मम्मी.. हम अपने घर कब चलेंगे..? अभी तो कल की शादी है और आप हमें तीन दिन पहले ही यहां ले आई ?क्या बात है बेटा..
क्या तुम्हारा शादी में मन नहीं लग रहा? देखो कितने सारे रिश्तेदार आए हुए हैं, ताऊ जी चाचा बुआ उनके बच्चे सब तुम्हारे बराबर है
फिर भी अपने घर जाने की जिद क्यों कर रहे हो, जब गांव में थे तब तो तुम कहते थे की मम्मी कहीं चलते हैं ना बाहर, कितने दिन हो गए
शादी में गए हुए? अब तुम्हारे ताऊजी की बेटी की शादी है तुम उसमें इतना नाटक कर रहे हो? आखिर तुम्हारी परेशानी क्या है ?ना तुम वहां चैन से रहते हो
ना यहां रहने देते हो? देखो ताऊजी चाचा बुआ वगैरा तुम्हें कितना प्यार करते हैं, कल तो वैसे भी दीदी की शादी हो जाएगी
तो अभी तो बेटा सांस लेने की भी फुर्सत नहीं मिल रही, और तुम कहते हो अपने घर चले , आखिर तुम्हें दिक्कत क्या है? मम्मी…
आप शायद जानबूझकर अनजान बन रही हैं, आपने नोटिस किया.. जब से हम यहां आए हैं ताऊ जी के अलावा हमें देखकर कोई भी खुश नहीं हो रहा,
ऐसा लग रहा है हमने यहां जल्दी आकर उनके सारे कामों में बाधा डाल दी हो, ताई जी और उनके बच्चे कोई भी काम करते हैं
तो दरवाजा बंद करके करते हैं, क्या आपको कोई भी बात बताते हैं, क्या देना लेना है, क्या करना है, कैसे होगा? कुछ पता है आपको…
बस आपको तो घर के काम और रसोई के काम पकड़ा देते हैं और कल मुझे भी भैया कह रहे थे.. यार.. तुम गांव वालों का अच्छा है,
कुछ काम धाम तो है नहीं तुम्हारे पास, कितने फ्री रहते हो तुम लोग.. हमें देखो यहां सांस लेने की फुर्सत नहीं रहती ,
यहां तो देखो कितना स्टैंडर्ड से रहते हैं हम लोग, तुम्हारे गांव का जैसा नहीं है यहां और कौन नहीं तरसेगा शहर में आने के लिए और सारा काम करवाते रहते हैं,
कभी पानी लाना कभी चाय लाना जैसे हम इनके भाई नहीं बल्कि कोई नौकर हों! मम्मी चाहे आप को पापा को इनकी शादियों में आने का मन हो लेकिन
अगली बार से ध्यान रखिएगा मुझे यहां मत लेकर आइएगा, गांव में हम चाहे जैसे भी रहते हो लेकिन अपना घर अपना ही होता है,
वहां हमें कोई हमें नीचा दिखाने वाला नहीं होता! 12 साल के बेटा आयुष की बात सुनकर मम्मी अचंभित रह गई
और जब उनकी 15 साल की बेटी आरती ने भी आयुष का साथ दिया तो मम्मी बिल्कुल ही हैरान रह गई और सोचने पर मजबूर हो गई..
क्या बच्चे सही कह रहे हैं? जब यह लोग हमारे यहां हमारे गांव में आते हैं तो हम इनका कितना आदर सम्मान करते हैं और मेरे बच्चे यहां आकर उपेक्षित हो रहे हैं?
नहीं ..अगली बार से मैं इस बात का विशेष ध्यान रखूंगी, एक बार जेठ जी की बेटी की शादी हो जाए
फिर हम अगले दिन ही अपने गांव चले जाएंगे, चाहे जैसा भी हो अपना घर अपना ही होता है,
वहां कम से कम हमें उपेक्षित तो नहीं होना पड़ेगा, जहां हम पूरे हक के साथ रह सकते हैं ! सच ही तो है अपना घर तो अपना ही होता है!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
( अपना घर अपना ही होता है)
VM