नीलम एक सुंदर,प्यारी सी लडकी थी | पिता श्यामसुंदर एक बिजनेस मैन थे और माँ एक कुशल गृहणी | दो बडे भाईयों की इकलौती छोटी बहन थी वह | दोनों भाईयों की अभी शादी नहीं हुई थी |
ग्रेजुएशन पूरा करते ही उसके पिता उसकी शादी की चर्चा करने लगे | नीरज एक स्मार्ट, पढा-लिखा लडका था | बैंक पीओ में नई नई नौकरी लगी थी |
पिता नहीं थे सिर्फ माँ थी | श्यामसुंदर के एक दोस्त ने बताया, तो उन्हें नीरज, नीलम के लिए ठीक लगा | घरवाले और नीलम को भी नीरज पसंद आया |
बहुत धूमधाम से नीलम की शादी नीरज से हो गई | शादी होकर नीलम ससुराल आई | नीरज और उसकी माँ दोनों नीलम को बहुत प्यार करते और उसका ध्यान रखते थे |
उसे घर में खाने, पहनने, अपने मन से रहने, आने- जाने की पूरी छूट थी | शुरू शुरू में नीलम भी बहुत खुश रहती और नीरज की माँ का पूरा आदर,
सम्मान करती परन्तु धीरे- धीरे उसपर बाहरी लोगों का प्रभाव पडने लगा | वह अपने सहेलियों, पडोसियों, रिश्तेदारों मे जहाँ भी जाती, अधिकतर सबको अपने- अपने सास की बुराई करते सुनती |
वो जब अपनी सास की कुछ प्रशंसा भी करती तो सब उसका उल्टा पक्ष दिखाकर उसे भ्रमित कर देते | इससे उसके मन में भी यह बैठ गया कि सास तो बुरी ही होती है और कभी बहू का भला नहीं चाहती |
धीरे- धीरे उसपर भी सबकी बातों का असर होने लगा और अब उसे अपनी सास की अच्छी बातों में भी बुराईयां हीं नजर आने लगी | वह उनसे उलझने लगी और उनकी बात नहीं मानने लगी |
उसकी माँ उसे समझाती, पर वह उनकी भी बातों पर ध्यान नहीं देती | रोज- रोज होने वाले झगडों से तंग आकर उसकी सास अपने गाँव चली गई |
अब नीलम अपने आप को आजाद महसूस करने लगी और जब मन करता मायके जाने लगी | उसके एक भाई की भी शादी हो गई थी | उसकी भाभी बहुत अच्छी थी और उसका बहुत आवभगत करती |
नीलम को वहाँ बहुत अच्छा लगता, पर उसे एक बात अच्छी नहीं लगती कि उसकी माँ उसकी भाभी को हर बात में महत्व देती थी |उसकी भाभी भी उसकी माँ का आदर करती और उनकी सारी बातें मानती |
उसकी माँ और भाभी के बीच सबकुछ बहुत अच्छा था और भाभी सब काम माँ से पूछ कर करती | माँ भी उसे सभी बातों में सलाह देती और उसकी मदद भी करती |
प्रत्येक पर्व, त्यौहार दोनों बहुत उल्लास और आनंद से मनाते | उन दोनों के बीच अच्छे संबंध से घर में हर समय हंसी खुशी का माहौल बना रहता | यह सब देखकर नीलम को अपना सूना ससुराल याद आता,
जहाँ न उसे कोई सलाह देने वाला था न रोकटोक करने वाला | पति तो सुबह के गये शाम को आते | दिनभर वह अकेले रहती | रोज- रोज शापिंग और पार्टी तो होता नहीं था |
अब उसे मायके में भी मन नहीं लगता | उसे याद आता कि उसकी सास भी तो उसकी माँ की तरह ही उसका ध्यान रखती थी, सलाह देती रहती थी पर उसने ही ं उनकी कदर नहीं की |
अब उसे समझ आने लगा कि घर का आंगन बहू से सजता है तो ससुराल भी सास के बिना फीका होता है | वह भी अपनी माँ की तरह सास से संबंध सुधारने और हर बात में उनकी सलाह लेने को सोचने लगी |
उनके प्यार, ध्यान और अपनापन का महत्व समझ गई | उसे अपने सास बिना ससुराल अच्छा नहीं लगने लगा |अपने पति से इस संबंध में बात की और छुट्टी के दिन गाँव जाकर उन्हें वापस ले आई |
वह अपनी सास का पूरा आदर- सम्मान करने और प्रत्येक बात में उनकी सलाह लेने लगी | अब उसके भी संबंध सास के साथ अपनी माँ और भाभी की तरह खुशनुमा हो गये
और घर में हर समय हंसी- खुशी का वातावरण रहने लगा |
# घर का आंगन बहू से सजता है तो ससुराल भी सास के बिना फीका होता है |
सुभद्रा प्रसाद
पलामू, झारखंड |