रखता था ।
उसका खाना पीना सब राधिका ही करवाती थी….
राधिका का पूरा परिवार धार्मिक प्रवृत्ति का था और राधिका स्वयं माता वैष्णो देवी की भक्त थी
छोटी सी उमर से उसे माता वैष्णो देवी से काफी लगाव था जिस कारण वह प्रतिदिन माता की पूजा करती थी।
और दूसरी तरफ मैं
एक देवकन्या जिसका रहना देवताओं के मध्य था और मैं माता वैष्णो देवी से काफी प्रभावित थी ये बात माता वैष्णो देवी को भी पता था।
उधर माता वैष्णो देवी राधिका से भी काफी प्रसन्न रहती थी।
एक दिन मैं माता वैष्णो देवी से मिलने गई और उनसे मैने बोला की माता मैं आपकी बड़ी भक्त हूं।
माता बोली
पृथ्वी पर तुमसे भी बड़े भक्त है मेरे
इस कलयुग में माता?….. देवकन्या ने पूछा
हां …इस कलयुग में
तुम देवकन्या होकर मेरी भक्त हो क्योंकि तुम में कोई अवगुण नही तुम्हारे आस पास के आवरण पावन रहने के कारण तुम्हारे मन में कोई छल कपट द्वेष ईर्ष्या या कोई तामसी प्रवृति नही है इसलिए तुम्हारा भक्त होना सामान्य बात है।
वही पृथ्वी पर मौजूद मनुष्यों को इन अभी अवगुणों के मध्य रहकर इनको त्याग कर भक्त होना बड़ी बात है।
इसलिए पृथ्वी पर राधिका नाम की कन्या मेरी सबसे बड़ी भक्त है मौजूदा समय में…
देवकन्या को अपने से भी बड़ी भक्त के बारे में सुनकर बड़ी ग्लानि हुई इसलिए उसने माता से कहा
मां मेरी परीक्षा लो
मुझे इंसान रूप में पृथ्वी पर भेजो और उन्ही सब गुणों के बीच रहकर मैं आपकी सबसे बड़ी भक्त बनकर सिद्ध करूंगी माता
माता ने कहा
इंसान होना इतना आसान नहीं
फिर भी तुम कह रही हो तो मैं तुम्हे इंसान रूप में पृथ्वी पर भेज रही हूं लेकिन ये ध्यान रखना तुम कलयुगी माया के प्रभाव में आ सकती हो
क्योंकि कलयुग के माया से तुम्हारी शक्तियां वहां काम नहीं कर पाएगी
ठीक है माता …. देवकन्या ने कहा
और माता ने उसी क्षण उसे एक सुंदर स्त्री बनाकर मनुष्य लोक में भेज दिया ।
मनुष्य लोक में आते ही उस कन्या को उसकी सारी स्मृति खतम हो गई और वो एक साधारण लगभग 30 वर्षीय स्त्री के रूप में राधिका के ही गांव में आ गई।
राधिका के गांव में उसे देखकर लोग पूछने लगे कहां से आई हो बेटी ?
क्या नाम है?
मैं दूर के गांव से आई हूं
मेरा नाम साध्वी है।
तो क्या आप देवकन्या है माता ?….. राघव ने उस बुढिया से पूछा
हां पुत्र
मैं ही वो देवकन्या हूं जिसका मनुष्य रूप का नाम साध्वी है।
यशोदा और राघव वैष्णवी को लेकर उस बुढिया के चरणों में साक्षात दंडवत हो गई।
(अब यहां से बुढिया को बुढिया न कहकर देवकन्या कहकर संबोधित करूंगा)
देवकन्या दोनो को उठाकर बोली तुम दोनो ही मेरे लिए मुक्ति का साधन हो । तुम्हारे सहयोग के बिना मैं जन्म जन्म तक इस धरा पर ही भटकती रहूंगी
नही माता आप जो बोलेंगी हम वो करेंगे …राघव बोला
देवकन्या मुस्कुराई
और आगे कहानी को सुनाना शुरू करी
मैं अब मनुष्य लोक में माया मोह जलन ईर्ष्या सब चीजों के प्रभाव में कलयुग के कारण आ गई थी ।
तभी 18 साल की राधिका उसी वैष्णो देवी मंदिर में आई और मुझे देखकर बोली
तुम कौन हो ?
मैने कहा मेरा नाम साध्वी है और मैं बहुत दूर से आई हूं मेरा यहां कोई नहीं है
कोई नही कैसे
मैं हूं ना
आज से तुम मेरी सहेली हो और तुम मेरे साथ मेरे घर में रहोगी
राधिका साध्वी को लेकर अपने घर पहुंची और अपने मम्मी पापा को सारी बाते बताई
रामेश्वर जी ने भी साध्वी को अपने घर मे रहने की अनुमति दे दी।
अब साध्वी और राधिका खुशी खुशी एक साथ रहने लगे दोनो को एक दूसरे से काफी लगाव हो गया था बिलकुल छोटी बहन और बड़ी बहन की तरह क्युकी दोनो की उम्र में मात्र 10 वर्षों का ही अंतर था ।
अब रामेश्वर जी और अंबिका जी के दो पुत्री और एक पुत्र थे।
छोटे भाई की उम्र भी 10 वर्ष की थी लेकिन वो अपनी बहन को बात कभी नहीं टालता यह तक की साध्वी की बात को भी राधिका की तरह ही मानता था।
इसलिए वो दोनो उसको बहुत प्यार करते थे
मगर कहते है न खुशी हर किसी से देखी नही जाती….
हुआ भी यही
गांव में एक 32 साल का युवा आता है जिसका नाम है नवल जो दिखने में काफी आकर्षक था लेकिन उसकी आंखे ऐसी थी मानो किसी को भी अपने वश में करने की क्षमता रखता हो उसका शरीर बिलकुल तंदुरुस्त चुस्त और दुरुस्त होने के कारण और भी आकर्षक दिखता था।
एक दिन उसकी नजर मंदिर जाते हुए राधिका और साध्वी पर पड़ी ।
चुकी राधिका अभी जवान हो ही रही थी उसके सुराही जैसे आंख और बिलकुल भरी यौवन में भरी राधिका उसे बहुत ही मनमोहक लगी ।
वही साध्वी की उमर 30 वर्ष की थी ये भी किसी रूपवती से कम नहीं थी ।
उस लड़के की इन दोनो पर नियत खराब हो जाती है।
वो कहते है न जो जिस माहौल में रहता है उसे उसका अंदाजा हमेशा रहता है और जो नए होते है उनको संभलने में वक्त लगता है
राधिका का जन्म ही पृथ्वी पर जिसे देवता द्वारा मृत्युलोक की संज्ञा दी है जहां मनुष्यों का वाश होता है वहां हुआ था, उसपर कलयुग का प्रभाव मां के गर्भ से ही पड़ा हुआ था इस कारण उसे इसी माहौल में पलना बढ़ना था ।
जबकि साध्वी जब से मनुष्यों के बीच आई थी वो अपनी देवशक्तियां को चुकी थी उसे वो देवशक्तियां अब वापस जाने के बाद ही मिलता जिसके कारण साध्वी पर कलयुग में जिन चीजों पर कलयुग का सबसे ज्यादा निवास होता है उन्ही चीजों की ओर साध्वी का लगाव बढ़ता जा रहा था।
जैसे काम, लोभ, धन इत्यादि
नवल जो राधिका की ओर मंत्रमुग्ध हो गया था वही एक दिन मंदिर के बाहर के मुलाकात में साध्वी नवल की ओर आकर्षित हो गई।
एक दिन साध्वी राधिका के साथ मंदिर जाने से मना कर देती है और कहती है तू जा मैं कुछ देर बाद हो आऊंगी…
राधिका और साध्वी के मिलने के बाद ऐसा पहली बार है जब दोनो साथ मंदिर नही जा रहे थे..
जब राधिका मंदिर पहुंची तो नवल वहां पहले से उसके इंतजार में खड़ा था ..
नवल जो दिखने में आकर्षक था लेकिन राधिका ने उसे जरा भी भाव नही दिया और मंदिर में माता की पूजा कर वो लौटने लगी तो नवल ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला तुम मुझसे इतना भागी भागी क्यों रहती हो….
राधिका के शरीर में जैसे माता वैष्णो देवी प्रवेश कर गई हो..
आंखे में जैसे रक्त उतर आया हो
चेहरा सुर्ख लाल
और गुस्से में जैसे नागिन की तरह फुफकार उठी
तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे हाथ लगाने की…..
अगला भाग
कच्चे धागे-एक पवित्र बंधन (भाग–5) – शशिकांत कुमार : Moral Stories in Hindi
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