जे किसी से कम है का – वीणा : Moral Stories in Hindi

मौसी –माँ कहाँ है? ..दिख नहीं रही।

पता नही..अभी तो कुछ देर पहले  तो यहीं थी।

ये दीदी…तुमने देखा क्या माँ को..कहीं नहीं दिख रही, तब से ढूंढ रहा हूं। नीरज परेशान सा था।

तभी शोर होने लगा..जल्दी आओ सब। पंडित जी घृतढारी के लिए कह रहे हैं। मुहूर्त हो गया है। 

तभी किसी ने दबे स्वर में कहा –के बैठेगा घृतढारी में। चच्चा चाची को ही बैठना चाहिए। खून तो खूने न होता है जी…का हुआ जे बीस साल पर आए।

उधर पंडित जी हल्ला मचा रहे थे सो अलग। पर  आशा का कुछ पता नहीं था।

उसकी मौसी, नानी सब आशा को ढूंढ रहे थे कि स्टोर रूम से आशा बाहर निकली।

उसे देखते ही नीरज फट पड़ा…क्या .माँ ….किधर थी तुम, और अभी तक साड़ी भी वही वाली पहनी हुई है। जल्दी तैयार हो जाओ ना।

आशा कुछ कहती,तभी नीरज की फुआ ने कहा… ई कहां जायेगी मंडवा में…अपशगुन होता है। इधरे बैठने दो उनको।

तुम जाओ जल्दी से..चच्चा चाची मंडवा में बैठ गए हैं गोड़ रंगा के… परिछन होने जा रहा है। 

क्या.. माँ नहीं जाएगी … क्यों? क्यों नहीं जाएगी माँ? मैंने तो …कह नीरज थोड़ी देर के लिए चुप हो गया।

तुम नहीं समझोगे बेटा…चच्चा चाची को ही बैठना चाहिए –फुआ ने भरी गर्मी में अपनी भारी बनारसी साड़ी संभालते हुए कहा।

 कौन से चच्चा चाची..वही जिन्होंने 20 साल से यह भी नहीं देखा कि हम जीते हैं या मर गए। और आप फूआ…आप तो इसी शहर में रहती थी न…आपने कब आकर देखा हमें। आज आप किसके कहने पर पहुँच गई यहां…

तभी नीरज की बहन स्मिता वहां आ गई…हमने तो आप लोगों को बुलाया भी नहीं था…कहां से पता लगा लिया आपने भैया की शादी का ..

और रिश्तेदार बन कर चले भी आए। इसका मतलब है कि हमारी जिंदगी कैसे कटी…कैसे कट रही थी.. सब पता लगा रहे होंगे आप लोग। तब ख्याल नहीं आया आप लोगों को।

और हां..क्या कहा आपने? मां के मंडप में जाने से अपशगुन होगा..अपशगुन तो आपलोगों के आने से हुआ है…

चार दिनों से  हम लोग मां के साथ हँस बोल रहे थे पर आप लोगों की फालतू की टोकाटाकी ने हम तीनों के चेहरे को मायूस कर दिया है। इससे भी हमलोगों को प्रॉब्लम नहीं थी..पर आज तो आपने हद ही कर दी।

स्मिता बिना रूके कही जा रही थी और शादी में आए सारे मेहमान आपस में कह रहे थे..ठीक ही तो कह रही है लड़की। कितनी मुश्किल से आशा ने अपने बच्चों को पाला…ये तो सभी जानते हैं।

तभी नीरज हाथ में एक पैकेट लेकर आया और स्मिता को देते हुए बोला…आज मां की भी नहीं सुननी है। इसमें लाल बनारसी साड़ी है ,इसे मां को पहना कर तैयार कर दो। मेरी शादी भी तभी होगी जब सारे रस्म मां खुद से करेगी। बहुत सह लिया मां ने…अब और नहीं।

स्मिता सभी को अवाक खड़ा छोड़ मां का हाथ पकड़ कर कमरे में ले गई और जाते जाते बोली… मां है ये मेरी…जे किसी से कम है का। 

वीणा

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