” अरे समधी जी,आप आज अचानक से यहां!! सब खैरियत तो है??” विजय जी हाथ जोड़कर खड़े हो गए। चेहरे पर मुस्कान थी लेकिन मन आशंकाओं से घिरा था। ऊपर से तो खुश दिखाई दे रहे थे लेकिन मन की अशांति उनके माथे पर पसीने की बूंद के रूप में उभर आई थी।
” क्यों भाई साहब, क्या मैं ऐसे हीं अपने समाधियों से मिलने नहीं आ सकता। फिर हम तो लड़के वाले हैं भई लड़की वालों को परेशान करना तो हमारा हक बनता है ना ।” रविन्द्र जी ठहाका मारकर हंस पड़े।
अचानक से समधी को घर आया देख विजय जी और रमा जी दोनों थोड़ा परेशान थे लेकिन उनके आते ही सब उनकी आवभगत में लग गए। रमा जी भागकर अपनी बेटी खुशी के कमरे में गईं, ” बेटा, तेरे होने वाले ससुर जी आए हैं.…. थोड़ा ढंग से बाल बना ले। सुबह से यूं ही बिखरी बिखरी पड़ी है। , बोलकर रमा जी फटाफट रसोई की ओर भागीं और चाय नाश्ते का इंतजाम करने लगीं।
मां की बात सुनकर खुशी ने कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं दिखाई और चुपचाप उठकर अपने कमरे की खिड़की के पास बैठ गई। आंखें ऐसे सूजी हुई थीं जैसे रात भर सोई हीं ना हो।
विजय जी और रविन्द्र जी दोनों बैठक में बैठ गए । विजय जी सोच हीं रहे थे कि रविन्द्र जी से आने का कारण कैसे पूछें इतने में रविन्द्र जी बोल पड़े, ” समधी जी, शादी की तैयारी कैसी चल रही है इधर? सब कुछ ठीक तो है ना।”
” जी.. जी.. आप चिंता ना करें हम सब अच्छा हीं करेंगे। और समाज में आपके रूतबे को ध्यान में रखकर ही करेंगे।” विजय जी माथे पर आए पसीने को पोंछते हुए बोले।
” वो सब तो ठीक है विजय जी, लेकिन मेरी एक मांग है.. क्या आप वो पूरी कर सकते हैं ??” रविन्द्र जी अचानक से बोल पड़े।
ये बात सुनते ही विजय जी और रमा जी एक दूसरे का मुंह देखने लगे। अब सारी तैयारी करने के बाद और कौन सी मांग रखेंगे लड़के वाले , ये चिंता उन दोनों के चेहरे पर साफ नजर आ रही थी।
उन दोनों को चुप देखकर रविन्द्र जी फिर बोल पड़े, ” समधी जी हम बहू के रूप में अपने घर खुशी ले जाना चाहते हैं.. उदासी नहीं …. समधी जी आपसे हाथ जोड़कर विनती है कि शादी का सारा खर्च हमें उठाने दें और आप वादा कीजिए कि बेटी की शादी के लिए किसी से कोई कर्ज नहीं लेंगे । हमें एक हंसती मुस्कुराती बहू चाहिए जो उस घर में भी खुशियां बिखेर दे ना कि जीवन भर इस घुटन में रहे कि वो अपने माता-पिता पर बोझ डालकर आई है।”
विजय जी और रमा जी फिर हैरानी से एक दूसरे का मुंह ताकने लगे , ” जी, ये आप क्या बोल रहे हैं समधी जी!! बेटी की शादी करना तो पिता का दायित्व होता है।”
” ” समधी जी, हमने खुशी के गुण और संस्कारों को देखकर उसे अपनी बहू के रूप में पसंद किया था ना कि आपकी जमीन जायदाद देखकर ….. अब हम दोनों एक परिवार बनने वाले हैं इसलिए दोनों की इज्जत भी अब एक समान है। कल उसने जब मेरे बेटे आकाश से बात की तो वो बहुत उदास थी और कह रही थी
कि वो इस शादी से इंकार कर दे क्योंकि हमारी हैसियत और उनकी हैसियत में जमीन आसमान का अंतर है। मैं अपने पिता को कर्ज में डुबोकर ने जीवन की शुरुआत नहीं करना चाहती।
समधी जी, हमें सिर्फ आपकी बेटी चाहिए ना कि समाज में दिखावा। हमें लक्ष्मी नहीं हमारी गृह लक्ष्मी चाहिए। ,, रविन्द्र जी हाथ जोड़े खड़े थे जैसे वो खुद एक याचक हों।
उन्हें ऐसे देखकर विजय जी ने उनके हाथ पकड़ लिए और नम आंखों से बोले, ” हम और हमारी बेटी आपके जैसा परिवार पाकर धन्य हो गई समधी जी। काश हर बिटिया को ऐसा ससुराल मिले।”
उनकी बातें सुनकर खुशी भी खुद को रोक नहीं पाई और आकर अपने ससुर जी के पैर छू लिए। खुशी अपने घर के हालातों से अच्छी तरह वाकिफ थी। जब उसे पता चला कि उसके पिता विजय जी उसकी शादी के लिए कर्ज उठा रहे हैं तो वो टूट गई। उसे पता था कि इतना बड़ा कर्ज चुकाते चुकाते उसके पिता का बाकी का सारा जीवन निकल जाएगा। अपने पिता पर इतना बोझ डालकर वो अपने नए जीवन की शुरुआत नहीं करना चाहती थी इसलिए उसने मंगेतर से कह दिया कि वो इस शादी से इंकार कर दे।
लेकिन जब उसने अपने पिता और होने वाले ससुर जी की बातें सुनी तो वो खुद को रोक नहीं पाई और आकर अपने ससुर जी के पैर छू लिए ” अंकल, आपने एक बेटी के मन को समझा .. इसके लिए आपका शुक्रिया ।”
रविन्द्र जी ने खुशी के सर पर हाथ रखते हुए कहा,” बेटा, हमेशा खुश रहो और हमारे घर में भी खुशियां बिखेरती रहना। और हां अंकल नहीं .. अब से तुम मुझे पापा कहा करो …. ,,
खुशी शर्मा गई लेकिन आज सच में वो बहुत खुश थी। उसका अशांत मन अब शांत था। उसके माता-पिता को अपनी बेटी पर गर्व हो रहा था।
#अशांति /
सविता गोयल