दीदी एक बार चल कर तो देखिए.. आपको पता नहीं इस टूटे-फूटे दो कमरे के छोटे से मकान में क्या आनंद आता है और अब तो जीजा जी भी नहीं रहे बच्चे भी दोनों बाहर रहते हैं, मैं कहती हूं दीदी आप अपनी छोटी बहन के साथ चलकर तो देखिए आप अगर मेरा घर देखेंगे तो देखते रह जाएंगे इतने बड़े-बड़े तो कमरे हैं
जिसमें आपका पूरा मकान समा जाए और नौकर चाकर की फौज है, आप जहां कहेंगे घूमने के लिए हर समय गाड़ी तैयार मिलेगी, नौकर आपकी सेवा में रहेंगे, इतने महंगे महंगे बर्तन, फर्नीचर, आरामदायक गद्दे, दीदी… बस एक बार आप मेरे साथ चल कर देखिए फिर आप दोबारा यहां आने का नाम नहीं लेंगी दीदी मैं अपनी बड़ी बहन के लिए इतना तो कर ही सकती हूं,
छोटी बहन का इतना प्यार देखकर सुमन बोली,…. चल छोटी, इस बार मैं तेरी बात मान ही लेती हूं वैसे मेरा यह घर छोड़कर जाने का बिल्कुल मन नहीं करता चाहे दो कमरों का ही सही पर इसमें तेरे जीजा जी की यादें बसी है मेरे बच्चे खेल-खेलकर बड़े हुए हैं कितना आनंद मिलता है मुझे इस घर में, आस पड़ोस यहां का शहर सब मेरा जाना पहचाना है, अब तू वहां मुझे मुंबई में ले जाकर बैठा देगी,
पर चल.. तेरा कहना भी सही है एक बार में तेरे यहां पर होकर आती हूं, बेटों के यहां जब भी जाती हूं मेरा मन नहीं लगता, बस 10-15 दिन में वापस आ जाती हूं! हां दीदी.. लेकिन इस बार आप मेरे यहां चलिए आपका आने का मन ही नहीं करेगा, अगले ही दिन दोनों बहने सुमन और सरिता मुंबई के लिए उड़ चली
जहां सुमन ने देखा एयरपोर्ट पर सरिता का ड्राइवर गाड़ी लिए खड़ा था आराम से वह घर पर पहुंच गई सरिता का घर क्या था मानो किसी महल के अंदर प्रवेश कर रहे हो, ऐसा घर उसने फिल्मों में राजा महाराजाओं का देखा था, वह सरिता की किस्मत पर नाज करने लगी, किस्मत तो उसकी भी अच्छी थी
किंतु व्यापार में इतना बुरी तरह घाटे पर घाटा होते गए कि संभलने का मौका ही नहीं मिल पाया और इस दुख में रमेश जी चल बसे, खैर.. सरिता के घर के अंदर आलीशान सोफे बेड अलमारी फ्रिज किचन एक-एक कमरा यहां तक की बाथरूम में भी शानदार सजावट की गई थी, सब पैसों की ही माया है
, दो-तीन दिन सुमन को बहुत आनंद आया वह अगर चाय के लिए भी उठती तो नौकर तुरंत वहीं पर लेकर हाजिर हो जाता, खाने में सोचने से पहले ही 56 तरह के पकवान सामने आ जाते किंतु तीन-चार दिन बाद उसे वहां अजीब सा लगने लगा वह अगर किसी भी चीज को हाथ लगाती चाहे वह कुर्सी हो
चाहे सोफा हो सरिता तुरंत बोलती रामू.. फटाफट से आकर उनको साफ करो, देखना कहीं कोई कीटाणु नहीं रह जाए, रसोई में भी अगर वह अपनी पसंद से चाय कुछ बनाती तो सरिता कहती नहीं दीदी आप रहने दीजिए नौकर कर लेंगे, एक दिन सुमन से एक फूलदान टूट गया तो सरिता को गुस्सा आ गया
और उसके मुंह से ना चाहते हुए भी निकल गया दीदी.. आपको पता है एक लाख का फूलदान था यह, अमेरिका से आया था और अपने 1 मिनट में ही तोड़ दिया, आपको पता है यहां की हर चीज कीमती है मैंने आपसे कहा ना आप एक जगह बैठी रहा कीजिए इधर उधर चीजों को हाथ मत लगाइए, पर आप है
की सुनती ही नहीं है, आपके घर की तरह सस्ता सामान नहीं है यहां, ऐसा सुनकर सुमन की आंखों में आंसू आ गए और उसने सरिता से कहा… सोने के पिंजरे से ज्यादा आत्मस्वाभिमान की टूटी-फूटी झोपड़ी कहीं ज्यादा अच्छी होती है, तेरे इस महल से अच्छा मेरा छोटा सा घर है जहां मैं आत्म स्वाभिमान से रह तो सकती हूं,
कोई मुझे कुछ सुनाता तो नहीं है, मुझे माफ कर दो मैं तेरे महल के लायक नहीं हूं ,जैसे ही सरिता ने यह सुना उसको अपनी गलती का एहसास हो गया और उसने दीदी से माफी मांगी किंतु अब सुमन का मन खट्टा हो चुका था और अगले ही दिन वह अपने शहर अपने छोटे से घर में वापस आ गई जहां उसका स्वाभिमान जिंदा था !
#सोने के पिंजरे से ज्यादा आत्मस्वाभिमान की टूटी-फूटी झोपड़ी कहीं ज्यादा अच्छी होती है