“सविता…सविता कहां हो तुम भई …तौलिया तो लाओ जरा बारिश ने भी हद कर दी जब देखो बरस पड़ती है इंसान काम करे तो कैसे!” दिनेश जी घर में घुसते ही बोले। वो आवाज़ दे पत्नी का इंतज़ार कर रहे थे कि …
” छम…छम…!” अचानक उनके कानों में आवाज़ आईं।
” अरे ये घुंघरू …ये कौन बजा रहा ?” दिनेश जी खुद से बोले।
” अरे पापा किससे बात कर रहे हो यहां तो कोई है भी नहीं …वैसे मम्मी कहां हैं और आप भीगे क्यों खड़े हो….मम्मी मम्मी तौलिया लाओ!” तभी दिनेश जी का बेटा आरव कॉलेज से भीगता हुआ आया और बोला।
“अरे पापा और भाई आप तो दोनों भीग गए!” तभी अंदर से कानों में लीड लगाए दिनेश जी की बेटी अदिति बाहर आ बोली।
” छम छम !” फिर से आवाज़ आई।
” बच्चों ये आवाज़ सुनी!” दिनेश जी बोले।
” हां पापा सुनी तो ..!” आरव बोला।
” पर मैने तो नहीं सुनी!” अदिति बोली।
” अरे बुद्धू ये लीड तो निकाल कान से तभी तो सुनेगा!” आरव उसके सिर पर चपत लगाते बोला।
” क्या भाई आप भी….हां हां आ रही है आवाज़ जैसे कोई घुंघरू पहन नाच रहा हो!” लीड हटाते ही आराध्या चिल्लाई।
तीनो आवाज़ की दिशा में आगे बढ़ चले। आवाज़ घर के पिछले हिस्से से आ रही थी। तीनो वहां पहुंच हैरान रह गए। और मंत्रमुग्ध से देखने लगे। बारिश में भीगते हुए घुंघरू पहन सविता जी मनमोहक नृत्य कर रही थी। यूं लग रहा था जैसे बादलों को देख मोर नाच रहा हो। काफी देर तक तीनों सविता जी को देखते रहे।
” अरे आप लोग कब आए!” अचानक सविता जी की नजर उन सब पर पड़ी तो वो झेंप कर रुक गई।
” मम्मा आप कितना अच्छा नाचते हो और ये घुंघरू कहा से आए पहले तो नहीं देखे !” अदिति ताली बजाती बोली।
” हां मम्मी बिल्कुल मोर की तरह फ्लो में नाच रही थी आप!” आरव भी बोला।
” वो ….वो बस ऐसे ही ये घुंघरू बहुत पुराने हैं….तुम बैठो अंदर में कपड़े बदल कर चाय बनाती हूं!” सविता जी दिनेश जी को देखते हुए ये बोल अपने कमरे में भाग गई।
“पापा आपको पता था मम्मा इतना अच्छा नाचती हैं!” अदिति ने दिनेश जी से पूछा।
” वो …. हां उसने बताया तो था शुरू में की उसने भारतीय नृत्य सीखा है कॉलेज में इनाम भी जीते थे!” दिनेश जी बोले।
” क्या पापा फिर तो आपको मम्मा की इस कला को निखारना था देखा नहीं आज भी कितना अच्छा नाचती हैं वो!” आरव बोला।
क्या जवाब देते दिनेश जी दोनों बच्चों को जबकि उन्होंने खुद ही तो सविता को उसकी जिंदगी इस नृत्य से दूर किया था। दिनेश जी की मां को नहीं पसंद था सविता जी का नृत्य करना क्योकि उनके हिसाब से घर की बहू नाचे तो खानदान की इज्जत पर बटा लग जाता है , तो उन्होंने एक बेटे का फ़र्ज़ निभाते हुए सविता जी से उनकी खुशी छीन ली थी और सविता जी ने भी अपनी पीड़ा मन मे दबा खुद का मन मार लिया था।
“बच्चों आ जाओ चाय नाश्ता तैयार है!” दिनेश जी और बच्चे बात ही कर रहे थे कि सविता जी ने आवाज़ लगाई।
” वाऊ! पकौड़े और चाय मज़ा आ गया!” आरव बोला।
” मम्मा आपको बारिश में नृत्य करना इतना पसंद है हमे तो पता भी नहीं था और पापा बता रहे थे अपने भारतीय नृत्य सीखा भी है!” अदिति बोली
” हम्म वो सब पुरानी बाते हैं।” सविता पकौड़े का टुकड़ा कुतरती बोली।
” पर आप अब भी बहुत अच्छा नाचते हो मम्मा । आपको बारिश में यूं नृत्य करते देखना बहुत अच्छा लग रहा था!” आरव बोला।
” मम्मा आप मुझे भी सिखाओगी भारतीय नृत्य?” अचानक अदिति ने पूछा।
” मैं…कैसे…?” सविता असमंजस में बोली।
” हां हां क्यों नहीं अदिति बेटा मम्मा जरूर सिखाएंगी तुम्हे…और सविता मैं तो कहूंगा तुम नृत्य सिखाने का काम ही शुरू कर दो उससे तुम्हारा वक़्त भी अच्छा गुजरेगा और तुम्हारी प्रतिभा को पंख भी मिलेंगे!” दिनेश जी बोले।
” क्या…ये आप कह रहे हैं !” सविता जी हैरानी से बोली।
” हां सविता माना उस वक़्त माँ के कहने पर खानदान की इज्जत की दुहाई दे मैने खुद तुम्हारे पैरों से घुंघरू निकाल जिम्मेदारी की बेड़ी डाल दी थी इनमें पर मैं अपनी गलती पर शर्मिंदा हूं। तुम्हे नृत्य से दूर कर मानो मैने तुम्हारी जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी तुमसे दूर कर दी थी। आज तुम्हे नृत्य करते देख दिल को सुकून सा मिला
और जिस सविता को मैं इतने साल से ढूंढ़ रहा था वो आज मैने बारिश में नृत्य करती सविता में पाया मुझे माफ कर दो तुम मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ !” दिनेश जी सबके सामने ही बोले।
” अरे आप क्या कह रहे हैं ये !” सविता जी बोली।
” मम्मा हम समझ गए जो पापा बोल रहे हैं । पापा ने जो किया गलत था पर अब आप अपने सपनों को पंख दीजिए हम सब आपके साथ हैं। बल्कि मेरी सहेलियां भी आपसे नृत्य सीखेंगी देख लेना… बल्कि अपने कॉलेज के वार्षिकोत्सव में मैं आपका सिखाया नृत्य ही करूंगी!” अदिति बोली।
सविता जी ने दिनेश जी की तरफ देखा । उनकी आंखों में अपनी गलती का पछतावा तो था ही साथ साथ सविता जी के लिए प्रशंसा का भाव भी था। ये सावन ऐसा झूम के आया कि सविता जी की सूनी जिंदगी में नृत्य की बहार ले आया। आज सविता जी के चेहरे पर अलग ही चमक थी ।
दोस्तों खानदान की इज्जत के नाम पर किसी के सपनो की बलि दे देना क्या गुनाह नही । आज भी कितनी औरतें है जो शादी के बाद ये दर्द सहती है और घुट घुट कर जीती है शादी के नाम पर उन्हे उनसे ही दूर कर देना कहाँ तक सही है ?
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल
#खानदान की इज्जत