बहू का भी मायका होता है – नीलिमा सिंघल

मनीषा खुशी खुशी अपना काम मशीन की तरह निपटाए जा रही थी आज उसको अपने मायेके  जाना था, वो चिन्तामुक्त थी क्यूंकि उसकी सासु माँ ने बताया था कि कुछ दिन सिम्मी नहीं आएगी ।

सिम्मी मनीषा की इकलौती नन्द थी पर 100 के बराबर थी पूरे ससुराल में उसी का हुकुम चलता था सिम्मी को अपने घर से कोई मतलब नहीं था चाहे बच्चों के स्कूल होते चाहे ललित उसके पति की कितनी ही जरूरी मीटिंग्स जब जी चाहता अपने मायके आ जाती थी फिर उसका दखल रहता यहां तक कि मनीषा क्या पहने, पति के साथ कहीं जाए ना जाए सब सिम्मी निर्धारित करती थी।

मनीषा जब ब्याह कर आयी थी तब सिम्मी को अपनी बहन की तरह चाहती थी पर अब सिम्मी मनीषा को किसी जेलर से कम नहीं लगती, सिम्मी की वज़ह से मनीषा 3 साल से अपने मायके नहीं जा पा रही थी, उसका बहुत मन होता माँ के पास जाऊँ उनकी गोद में सिर रखकर अपनी सारी थकान खत्म कर लूं।

इसीलिए आज मनीषा बहुत खुश थी सामान उसने रात को ही पैक कर लिया था रमन ने टिकट भी कर दी थी, माँ के कहने से 3 साल बाद खुद रमन मनीषा को उसको मायके छोड़ने जा रहा था, जैसे ही वो घर से बाहर निकले सामने से सिम्मी आती दिखाई दी,




मनीषा उदास हो गयी हैरान रह गयी क्यूंकि माँ ने तो कहा था वो अभी 15 दिन नहीं आएगी, सामने से आती सिम्मी मनीषा को देखकर खिलखिला उठी उसकी हंसी सुनकर मनीषा की आंखे छलछला उठी

इस कहानी को भी पढ़ें: 

हर बीमारी का इलाज दवा ही नहीं होती है-के कामेश्वरी Moral stories in hindi

सिम्मी अनदेखा कर रमन से बोली “क्या भाई  !!!

पत्नि के नखरे उठाए जा रहे हैं कहां सैर सपाटे की तैयारी हो  रही है बहन को भूल गए,

रमन बोला अरे नहीं सिम्मी वो मनीषा को उसको मायके छोड़ने जा रहा हूं,

सिम्मी बोली मैं आयी हूं तब भी जाओगे क्या आपकी पत्नि को मेरा आना अच्छा नहीं लगता, मनीषा बोलने को हुई कि पीछे से आती आवाज को सुनकर चुप हो गयी, अंदर जाने के लिए मुड़ी तो तो उसकी सासु माँ चली आ रही थी और उन्होंने मनीषा की उदासी और आँखों की नमी देख ली थी।

रमन ने कहा “माँ सिम्मी आयी है मैं…   “

माँ बोली “क्या मैं..मैं मैं…लगा रखी है,”

सिम्मी माँ के गले लगी

माँ ने कहा “तूने तो मना किया था आने का “

सिम्मी ” वो तो ऐसे ही मना कर दिया था देखना था भाई बुलाता है या बहन के न आने से खुश होता है “।माँ ने उसके सिर पर चपत लगायी और सिम्मी को लेकर अंदर जाने लगी।

रमन समान उठा कर अंदर आने लगा तो माँ ने कहा “तू कहां चला,  जा मनीषा को उसको मायके छोड़ कर आ पहले “

सिम्मी माँ को हैरानी से देखने लगी बोली “माँ मुझसे ज्यादा बहु से प्यार हो गया है मैं आयी हूं और आप उसको भेज रही हो “

इस कहानी को भी पढ़ें: 

स्नेह की जीत-गीता वाधवानी Moral stories in hindi





माँ ने कहा “बेटा तू साल मे 20 बार आती है और वो एक बार भी नहीं अब पूरे 3 साल हो गये उसका मन भी करता होगा माँ से मिलने का भाई भाभी की गृहस्थी देखने का “

सिम्मी कुछ ना बोली पर कमरे से निकलती मनीषा सब सुनकर हैरान थी 6 सालों की शादी मे ऐसा पहली बार हो रहा था “

माँ ने आगे कहा “तेरे लिए तेरा मायका एक पर्यटन स्थल से ज्यादा कुछ नहीं जब बोर हुई चली आयी जब थकान हुई चली आयी, बैठे बिठाए सारे काम होते हैं हर चीज बोलते ही मिल जाती है, तो बेटा इस बार भाभी को भी अपने पर्यटन स्थल की सैर करने दे, मेरा मतलब वो अपने मायके इस बार जरूर जाएगी मेरी, तेरी या किसी की भी वज़ह से वो अपनी खुशी से दूर नहीं होगी।

मनीषा अचानक से अपनी सासु माँ के गले लग गयी माँ ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और कहा ” चल बस बस बहुत प्यार हो गया जल्दी जा ट्रेन छुट जाएगी, सासु माँ के पैर छूकर मनीषा बाहर आयी जहाँ रमन उसका इंतजार कर रहा था।

इधर मनोरमा जी को अपनी बहन की बात याद आ रही थी जिसने उन्हें समझाया था और बेटी मोह से बाहर निकाला था वर्ना तो वो कभी नहीं जाने देती थी मनीषा को, हमेशा बेटी का साथ देती थी और 6 साल के बाद भी घर पर सिम्मी की मन मर्जी चलती थी, मनीषा बेचारी खामोश रहती थी, पर इस बार आयी उनकी छोटी बहन ने सब देखा और वापस जाकर मनोरमा जी को फोन पर सब समझाया, वो अनजाने मे खुद की इज़्ज़त खो रही थी बेटे बहु के दिल मे,

दिल से धन्यवाद दे रही थी अपनी बहन को ।।

इधर मनीषा ट्रेन मे बैठे खिड़की से बाहर झाँकती हवा को महसूस कर रही थी रमन प्यार से अपनी पत्नि की मासूम मुस्कराहट को देख रहा था पिछले 3 सालों से मनीषा जैसे मुस्कुराना भूल गयी थी।

सच है मायका एक टूरिस्ट प्लेस ही तो होता है लड़कियों के लिए जहाँ जाकर वो सारी परेशानी समस्या भूल कर अपना बचपन जीती है। ।

इतिश्री

नीलिमा सिंघल

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!