“मां, मैं अभी शादी नहीं करूंगी…अभी मेरी पढ़ाई पूरी नहीं हुई है…कितनी बार आपको कहा मैंने…” रुचि ,अपनी
मां ममता का विरोध करती बोली जब उन्होंने राजेश का रिश्ता उसके लिए बताया।
ममता को गुस्सा आ गया था…”कितनी बार कह चुकी हूं कि तेरे पापा वहां" हां "कह चुके हैं,अब कुछ नही हो
सकता… मैं तुझ्से पूछ नहीं रही हूं,बता रही हूं…।”
रुचि बड़बड़ाती रह गई और उसी महीने उसकी शादी,साधारण तरीके से राजेश से हो गई।साधारण इसलिए
कि लड़के वाले कोई तामझाम पसंद नहीं करते थे और लड़की वालों पर भी दिखावे के लिए पैसा नहीं था।
राजेश की सरकारी नौकरी थी,खाता पीता बड़ा परिवार था लेकिन ज्यादातर भाई बहन अपने अपने घरों में
सैटल थे,बस वो अपनी मां के साथ ही रह रहा था।
ममता खुश थीं कि लड़की खुश रहेगी,छोटा परिवार है,ज्यादा जिम्मेदारी नहीं रहेगी,वो अपनी पढ़ाई भी जारी
रख सकती है वहां जैसा उन लोगों ने कहा भी था।
रुचि भी ये सुनकर शांत हो गई,भाग्य में जो लिखा है,वैसा ही होगा,सोचकर मन को मना लिया था उसने।
शादी होकर ससुराल आई तो उसने पाया राजेश तो अपनी मां के बहुत बड़े भक्त हैं,उसे बुरा नहीं लगा,सोचा
जो आदमी अपनी मां को प्यार नहीं करता वो भला बीबी को क्या करेगा?ये तो अच्छी बात ही है …आखिर
उनके सिवाय हमारा है ही कौन?
पर यहां सीन कुछ और ही था…राजेश अपनी मां को चाहता था,ये अच्छी बात थी पर उसकी मां को, रुचि ,फूटी
आंख न सुहाती,इस बात से रुचि विचलित हो उठी।वो रुचि को पहले ही दिन से अपने कम्पटीटर की तरह
देखती तो वो परेशान हो गई…”ये मां हैं तो मां बनके रहें,शादी मुझसे हुई है राजेश की ,ये क्यों पत्नी वाले
अधिकार चाहती हैं उससे?”
दिन बीतने लगे,रुचि और राजेश का रिश्ता ठीक से शुरू भी न हो पाया था कि उसमें दरार पड़ने लगीं।रुचि की
लाख कोशिशों के बाबजूद भी राजेश और उसके बीच सब कुछ क्या,कुछ भी सामान्य नहीं हो पा रहा था
कारण था राजेश की मां..उन्होंने जैसे ठान हो रखा था कि बेटे को बहु से दूर रखना है।
राजेश ऑफिस से आते,रुचि बैचेन होकर उसका बालकनी में खड़े हो इंतजार करती पर ममता उसी वक्त
,रुचि को किसी जरूरी काम में फंसा देती और खुद जाकर वहां खड़ी हो जाती..रुचि जानती थी कि वो
जानबूझकर ऐसा कर रही हैं पर राजेश जान कर भी अनजान बना रहता इस सबसे।
एक दिन गलती से,शायद,राजेश,रुचि को शॉपिंग ले गया,उसकी मां सुमन जी ने तूफान खड़ा कर दिया…ऐसा
नाटक किया कि आगे उनका बेटा उन्हें अकेले छोड़ जाने की हिम्मत ही न कर पाए कभी फिर….।
“बेटा…मेरे इतना भयंकर पेट दर्द हुआ कि मैं तड़प उठी….अकेली थी मैं…दवाई ढूंढकर परेशान हो गई…बेटा
..ऐसा कर तू मेरा कल का टिकट करा दे, मैं राजुल के पास चली जाती हूं रहने…वहां नौकर चाकर भी हैं
देखभाल करने को….”
“कैसी बात करती हो अम्मा…? आगे से हम कभी,कहीं नहीं जायेंगे आपको अकेला छोड़कर…”,राजेश के चेहरे
पर ग्लानि के भाव आ गए।
उधर रुचि समझ रही थी कि ये उन्हे जलील करने का प्रपंच मात्र है,जहां जाने की बात कर रही हैं वो तो बड़े
ऑफिसर हैं उसके जेठ जिठानी…वो पानी भी न पूछे इन्हें….लेकिन धमकी ऐसे दे रही हैं जैसे वो पलक पांवड़े
बिछाए बैठे हों।
एक दिन,रुचि के वही जेठ जिठानी राजुल और साक्षी ,उनके घर आ गए,अचानक ही आए थे कोई पूर्व सूचना
नहीं थी।रुचि थोड़ा हड़बड़ा गई थी,उसकी सास,सुमन जो कभी मुस्कुराती भी न थीं आज बहु के साथ ठहाके
लगा रही थीं….दोनो ऐसे बाते कर रही थीं जैसे जन्मों की सखियां हों…रुचि सबकी आवाभगत में लगी हुई थी
,कभी कभी कनखियों से सास को देख लेती कि साक्षी भाभी के साथ कितना खुश हैं ये…
जो उसे हर वक्त सिर पर पल्लू न लेकर रखने का ताना देती हैं वो साक्षी भाभी जो कट स्लीव्स नाइटी पहने
अपने पति से लिपटे चिपटे पड़ रही हैं सास की उपस्थिति में ही,उनसे कैसे हंसी ठिठोली कर रही हैं…
“ये क्या नियम हैं संसार के…?” रुचि बड़बड़ाई…”जो बहु संग रहे,सब करे,गुस्सा सहे आपका वो बुरी है और जो
कभी कभी मेहमान बन कर दर्शन दे,उसके सात खून भी माफ…वाह री दुनिया!तेरे नियम कानून..सब कितने
निराले हैं,या ये गरीबी एक कलंक है,मेरे पति कम कमाते हैं इसलिए मेरी दुर्गति है?”
रुचि दिन पर दिन दार्शनिक सी बनती जा रही थी,सास तो उसकी भावनाओं को नहीं समझती थीं पर उसका
पति भी उसकी जरूरतों और बातों से मुंह मोड़ कर बैठा था…अब वो करे भी तो क्या करे?
उसने डायरी लिखनी शुरू कर दी..अपनी सारी फीलिंग्स,फ्रस्टेशन और गुस्से को लेखनीबद्ध कर उसकान
शांत हो जाता…कभी कविता,कभी कहानी बनकर उसका दर्द कागज़ों को काला करने लगा पर अब वो शांत
हो गई थी।
एक दिन,राजेश के हाथ,उसकी डायरी लग गई..”ये सब क्या है रुचि?”उसने पूछा था थोड़े गुस्से से…।
उसके हाथ से छीनते हुए रुचि बोली…”इट्स बेड मैनर्स राजेश…दीजिए मुझे…”
“नहीं…नहीं दूंगा…अम्मा…अम्मा..” अपनी मां को आवाज देता राजेश बोला…
"ये बड़ी खतरनाक लड़की है अम्मा!ये हमे पुलिस में पकड़वा देगी.. देखो घुमा फिरा के यहां घर की बातें ही
लिखी हैं"
“क्या???” रुचि का मुंह खुला ही रह गया…तो ये अंदाजा लगाया गया मेरे लेखन से…किसी ने सही कहा है भैस
के आगे बीन बजाने से कुछ न होगा….यहां उसकी प्रतिभा मिट्टी के मोल बराबर है….”
बहुत रोई थी वो उस दिन…पर खुद ही रोते रोते अपने आंसू पूंछ लिए थे उसने क्योंकि किसी को नहीं पड़ी थी
यहां कि वो रोए या हंसे….।
एक बात तो वो अच्छे से समझ गई थी कि इन मां बेटे का दिल बस एक दूसरे के लिए ही धड़कता था केवल…
बाकी सबके लिए बहुते मेकेनिकल थे दोनो ही….।
सालो बीते,रुचि और राजेश के ऐसे ही जीवन में दो बच्चे आ गए थे अब उनके बीच…जब राजेश ने देखा कि
उसकी मां को तो उसके बच्चो से भी जरा प्यार नहीं वो उखड़ा उखड़ा रहने लगा… “कैसी औरत हैं ये?सिर्फ
अपना ही सोचती हैं….छोटे बच्चो तक से लगाव,प्यार नहीं…”
अब स्थिति ऐसी हो गई कि उसे मां की गतिविधियों से एलर्जी होने लगी…धीरे धीरे,उसने मां से बातचीत कम
कर दी और फिर बिल्कुल खत्म ही कर दी।
छोटी छोटी बात को मां अब भी उसीसे कहती..”.बेटा,मेरी दवाई खत्म हो गई…बेटा मुझे स्लीपर्स चाहिए…”
पत्थर दिल मां का पत्थर दिल बेटा बिलकुल चुप रहता…फिर बेचारी रुचि को बूढ़ी औरत पर तरस
आता…”ठीक है अम्मा जी…ले आयेंगे हम…”
“चुप रह…तुझसे नहीं मांग रही,अपने बेटे से कह रही हूं…”
“ओह!घमंड तो देखो…वो जबाव तक नहीं देते पर कहेंगी अपने बेटे से ही…रस्सी जल गई पर बल नहीं गए…”
रुचि बहुत अफसोस करती…”क्यों भगवान ने मुझे ऐसा बनाया है…दिल करता, कहीं भाग जाए इन
हिप्पोक्रेट्स से दूर…पर फिर ध्यान आता खुद से किया गया प्रोमिस…”
. "भगवान जिस भी स्थिति में रखेंगे,मुझे खुश रहना है,यही मेरी पूजा है और यही मेरा धर्म"
और निभाती रही वो अपना धर्म ताउम्र….कोशिश करती कि किसी से कम ही शिकायत करनी पड़े।
समय का चक्र बहुत तेज घूमता है,समय के साथ रुचि की सास सुमन जी काल कवलित हो गईं…दुख तो होना
ही था जो समान्यत किसी के भी हमेशा के जाने से होता है…कोई कैसा भी
हो पर जीना मरना ऐसी बातें हैं जिनमे दुश्मन के जाने का भी दुख होता है अगर वो अकाल मृत्यु जाए,वैसे
सुमन जी तो अपनी पूरी उम्र जी कर गई थीं।
आश्चर्य तब हुआ रुचि को जब उनके जाने के बाद,राजेश का व्यवहार उसके प्रति और ज्यादा तल्ख हो
गया।वो चकित रह गई जब एक दिन राजेश ने रुचि पर आरोप लगाया….”सिर्फ तुम्हारी वजह से मैंने आखिर
के वक्त में अम्मा से बोलना बंद कर दिया था….मुझे कितना दुख है इस बात का…”
“पर मेरी वजह से क्यों?”वो तड़प कर बोली।
“क्योंकि तुम हर वक्त मेरे कान पर बजती थीं कि वो तुम्हें परेशान करती हैं और फिर गलत बात भी बार बार
बोली जाए तो सही लगने लगती है…मेरे दिमाग पर भी बहुत प्रेशर रहता था हर वक्त….”
रुचि अवाक होकर राजेश को देखती रही…”वाह रे इंसान!ये खूब रही…मेरी कोई अच्छाई आजतक न देख सके
तुम लोग…अपना सारा जीवन होम कर दिया तुम लोगों की खुशी के लिए और पुरुस्कार क्या मिला….ये ताना
कि मेरी वजह से…..”
लेकिन रुचि अब दृढ़ निश्चय कर चुकी थी,यहां नहीं रहेगी,वो पढ़ी लिखी है,अपने पैरों पर खड़ी हो सकती
है,अपने बच्चों को खुशहाल जिंदगी दे सकती है,ये आदमी जो उसका पति होने का दंभ करता है,उसकी
संगति में उसके बच्चे भी नकारा ही बनेंगे और जीवन भर उसे परेशान करते रहेंगे।ऐसे दिखावटी रिश्तों नातों
को वो नहीं मानती।जिंदगी भर ये दोगला,कलंकित रिश्ता धोने से बेहतर है कि वो अपनी राह अलग चुने।
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
#कलंक
Bahut der ki mehrbaan aate aate. Jo decision pahle lena tha vo ab lene ka kya fayda
Absolutely