अब तो कह ही दो – पूनम भटनागर : Moral Stories in Hindi

सुवर्णा , कहां हो तुम , ये पेपर साइन करने थे, मीटिंग के लिए देर हो रही है,।

सोमेश्वर , मैंने कहा था न,कि अब मेरे साइन की जरूरत नहीं है, तुम स्वयं ही सब देख लिया करो।

मैंने भी कहा था न, सुवर्णा, तुम अगर मेरी बात नहीं मानोगी, तो मैं यह कैसे कर सकता हूं।

देखो, सोमेश अभी वक्त नहीं मिला , यह सब सोचने का,चलो मीटिंग के लिए , समय निकला जा रहा है। वह सोमेश्वर को सोमेश् कह कर भी बुलाती थी। दोनों आफिस के लिए कार की तरफ बढ़ गये।

आफिस पहुंचने पर एक के बाद दूसरी मीटिंग भी शुरू हो गई। सुवर्णा रितु का हाल चह कर भी मेड से नहीं पूछ पाई। रीतू उसकी बहन की दो वर्ष की बिटिया थी। जो दीदी व जीजा जी के देहात के बाद उनके साथ ही रहती।

मीटिंग खत्म होने पर सुवर्णा को घर जाने की जल्दी थी क्योंकि वह जल्द से जल्द रीतू के पास पहुंचना चाहती थी। रीतू हालांकि बहन की बेटी थी पर वह उसे अपने बच्चे से ज्यादा लगाव था। वह मासी बन कर नहीं मां बन कर उसे संभाल रही थी। घर आकर उसने रीतू को देखा तब तसल्ली हुई।

तभी मेड चाय व नाश्ता लेकर उसके पास आ गई। दोनों मीटिंग के बीच का समय कम था तो उसने कुछ खाया भी नहीं था ये चाय देखकर याद आया। उसने जल्दी से सैंडविच उठा कर खाना शुरु किया ,व मेड को रात के खाने का कहकर चाय पीने लगी।

आज दो साल हो गए पापा मां को गये, याद आया वह हादसा।

  कितने ख़ुशी ख़ुशी मां, पापा व  जीजाजी व एक महीने की रीतू को लेकर कलकत्ता उसके लिए लड़का देखने गए थे। तीन साल बड़ी दीदी व उसमें गज़ब की ट्यूनिंग थी। दोनों बहनें दिल की हर बात कर लेते। जाते-जाते भी मरदुला दीदी उसे छेड़ते हुए बोली , कुछ खास बात पूछनी है तो बता दे,

तेरी तरफ से मैं पूछ लूंगी। उनके जाते ही वह दिवा स्वप्न में खो गई। वह तो शाम को चाचा चाची आए तो उन्होंने वह मनहूस खबर सुनाई कि जिस ट्रेन से वे सब जा रहे थे , उसका एक्सीडेंट हो गया। वह बेख्याली में ही खबर सुनकर उनके साथ निकल पड़ी। वहां जाकर देखा

तो चारों में से कोई जीवित नहीं था। हां दो महीने की रीतू चिल्ला कर रो रही थी। उसने रीतू को उठा लिया बाकी उसे कुछ याद नहीं कि कैसे उन चारों का दाह संस्कार किया गया बस, वह तो मूकदर्शक बनी बैठी रह गई। होश तो उसने जैसे खो ही दिया था।छोटी रीतू को भी वही लोग संभाले हुए थे।

 ऐसे ही दो महीने बीत गए। उसके पापा की फर्म में काम करने वाले लोगों को जरुरत पड़ने लगी घर के लोगो की। तब चाचा ने ही आगे बढ़ कर कहा, सुवर्णा तुमने तो बिजनेस मैनेजमेंट किया है, तू क्यों नहीं संभालती। फर्म को चलाने के लिए भी जरूरत थी,सो उसने फैसला लिया कि वह कल से आफिस जाएगी। व नन्ही रितु को भी वह अपना बच्चा समझ कर व्ही पालेगी।

शुरू में उसे काफी दिक्कतें आई पर रमेश काका की मदद से वह छः महीने में सबकुछ समझ गई। रितु के लिए भी उसने मेड रख ली। वह दिन में कहीं बार फोन कर उसका हाल जान लेती।

तभी फर्म में सोमेश्वर आ गया उसने लंदन से बिजनेस मैनेजमेंट किया था।

सोमेश्वर बहुत ही अच्छा बिजनेस मैन साबित हुआ। आफिस के काम से ही की बार वह घर भी आने लगा। स्वयं सुवर्णा भी उस पर काफी विश्वास करने लगी । वह आफिस के बाद भी की बार काफी पीने चले जाते। एक दिन सोमेश्वर ने उसके सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया।

सुवर्णा तो अपने लिए इन सबसे बिल्कुल अनजान हुई बैठी थी। उसके जीवन में तो फर्म व छोटी रीतू को ही पालना जैसे कर्तव्य रह गया था। उसने सोमेश्वर को टाल दिया। पर कभी जगह उसकी जरूरत पड़ने लगती, तो सुवर्णा उसे कहने लगी थी कि वह फैसला ले लिया करें

पर सोमेश्वर कहता कि अगर वह उससे शादी करेंगी , उसके बाद ही वह फर्म के जरूरी फैसले लेगा। आज फिर से किसी फैसले को लेकर दोनों का होना जरूरी था। दोनों इकट्ठे गये बाद में दोनों काफी पीने एक कैफे में आ गए वहां बैठ कर सोमेश्वर ने उसे शादी के लिए दोहराया।

तब सुवर्णा ने कहा कि मैं रितु की मां हूं। उसे अपने बच्चे की ही तरह सारी जिंदगी पालूंगी और एक बार शादी के लिए जाते हुए हादसा हो चुका है। इस पर सोमेश्वर ने कहा कि ऐसे हादसे जिंदगी में होते रहते हैं तथा रितु को मैं भी अपनी बेटी की तरह अपनाऊंगा। अब तो कोई रूकावट नहीं , सुवर्णा अब तो हां कर दो। और सुवर्णा ने भी सविकरती दे दी।

   * पूनम भटनागर ।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!