आप लाली है क्या…..? अचानक पीछे से आवाज आई…
हां – हां , नहीं – नहीं …. हडबडाते और लड़खड़ाते हुए शब्दों से माला कुछ पूछना चाहती थी….!
पर साथ में चल रहे मलय भैया ने बड़े स्पष्ट रूप से कहा …नहीं यहां कोई लाली नहीं है… इसी बीच अनायास ही माला ने पूछ लिया …आप कौन…? वो पार्क के सामने बड़े से बंगले के बालकनी की तरफ उंगली दिखाते हुए कहा ….उन साहब ने पूछा था…!
अरे चल ना माला , तू भी ना.. और ये तू हां ..नहीं ..क्या कंफ्यूज टाइप की बातें कर रही थी …
तेरा नाम लाली है क्या …?
अरे उसे कोई गलतफहमी हुई होगी …हां भैया , बोलकर माला भाई के साथ पार्क में टहलने लगी …काफी देर विचार विमर्श के बाद दोनों भाई-बहन घर वापस लौट गए …
पर माला अपने नाम का संबोधन लाली सुनकर कुछ ऊहापोह की स्थिति में पड़ गई …आखिर वो… कैसे…यहां…..
माला को जब भी समय मिलता या वो अकेली होती या कभी-कभी तो जानबूझकर घर के सामने वाले पार्क में चली जाती… वहां बच्चों को खेलते देखकर उसे बड़ा अच्छा लगता था… वो जानती थी , कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीक रहेगा …लेकिन बाद में वो शायद भैया भाभी के लिए बोझ बन जाएगी …और फिर मेरा आत्मसम्मान भी तो है ना …इस घर को मैंने उस समय छोड़ा था ..जब मम्मी पापा जीवित थे …उनके इच्छा के विरुद्ध जाकर मैंने आर्यन से विवाह किया था… उस समय हमारे राजपूत खानदान की इज्जत को बड़ा धक्का लगा था ….।
और यही मलय भैया उस वक्त सबसे ज्यादा मेरे खिलाफ में थे …पर आज मुझे अपने घर बुलाकर बड़े भाई होने का धर्म पूरा कर दिया …आज माला पार्क में बैठे-बैठे सोच रही थी…….
…. हफ्ते भर पहले की तो बात है…..
माला दीदी के समर्पण का विद्यालय परिवार हमेशा ऋणी रहेगा ….और कभी नहीं भूलेगा ….इन्हीं भाषणों के साथ आज माला दीदी सेवानिवृत हो गई …..विद्यालय परिसर से बाहर निकलते ही हाथों में श्रीफल और गले में शॉल लिए एक लंबी सांस ली ….!
उम्र के 60 वें पायदान पर कदम रखते ही , मेरा सब कुछ ये विद्यालय ने भी मुझे अकेला छोड़ दिया…।
इसी नौकरी के भरोसे तो मैं ……
और आज फिर माला अतीत की स्मृतियों में खोती चली गई…..
मां-बाप की प्यारी दुलारी बेटी और मलय भैया की लाडली बहन माला… बचपन से सबकी ….प्यारी दुलारी , मौज मस्ती ,अल्हड़ता, उमंग तरंग के बीच यौवन की दहलीज पर कदम रखा ही था कि…….नजरें सहपाठी आर्यन पर टिक गई और जब दोनों की नजरे मिली तो फिर हटने का नाम ही ना लें ….कहते हैं ना , पहली नजर में जो दिल को भा जाता है उसे नजर अंदाज करना बहुत मुश्किल होता है… बस मेरे और आर्यन दोनों का यही तो हाल था …..सोचते सोचते माला की होठों पर मुस्कान आ गए थे…।
दोनों परिवारों की अनेक विषमताओं के बाद , अंजाम से बेखबर , बेखौफ …हम दोनों का प्यार परवान चढ़ता रहा…!
प्रतिष्ठित राजपूत घराने की बेटी… माला की कुछ गतिविधियां घर वालों को संशय भरी लगी… उस समय मम्मी पापा ने स्पष्ट पूछा था… पर मुझ में हिम्मत कहां थी …मैंने एकदम से नकार दिया ….अरे नहीं मम्मी ऐसा कुछ भी नहीं है ….फिर उड़ती उड़ती खबर मलय भैया के कानों में भी पहुंची… और मुझ पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए गए ..बस उसी दिन से सबकी प्यारी दुलारी मैं माला एकदम से सबके लिए आंख की किरकिरी बन गई थी …आखिर ” खानदान की इज्जत ” का सवाल था … हालांकि मैं भली भांति समझती थी कि हमारे परिवार का इतना दबदबा है कि… परिवार वाले हमारे प्यार के खिलाफ कुछ भी कर सकते हैं …कुछ भी …बस फिर क्या था …एक दिन मौका देखकर मैंने घर में बिना बताए जाकर आर्यन से शादी कर ली …बस यही सबसे बड़ा फैसला मेरे द्वारा लिया गया और मम्मी पापा भाई सब मुझसे दूर …बहुत दूर हो गए… हालांकि मैंने ये फैसला सोच समझकर और पूरे होशो हवास में लिया था …. सोचा था धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा … इस घर की बेटी हूं ना आखिर कब तक मुझसे नाराज रहेंगे…?
पर अपनी आन बान शान की खातिर परिवार वालों ने बेटी की कुर्बानी बेहतर समझा और मुझसे हमेशा दूरी बनाए रखा…।
एक बार तो मरने मारने तक की नौबत आ गई थी पर आर्यन और उसके परिवार वालों के हस्तक्षेप से मामला शांत हुआ था…!
और फिर उस दिन मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा …जब आर्यन की नौकरी लग गई …
” तुम मेरे लिए बहुत लकी हो माला ” आर्यन के ये शब्द हमेशा मेरे मनोबल बढ़ाते थे…।
दूर.. …एक शहर में आर्यन के साथ मैं खुशी-खुशी रह रही थी , मायके और ससुराल दोनों पक्ष मेरे और आर्यन से संबंध विच्छेद कर लिए थे …हालांकि कभी-कभी आर्यन की अपने माता-पिता से बात हो जाया करती थी…।
रोज की भांति आर्यन टिफिन लेकर घर से दफ्तर के लिए निकले… 6:00 बजे तक हर रोज घर वापस आ जाते थे ….प्रतिदिन की तरह मैं आर्यन का इंतजार कर रही थी… 6:15 फिर 6:30 क्यों …आज विलंब हो रहा है आर्यन को ….? 7:00 बजने वाले हैं… चलो फोन करके पता कर लेती हूं जैसे ही फोन लगाया ….स्विच ऑफ बताया ….अब मेरी चिंता बढ़ती जा रही थी …किसी अनहोनी आशंका के डर से मन में न जाने कितने उलुल – जुलुल विचार आने लगे…।
समय बढ़ता जा रहा था ,आर्यन के एक सहकर्मी दोस्त का फोन नंबर मेरे पास था …मैंने तुरंत उन्हें फोन किया …उत्तर में उन्होंने कहा भाभी जी आर्यन तो आज ऑफिस आया ही नहीं था ….
क्या……??
हां भाभी , बिना खबर के अनुपस्थित था ….मैंने फोन भी किया था पर स्विच ऑफ बताया….. फिर मैंने सोचा कोई इमरजेंसी रहा होगा…।
खैर , आप चिंता मत कीजिए मैं आ रहा हूं और आर्यन के मित्र के साथ मैंने कितना खोजा अपने आर्यन को…
सोचते सोचते माला के आंखों में आंसू आ गए थे….आफिस…पुलिस….न्यूज पेपर कहां नहीं रिपोर्ट लिखवाया ….।
कहीं कोई खबर नहीं …कोई पता नहीं… कोई सुराग नहीं… आर्यन के माता-पिता ने भी जी जान लगा दिए… किसी तरह उनका बेटा मिल जाए… वो कहीं ना कहीं प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से दोषी माला को भी समझते थे…।
एक तो माला खुद टूट चुकी थी अकेली थी.. बिल्कुल अकेली ..उस पर भी हिम्मत करके आर्यन के माता-पिता की सहारा बनने की सोची…. पर उन लोगों द्वारा स्पष्ट रूप से कहा गया ….अब तो बख्श दो… हमारे बेटे को तो निगल गई …हमें छोड़ दो …मायके वाले पहले से ही संबंध तोड़ चुके थे अब तो ससुराल वालों ने भी ठुकरा दिया…।
हालांकि इस प्रकरण के बाद मलय भैया ने काफी साथ दिया था आर्यन को ढूंढने में …मम्मी पापा तो जीवित नहीं थे…. मलय भैया ने घर वापस आने को कहा ….पर मेरे आत्म सम्मान ने ऐसा करने से मुझे रोका…।
फिर मैंने हिम्मत कर कई प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की ….और अंततः शिक्षिका की नौकरी मिल ही गई ……एक छोटे से कस्बे में अध्यापिका की नई नौकरी , नई जिंदगी की शुरुआत हो चुकी थी…।
पर मुझे विश्वास है.. इतना प्यार किया था आर्यन और मैंने एक दूसरे से….. जरूर आएगा मेरा आर्यन …मेरा इश्क…. मैं इंतजार करूंगी …आखरी सांस तक इंतजार करूंगी तुम्हारा आर्यन….!
और इसी नौकरी को अपने रिश्तेदार सगे संबंधी , मायका , ससुराल ,आशा की किरण ,रक्षा कवच सब कुछ मानकर छोटे से कस्बे भगवानपुर में एक किराए का मकान लेकर सारी जिंदगी बिता दी ….।
विद्यालय में निस्वार्थ भाव से पूरी ईमानदारी के साथ अपना योगदान दिया …मैं , माला से माला दीदी बनकर एक कर्तव्यनिष्ठ, जागरूक और ईमानदार , स्पष्टवादी शिक्षिका के रूप में जानी जाने लगी …।
बीच-बीच में सहकर्मियों को उत्सुकता रहती थी मेरे अतीत को जानने की …. मैंने कभी अपनी जिंदगी के पन्नों को किसी के सामने नहीं खोला…!
हमारे ही विद्यालय में तुषार भी अध्यापक का कार्य करते थे… मुझसे उनकी काफी जमती थी …जब भी मुझे किसी भी प्रकार की जरूरत होती …तुषार हमेशा हाजिर होते… मेरी और तुषार की दोस्ती काफी मजबूत थी …हम एक दूसरे को समझते थे ….उनके विचार मुझसे बहुत मिलते थे…!
एक दिन तुषार ने मजाक मजाक में पूछ लिया ….माला मुझसे शादी करोगी …अचानक पूछे इस सवाल से मैं पहले तो कुछ मायूस सी हुई फिर एकदम से शरमा गई …मेरे गाल लाल हो गए…।
मुझे असहज होते देख तुषार ने बात संभालते हुए कहा …अरे मैं तो मजाक कर रहा था ..देखो तुम्हारे गाल एकदम से लाल हो गए ….”लाली कहीं की ” ….फिर क्या था उस दिन से तुषार हमेशा मुझे लाली कहकर ही संबोधन करता था …..धीरे-धीरे मुझे लगने लगा ….तुषार का झुकाव मेरी ओर बढ़ता जा रहा है …
अतएव एक दिन मौका और परिस्थिति देखकर मैंने तुषार को अपनी सारी आप बीती बात बता दी…।
ओह… तो तुम्हें अभी भी आर्यन का इंतजार है लाली…. हां तुषार …यदि आर्यन आ गए और मुझे किसी और के साथ देखेंगे तो मैं क्या जवाब दूंगी…? ये तो उनके साथ गद्दारी होगी ना तुषार …नहीं नहीं …मैं ऐसा हरगिज़ नहीं कर सकती …!
आर्यन आएंगे …मेरा इश्क आएगा ….और बस इन्हीं बातों के मध्य एक दिन तुषार का तबादला कहीं और हो गया ….धीरे-धीरे तुषार का मुझसे भी संपर्क खत्म हो गए या मैंने जानबूझकर संपर्क और संबंध न रखने को ही उचित समझा…!
और आज माला दीदी के साथ-साथ मेरी सभी विशेषताओं , खूबियों की भी रिटायर्मेंट हो गई थी…।
माला दीदी… मकान मालकिन की आवाज ने ही तो मुझे अतीत से बाहर निकाला था…. उन्होंने कहा , मेरे आने का तात्पर्य अन्यथा ना लीजिएगा माला दीदी …आप जब तक चाहे रह सकती हैं इस घर में….वो तो मैं इसलिए पूछ रही थी कि अगले महीने की 1 तारीख से कोई मकान किराए पर लेने को तैयार है ..कुछ संकोच करते हुए मकान मालकिन ने अपनी बात रखी ….हां हां बिल्कुल मुझे हफ्ते भर का समय दें… मैं घर खाली कर दूंगी …माला दीदी ने विनम्रता पूर्वक कहा …अरे कोई जल्दी नहीं है आराम से ….मकान मालकिन ने भी इतना कहकर उनकी हितैषी बनने की कोशिश की थी…!
मेरे पास पैसे की तो कमी नहीं थी… कमी थी तो बस किसी अपने की ….मेरा स्वाभिमान भाई भाभी के घर जाने के बीच आ रहा था….।
इसी बीच मलय भैया का फोन आ गया, रिटायरमेंट के दिन बहन को याद कर अपने घर आने का आग्रह कर बड़े भाई होने का फर्ज भी अदा कर दिया था…!
बस फिर क्या था… दो-चार दिन मलय भैया के घर में रहकर इसी शहर में एक किराए का मकान ढूंढ लूंगी…!
अतीत की स्मृतियों में गोते लगाते लगाते माला के होठों पर एक बार फिर मुस्कान आ गई थी ।
आप लाली ….??
अचानक जानी पहचानी आवाज से माला चौंक गई…
तु……तुषार……तुषार आप यहाँ…..
हां लाली … मैं तुषार ही हूं … चलो भगवान का शुक्र है आपने मुझे पहचान तो लिया …..
एक बात बताओ , कल मैंने पूछवाया तो आपने लाली होने से क्यों मना कर दिया था…. और आपके साथ वो आर्यन थे क्या…?
धत पगले ….वो मेरे भैया थे …
मलय भैया और लाली तो मैं सिर्फ तुम्हारे लिए थी ना तुषार ….मेरा नाम तो माला है …तुम भूल गए …देखो तुम्हें तो मेरा नाम भी याद नहीं है…!
आज माला भी तुषार को अपनेपन की वजह से बीच-बीच में आप की जगह तुम बोलकर संबोधन करने लगी थी.. शायद तुषार सुनना भी यही चाहता था..।
होगी तुम सबके लिए माला …मेरे लिए तो तुम लाली हो लाली…. तुषार ने एक बार फिर छेड़ा…!
तुषार हमेशा तुमने मेरी मदद की है…. आज फिर एक मदद कर दो ..मेरे लिए इसी शहर में एक किराए का मकान ढूंढ दो…! मैं भैया भाभी के घर ज्यादा दिन तक नहीं रहना चाहती हूं …किसी पर बोझ बनकर कब तक रहूंगी…!
लाली , तुमने कभी मेरी कोई बात नहीं मानी है ….आज फिर से एक बात बोलता हूं…. मेरा घर बहुत बड़ा है… चाहो तो रह सकती हो ….
अरे ऐसे क्या देख रही हो ….मुफ्त में नहीं किराया लूंगा तुमसे …
और एक दोस्त बनकर मैं और तुम दोनों आखिरी सांस तक तुम्हारे आर्यन… तुम्हारे इश्क ..के आने का इंतजार करेंगे ……!
तु….षा….र… माला के होंठ फड़फड़ाए और तुषार के लिए आदर सम्मान कई गुना बढ़ गया ।
( स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित, अप्रकाशित रचना )
साप्ताहिक विषय :
# खानदान की इज्जत
संध्या त्रिपाठी