अभी नर्मदा जी को दो-तीन दिन आईसीयू में ही रखना पड़ेगा… उसके बाद ही उनकी हालत के बारे में अच्छे से बता सकते हैं… उन्हें दिल का दौरा पड़ा है… डॉक्टर ने रोहित और आंचल से कहा… डॉक्टर यह सब कह ही रहे होते हैं तभी रोहित की बहन राधिका दौड़ती हुई वहां आई और रोती रोती रोहित से पूछने लगी… भैया यह सब कैसे हो गया..? सुबह ही तो मां से बात हुई तब तो वह बिल्कुल ठीक थी… फिर यह सब अचानक..?
रोहित: अब तबीयत बोलकर थोड़े ही ना खराब होती है..? अचानक ही होता है सब कुछ… पर शुक्र है तुम्हारी भाभी ने सही समय पर मां को अस्पताल में भर्ती कराया… वरना मामला और बिगड़ सकता था…
राधिका: हां अब जिसने मामला बिगाड़ा है… सुधारेगी भी वही ना… इसमें कौन सी बड़ी बात है..?
रोहित: क्या मतलब है तुम्हारा..?
राधिका: यह सब छोड़ो अब बताओ आगे क्या करना है..?
रोहित: आगे क्या करने से क्या मतलब है तुम्हारा.., डॉक्टर ने कहा ना अभी के मां को आईसीयू में ही रखेंगे कुछ दिन… उसके बाद ही क्या करना है पता चलेगा…
राधिका: देखो भैया… मुझे घुमा फिरा कर बात करने की आदत नहीं… मुझे अच्छे से पता है मां की यह हालत भाभी की वजह से ही हुई होगी… इसलिए मैं मां को अस्पताल से सीधे अपने घर ले जाऊंगी… मुझे अब भाभी पर कोई भरोसा नहीं
रोहित: यह तू कैसी बातें कर रही है..? और तू अपनी भाभी पर इतना बड़ा इल्जाम किस बिना पर लगा रही है..? क्या तुझे मां ने यह सब बताया..?
राधिका: बताने की जरूरत नहीं होती हर बात… बेटी हूं सब समझ सकती हूं… अभी मुझे ज्यादा बहस नहीं करना… एक बार मां ठीक हो जाए बस
उसके कुछ दिन बाद नर्मदा जी अस्पताल से स्वस्थ होकर घर वापस आ जाती है… राधिका भी वही थी रोहित ने मां को ले जाने से मना कर दिया था, इसलिए उसने कुछ दिन वही रूकने का इरादा बना लिया… अब सारे रिश्तेदारों का तांता लगा हुआ था नर्मदा जी को देखने के लिए… राधिका तो पूरे दिन नर्मदा जी के पास ही बैठी रहती… मेहमानों को संभालना, घर के काम और यहां तक की नर्मदा जी की भी देखभाल आंचल ही करती थी… राधिका ज्यादा से ज्यादा नर्मदा जी को उठकर बाथरूम तक ले जाती थी… राधिका अपनी मां के खाने का बराबर ध्यान रखती थी… हां यह बात अलग थी कि वह खाना आंचल से बनवाती थी..
1 महीने ऐसे ही बीत गए… घर में नर्मदा जी के स्वस्थ होने की वजह से सत्यनारायण की कथा रखवाई गई थी… जिसमें सभी रिश्तेदार आसपास वाले सम्मिलित थे… नर्मदा जी भी कुर्सी पर बैठी हाथ जोड़कर भगवान का ध्यान कर रही थी… तभी उनकी बहन रमा जाकर कहती है… अरे दीदी भगवान से कहो के बहू को जरा सद्बुद्धि दे… यह आजकल की बहू से और उम्मीद भी क्या कर सकते हैं..? वह तो हमारी बेटियों की वजह से हम जी लेते हैं… सभी बेटी को बोझ समझते हैं… बेटी होने पर ऐसे दुखी होते हैं मानो वह कोई कलंक हो, जो मां-बाप के माथे पर लग गई हो… पर यही बेटी हमारी सेवा हमारे आखिरी सांस तक करती है… पर एक बात बताओ दीदी तुम तो हमेशा अपनी बहू की तारीफ करती थी… फिर ऐसा कैसा कर दिया उसने..?
नर्मदा जी हैरान होकर अपनी बहन रमा से पूछती है.. यह क्या कह रही हो तुम..?
रमा: अरे राधिका ही तो कह रही थी… तुम्हरी बहू तुमसे घर का सारा काम करवाती है… बेवजह हुकुम चलती है जिससे तुम्हारी यह हालत हुई…
नर्मदा जी: क्या राधिका ने ऐसा कहा..? पर मैंने तो उससे कभी ऐसी बातें नहीं की…
रमा जी: देखो दीदी तुम शायद अपनी बहू की करतूत छुपाना चाहती हो… पर हमारी बेटियों से कुछ भी छुपाना आसान नहीं… चलो अब तुम थोड़ा सख्त बनो… अब बेटी कब तक तुम्हारे लिए लड़ेगी..? तुम भी अपने लिए लड़ना सीखो…
नर्मदा जी फिर पूजा खत्म होने का इंतजार करने लगी.. पूजा संपन्न हुई और सभी कोई नर्मदा जी से प्रसाद लेकर जाने को हुए… तभी नर्मदा जी सभी को रोककर रहती है… आज भगवान की कृपा से मैं स्वस्थ हो गई… पर इसके पीछे मेरी बेटी का सबसे बड़ा हाथ है… जो वह ना होती तो शायद आज मैं ना होती… इसलिए आप सभी मेरी बेटी को भी आशीर्वाद देते जाना… इस पर सारे लोग राधिका की तारीफ करने लगे और कहने लगे भगवान ऐसी बेटी सभी को दे…
राधिका गर्व से फूली जा रही थी… तभी नर्मदा जी कहती है… अरे रुको मैं उस बेटी की नहीं अपनी दूसरी बेटी आंचल की बात कर रही हूं… अपनी बेटी तो मां की सेवा करेगी ही… पर जब बहू बेटी की तरह अपनी सास की सेवा करें वह सच में उस सास का किया गया कोई पुण्य हीं होगा, जिसके फल स्वरुप बहू के रूप में उसे बेटी मिली… मेरी बेटी तो यहां मेरी सेवा करने को रुकी थी… पर उसने तो यहां आकर मेरे साथ-साथ खुद के आराम की ही व्यवस्था भी कर ली…
मेरी सेवा तो असल में बस आंचल ने हीं की है… जिस दिन मेरी तबीयत ठीक नहीं थी… मैं तो मामूली गैस समझ कर दवा ले रही थी… पर इसने मेरी तबीयत को देख पता नहीं क्या समझा… बिना किसी की राह देख सीधे अस्पताल में मुझे भर्ती करा दिया और आज शायद उसका नतीजा यह है कि मैं यहां बैठी हूं सही सलामत…
बेटी ने ना आगा देखा ना पीछा, बस उसके बुरे होने का ढिंढोरा पीट दिया और हमारा समाज हमेशा बेटियों को सही और बहू को गलत ही समझता है… बहू चाहे कितना भी कर ले… वह कलंक उसके माथे हमेशा मड़ दिया जाता है, कि वह बहू है वह अपने सास ससुर की सगी कभी नहीं हो सकती और इसी तरह की कानाफूसी से न जाने आज कितनी ही बहुएं बदनाम है… पर लोग यह भूल जाते हैं जो बहू है वह भी किसी की बेटी है..
उसके अंदर भी एक बेटी का दिल है… जो आप उसे अपनी बेटी मानोगे तो वह भी आपको अपनी मां मानेगी… एक कदम आप बढ़ाओगे तो एक कदम वह भी बढ़ाएगी… इस तरह बढ़ते बढ़ते दोनों एक दिन गले मिल जाएंगे और परिवारों में कलेश ही खत्म हो जाएगा… दोनों तरफ से अगर बराबर प्यार से यह रिश्ता निभाया जाए, तो इस रिश्ते से मजबूत और कोई रिश्ता नहीं हो सकता… आप कितने सहमत हो इस बात से..? जरूर बताना…
धन्यवाद
रोनिता कुंडु
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