” बस आरव, बहुत हो चुका…अब मैं तुम्हारी तानाशाही हर्गिज़ नहीं सहूँगी।” निशा लगभग चीखते हुए बोली।
” हाँ तो…मैं भी अब तुम्हारी गुलामी बर्दाश्त नहीं कर सकता।आरव.. ये मत करो..ऐसे नहीं बैठो..ये मत खाओ..तंग आ चुका हूँ तुम्हारी इस दादागिरी से..।”आरव भी उसी लहज़े में बोला तो निशा भड़क उठी,” अच्छा…शादी से पहले तो कहते थे कि निशा डियर..तुम्हारी चाॅइस ही मेरी चाॅइस होगी और अब तंग आ गये मुझसे।”
” कहती तो तुम भी यही थी….सब ढ़ोंग था।”
” ओह! तो अब मैं ढ़ोंग करती हूँ।तो फिर अब तुम रहो अकेले…मैं जा रही हूँ अपने मायके..।”
” धमकी ही देती हो…जाने की हिम्मत नहीं है..जानती हो कि घरवाले तुम्हें दो दिन भी नहीं रखेंगे…।”
” आरव! अब तो तुम नाक भी रगड़ोगे तो मैं नहीं रुकूँगी..।” निशा ज़ोर- से चिल्लाई और बेड के नीचे से ट्राॅलीबैग निकाल कर उसमें अपने कपड़े रखने लगी।
आरव ने उसपर एक सरसरी निगाह डाली, धीरे-से बुदबुदाया ‘ नाक रगडूँगा..और मैं..उंह..’ और कंधे पर अपना लैपटाॅप बैग डालकर ऑफ़िस की कैब में बैठ गया।
आरव दिल्ली की एक मल्टीनेशनल कंपनी में ज़ाॅब करता था।करीब छह माह बाद निशा ने ज़्वाइन किया।वह नई थी तो आरव ने उसकी मदद की।दोनों में दोस्ती हो गई।ऑफ़िस के बाहर भी दोनों एक साथ समय बिताने लगे।
बातचीत में निशा ने बताया कि उसके पिता शहर के नामी बिजनेसमैन हैं।उसका बड़ा भाई प्रकाश पिता के साथ ही काम करते हैं। परिवार शिक्षित और सुसंस्कृत है।घर में उसकी पढ़ाई और नौकरी करने पर किसी ने भी कोई आपत्ति नहीं की थी।आरव ने भी बताया कि उसके पिता एक सरकारी कर्मचारी थे।साल भर पहले सेवानिवृत होकर अपने पैतृक आवास में माताजी के साथ रिटायर्ड लाइफ़ का आनंद ले रहें हैं। छोटी बहन मीता अपने पति के साथ नागपुर में रहती है।
इसी बीच आरव ने दूसरी कंपनी ज्वाइन कर ली लेकिन दोनों की दोस्ती बरकरार रही।फिर एक दिन निशा ने ही आरव से अपने मन की बात कह दी।तब आरव बोला,” मेरा दिल भी तुम्हारे लिये धड़कता है लेकिन डरता था कि…. तुम अमीर घराने की हो और मैं ठहरा मिडिल क्लास…।” तब निशा बोली,” बड़े-छोटे की बात तो न मैं मानती हूँ और ना ही मेरी फ़ैमिली…।तुम मेरे डैडी से आकर मिल लो वरना मैं किसी और की हो गई तो हाथ मलते रह जाओगे…।” कहते हुए वह हँसने लगी थी।
आरव ने जब अपने पिता हरिकिशन बाबू को निशा के बारे में बताया तो वो कहने लगे कि बेटा,” उसके और तुम्हारे स्तर में बहुत अंतर है…कहीं ऐसा न हो कि बाद में…।निशा की मम्मी ने भी अपनी बेटी को यही समझाया कि तुम दोनों के बीच कोई मेल नहीं है…कुछ ही दिनों में मतभेद होने लगेंगे।तब दोनों ने अपने परिवार को आश्वस्त किया कि हमारे बीच अच्छी अंडरस्टैंडिंग है…हम एक-दूसरे के विचारों का पूरा सम्मान करेंगे।मियाँ-बीवी राज़ी तो क्या करेगा काज़ी वाली बात चरितार्थ हुई।निशा के पिता ने धूमधाम से बेटी का विवाह आरव के साथ कर दिया।
अब आरव और निशा एक साथ घर से निकलते।निशा को उसके ऑफ़िस ड्रॉप करके आरव अपने ऑफ़िस चला जाता था।दो महीने तो सब अच्छा-अच्छा चला…दोनों एक-दूसरे की बात का हाँ-हाँ कह के समर्थन करते।फिर निशा आरव की गलतियाँ निकालने लगी।कुछ दिनों तक तो आरव इग्नोर करता रहा लेकिन एक दिन उसने निशा से कह दिया कि तुम मुझे हर बात पर टोकना बंद करो।फिर तो निशा ने भी पलटकर जवाब दे दिया,” तुम काम ही ऐसा करते हो कि मुझे टोकना पड़ ही जाता है।”
बस फिर तो आरव-निशा के फ़्लैट से ऊँची आवाज़ें बाहर आने लगी जिसे पड़ोसी चटखारे लेकर सुनते और आनंद लेते।अब दोनों अकेले-अकेले ऑफ़िस जाते और देर रात घर लौटते।इसी बीच आरव के माता-पिता आये..बेटे को समझाया कि घर की बात बाहर करके क्यों तमाशा के पात्र बनते हो मगर उसके कान पर जूँ तक नहीं रेंगी।निशा भी जब मायके जाती और भाभी या मम्मी आरव के बारे में पूछती तो वो शिकायतों का पुलिंदा खोल देती तब दोनों ही उसे समझाते कि अपनी गृहस्थी का मज़ाक बनाना अच्छी बात नहीं होती है।
आज बात कुछ ज़्यादा ही बढ़ गई…निशा ने अपने तेवर दिखाये तो आरव भी अड़ गया।उसके जाते ही निशा भी अपना ट्रॉलीबैग लेकर अपने मायके चली गई।न उसने आरव को फ़ोन किया और ना ही आरव ने उसे।उसके पिता बेटी का रवैया देखकर सारा माज़रा समझ गये थे।
कुछ दिनों के बाद निशा की मम्मी बेटी से बोलीं कि पति-पत्नी के बीच पसंद-नापसंद को लेकर मतभेद होते रहते हैं लेकिन कुछ समय के लिये।जानती है तेरी बुआ भी तेरे फूफा से ऐसे ही रूठती थी लेकिन चार दिनों बाद ही…।कहते हुए वो हँसने लगी।लेकिन ये तो निशा थी…अपनी बात को ही सही मानने वाली…झुकना उसे गँवारा न था।
आरव के माता-पिता को भी बहू बिना घर सूना लगा।उन्होंने जब बेटे को कहा तो वह भड़क उठा,” मैं क्यों लाने जाऊँ…जैसे गई है वैसे ही आयेगी…।”
जब बच्चे नादानी करते हैं तब घर के बड़े ही उन्हें सही राह पर लाने का प्रयास करते हैं।हरिकिशन बाबू ने अपने समधी जी को फ़़ोन किया और उन्हें धीरे-से एक सलाह देते हुए बोले कि आप ऐसा ही कीजिये।
” लेकिन इससे कहीं…।” निशा के पिता ने आपत्ति जताई।
” कुछ नहीं होगा…मैं अपने बेटे-बहू को एक साथ देखना चाहता हूँ, बस…।कहकर हरिकिशन बाबू ने फ़ोन डिस्कनेक्ट कर दिया।
आरव ऑफ़िस के लिये तैयार होने लगा तो उसे किचन से आवाज़ें सुनाई दी, उसकी माँ कह रही थी,” आप तो सठिया गये हैं…एक गिलास रखने को कहा तो सब उलट-पुलट कर दिया।” जवाब में पिता बोले,” जब तुम जानती हो कि मुझे तुरई पसंद नहीं तो क्यों पकाई..।” आरव उन्हें समझाने गया तो माँ बोलीं,” तुम नहीं जानते…इन्होंने…।” आरव ऑफ़िस चला गया।उस दिन के बाद से वो रोज अपने माता-पिता को तू-तू- मैं-मैं करते देखता और वो सुलह कराता।
निशा भी जब ऑफ़िस जाने लगती तो भाभी को भईया से कहते सुनती,” आपसे एक टाई भी नहीं संभाली जाती..कभी दाल तो कभी सब्ज़ी गिरा लाते हैं।” पलटकर प्रकाश भईया भी पत्नी को दो बात सुनाकर ऑफ़िस चले जाते। शाम को चाय पीने बैठती तो मम्मी को डैडी से झगड़ा करते देखती।उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।एक दिन उसने भाभी को रोकना चाहा तो भाभी तपाक-से बोली,” निशा…छोटी-छोटी बातें ही तो बड़ी हो जाती हैं।”उस दिन उसे आरव की बहुत याद आई।सोचने लगी, भाभी झगड़ा करके भी भईया के साथ ही खाना खातीं हैं और एक मैं हूँ जो छोटी बात को बड़ा करके मायके चली आती हूँ।आरव को ठंडा खाना पसंद नहीं…मम्मी की भी तो उम्र हो रही है..पापा और आरव की ज़िम्मेदारी उन पर पड़ गई..आरव तो लाइट बंद करना ही…सोचते-सोचते उसकी आँख लग गई।
सुबह उठते ही निशा को फिर से आरव का ही ख्याल…उसका मन बेचैन हो उठा।क्या करूँ…आरव को मैसेज करूँ…मुझे फिर से सुना दिया तो..क्या हुआ..सुन लूँगी।अपने मन को समझा कर उसने आरव को मैसेज किया ‘ लेने आ सकते हो।’
अपने माँ-पापा के झगड़े से आरव तंग आ चुका था।सोचने लगा कि काश! निशा होती तो मेरी परेशानी समझती।जाकर ले आता हूँ…नहीं आई तो…एक बार कोशिश तो करता हूँ।पहले उसे मैसेज कर देता हूँ।उसने फ़ोन उठाया तो निशा का मैसेज़ पढ़कर खुशी-से उछल पड़ा।उसने तुरंत Coming टाइप कर दिया।
आरव का जवाब देखकर निशा के तो जैसे पंख लग गये हो।उसने ट्राॅलीबैग में कपड़े रखे और लैपटॉप बैग अपने कंधे पर रख ही रही थी कि काॅलबेल बजी।दरवाज़े पर आरव को देखकर जी तो किया कि उसके गले लग जाये लेकिन उसने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण किया और मम्मी से बोली,” आरव लेने आये हैं मम्मी..अब के चली जाती हूँ…अगली बार नहीं।”
” ज़रूर जा बेटी…आरव बेटा…खुश रहना।”
” जी मम्मी ” कहते हुए आरव ने अपने सास-ससुर के पैर छूकर आशीर्वाद लिया..अपनी सलहज़ को प्रणाम करके निशा का बैग अपने हाथ में ले लिया।दोनों ने अपने चिर-परिचित रेस्तरां में जाकर काॅफ़ी पी और गिले-शिकवे दूर किये।तब निशा आरव के कंधे पर अपना सिर रखकर बोली,” क्या बताऊँ आरव…कुछ दिनों से मेरे भईया-भाभी और डैडी-मम्मी बात-बात पर झगड़ने लगे थे।अच्छा नहीं लगता था..तुम्हारी बहुत याद आती थी।”
तब आरव हँसते हुए बोला,” घर चलो तब देखना…तुम्हारे सास-ससुर भी इस उम्र में यही कर रहें हैं।मैं तो थक गया…अब तुम्हीं कुछ…।”
निशा के जाते ही उसके पिता हरिकिशन बाबू को फ़ोन करके बोले,” बधाई हो समधी जी..हमारा मिशन कामयाब हो गया।” और दोनों ही ठहाका मारकर हँसने लगे।दरअसल हरिकिशन बाबू ने ही अपने समधी जी को आपस में झगड़ने का नाटक करने की सलाह दी थी और स्वयं भी यही कर रहे थे।उन्हें विश्वास था कि ऐसा करने से आरव और निशा को गलती का एहसास होगा तथा एक-दूसरे की कमी भी महसूस होगी।उनका सोचना सही साबित हुआ।
बेटे- बहू को साथ देखकर आरव की माँ बहुत खुश हुईं।निशा से बोलीं,” अपना घर संभालो बेटी..पति-पत्नी के बीच के झगड़े को…।”
” कोई झगड़ा नहीं हैं माँ..।” निशा तपाक-से बोली।फिर सास का हाथ अपने हाथ में लेकर बोली,” माँ..आप भी पापा के साथ सुलह…।” तभी हा-हा करते हुए हरिकिशन बाबू ने अपनी पत्नी के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले,” हमारे बीच तो कोई मतभेद…।” उनकी बात अधूरी रह गई क्योंकि पत्नी उनका हाथ दबाकर न कहने का इशारा कर चुकी थी।आरव व निशा उनके इशारे से समझ गए कि उनके माता-पिता ने उन्हें एक करने के लिये झूठे झगड़े का स्वाँग रचा था।दोनों ने हरिकिशन के चरण-स्पर्श करके आशीर्वाद लिया और बोले,” थैंक्स पापा!”
विभा गुप्ता
# मतभेद स्वरचित, बैंगलुरु
बच्चे जब गलती करते हैं तब माता-पिता ही उन्हें सही राह दिखाते हैं।जब बात नहीं बनती है तब वे बच्चों की खुशी के लिये स्वाँग रचते हैं जैसा कि हरिकिशन बाबू ने अपने समधी जी के साथ मिलकर किया।
Good
Not so bad