दोनो भाभियों में फर्क क्यों ? – अर्चना सिंह : Moral Stories in Hindi

“दिव्या ! ये तुमने क्या किया बेटा , ऐसे कोई करता है भला ? दोनों तुम्हारी भाभियाँ ही हैं फिर दोनों में इतना फर्क क्यों ? 

दिव्या की मम्मी सुमित्रा जी दिव्या  को  टोकते हुए बोलने लगीं  जो अभी – अभी अपने भाई- भाभी के कमरे से उपहार देकर निकल रही थी । 

दिव्या ने पीछे पलटते हुए रुककर मम्मी से पूछा …”क्या हुआ मम्मी, मैंने ऐसा  क्या कर दिया जो आप मुझे ये बातें सिखाने लग गईं । अगर आप साड़ी और उपहार की बात कर रही हैं तो मैं तो यही कहूँगी कि बड़ी भाभी तो मुझे बहुत कुछ देती है इसलिए मैंने उनके लिए महँगी साड़ी के साथ ज्यादा उपहार दिए और छोटी वाली से मुझे कुछ नहीं मिलता ।

बस रक्षाबंधन पर हर साल एक साड़ी मिलती है ..बस ! तो मैं क्यों उनके लिए ज्यादा करूँ ? औऱ वैसे भी..बड़ी भाभी तो उन अच्छी साड़ियों को पहनकर ऑफिस भी जा सकती हैं , दोस्तों को भी दिखा सकती हैं ।छोटी भाभी न तो कहीं निकलती हैं न ही उनसे मिलने – जुलने वाले दोस्त या अन्य लोग यहाँ आते हैं । 

सुमित्रा जी  आराम कुर्सी खींचकर उस पर बैठ गईं और चाय की चुस्की लेते हुए बोलने लगीं ..

दिव्या माँ की बातों को अनसुना करते हुए फिर भी अपने ज़िद पर अड़ी रही.। थोड़ी देर के बाद चुप्पी तोड़ते हुए दिव्या ने कहा…”मम्मी ! आप सिर्फ मुझे बोलते रहती हैं । कभी छोटी भाभी से भी पूछिए मुझे वो क्या देती हैं ? “छोटी सी तो तुम्हारे भाई यश की श्रृंगार की दुकान है उसमे भी ज्यादा चलती नहीं तो वो क्या ही देगा ? तुम अच्छे सम्पन्न घर मे गयी हो तो तुम उसकी बराबरी क्यों कर रही हो ? 

खीझते हुए सुमित्रा जी ने कहा ।

बड़ी बहू शालू के घरवाले तो अच्छे पद- प्रतिष्ठा पर हैं उसके रिश्तेदार, और दोस्त जो भी आते हैं सब अच्छा ही लेकर आते हैं ।

पर यश की इतनी आमदनी, और पद नहीं है तो कैसे क्या देगा ? तुम तो कम से कम अपने घर मे इस तरह से दोनों भाभियों में भेद – भाव मत करो ।

मम्मी की बात सुनकर दिव्या का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था । वो बुदबुदाने लगी…”आप तो सिर्फ एकतरफा न्याय करती हैं मम्मी ! आपको जो सोचना है सोचिए, मैंने अपने हिसाब से सही किया है । अब सोफे से उठकर दिव्या दूसरे कमरे में ही सोने जा रही थी कि दरवाजे पर घन्टी बजी । सुमित्रा जी धीरे से बोलते हुए उठने लगीं..”ऑफिस से शालू आयी होगी । दिव्या खुश हो गयी, उसने शालू को जो सूट दिए थे वो तारीफ सुनना चाह रही थी ।

दिव्या  शालू भाभी का नाम सुनकर उत्सुकता से उठकर जैसे ही दरवाजा खोलने जाने लगी भतीजे- भतीजियों ने खिलौने बिखेर रखे थे ।  

शालू  अंदर की ओर आयी और दिव्या जैसे ही दरवाजा बंद करने लगी चौखट से संतुलन बिगड़ने पर वो गिर गयी । उसके घुटने और ललाट में चोट लग गयी थी ।उठते हुए उसे दर्द का आभास हो रहा था । दिव्या की चीख सुनकर शालू अपने कमरे से झांककर देखी फिर हल्की- फुल्की चोट मानकर वह दरवाजा बंद करके ए.सी चलाकर आराम करने लगी ।

चीख सुनकर नेहा भी आई और उसने हाथ पकड़ धीरे से दिव्या को कंधे का सहारा देते हुए अपने कमरे में ले जाकर बिस्तर पर लिटाया । ललाट पर  काफी सूजन आ गयी थी और पैर में किसी नुकीले वस्तु के चुभ जाने से तेज़ खरोंच आ गयी थी और खून भी निकल रहा था । सुमित्रा जी ने ठंडा तेल लेकर दिव्या के सिर पर रखा और नेहा मेडिकल किट निकालकर दिव्या को प्राथमिक उपचार देने लगी ।

दर्द की दवा के लिए नेहा पानी लेकर आई और उसने अपने हाथों से खिलाया । थोड़ी देर में दिव्या को नींद आ गयी । नेहा तसल्ली से वहीं बैठकर उसका सिर और पैर सहलाती रही । एक घण्टे बाद जब दिव्या उठी काफी राहत महसूस कर रही थी । उठते ही उसने नेहा से पूछा…”बड़ी भाभी कहाँ हैं भाभी ? नेहा ने बिस्तर से उठते हुए कहा…वो तो ऑफिस से आकर अपने कमरे मे आराम कर रही हैं दीदी ।

चाय बनाकर लाती हूँ आपके लिए और नेहा तकिया को बिस्तर में टिकाकर दिव्या को इशारा करते हुए बोली..”अब मत सोइए दीदी, चाय लेकर आती हूँ साथ मे पिएंगे । सुमित्रा जी सारी बातों को गौर से सुनते हुए दिव्या के मन के भावों को पढ़कर टटोलना चाह रही थीं  ।

नेहा के जाते ही दिव्या माँ के सीने से लगते हुए बोली…माँ ! शालू भाभी एक बार मुझे झाँकने नहीं आईं, और नेहा भाभी को आपने देखा ? एक पल भी मेरा साथ नहीं छोड़ी, मेरे साथ ही लगी रहीं ।

सुमित्रा जी ने कहा..”मुझे क्या देखना है बेटा, मैं तो पाँच सालों से दोनों में अंतर देख रही हूँ, लेकिन तय तुम्हें करना है कि दोनों में कुछ न कुछ कमी है जिसे अनदेखा करके अपनाने में ही तुम्हारे लिए बेहतर होगा ।  हर कुछ सिर्फ पैसा ही नहीं होता । मैं नहीं कह रही तुम किसी एक को ज्यादा करो पर तुम मेरी बेटी हो जैसे तुम मेरे लिए इतनी महत्वपूर्ण हो वैसे ही दोनो बहुएँ भी मेरे लिए खास हैं   ।

दोनो को बराबर समझो और बराबर करो तभी मेरे बाद भी तुम इस घर की प्रिय बनी रहोगी ।

अब दिव्या को माँ की कही हुई बात अच्छी लग रही थी । उसके मन मे ये चल रहा था कि जैसे कपड़े वो शालू के लिए लायी थी वैसा ही बिल्कुल खुद के लिए भी रखा था । झट से उठकर वो अपना बैग टटोलने लगी तब तक नेहा ने आकर चाय दिव्या के टेबल पर रख दिया और जैसे ही नेहा जाने लगी दिव्या ने पैकेट पकड़ाया नेहा को और उसके गले लग गयी ।

नेहा घबरा सी गयी और सवालिया निगाहों से दिव्या को देखकर इशारे में पूछा..ये क्या ? नम आँखें और चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हुए दिव्या ने नेहा से कहा इसे रख लो भाभी, आज तुम्हें बहुत करीब से जाना है । 

फिर नेहा और दिव्या माँ को देखकर हौले से मुस्कुरा दीं ।

मौलिक, स्वरचित

 (अर्चना सिंह)

VM

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