*एक दूजे के लिये* – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

 पूजा नही आयी ना, माँ?मन नही मानता वह इस प्रकार मुँह मोड़ लेगी।

       बेटा, तू उसका ख्याल छोड़ दे।सपने सभी सच हो ये जरूरी तो नही।बस तू जल्द ठीक हो जा,बेटे।

      मैं क्या करूँ माँ?पूजा का चेहरा मेरी आँखों के आगे से हटता ही नही।कहते कहते सचिन बिलख पड़ा।

      माँ ने सचिन को अपने मे समेटते हुए कहा,बेटा हमारा और पूजा के परिवार से कोई मेल नही है।पूजा हमारे घर आ भी जाये तो कैसे रह पायेगी?

      पर माँ मैंने तो उससे कुछ छिपाया ही नही, तुझसे भी तो मिलवाया था, वो घर भी तो आयी थी,फिर अब क्या हो गया?

        अपने साथियों के आग्रह और पूर्ण सहयोग के आश्वासन पर सचिन छात्र संघ के चुनाव में खड़ा हो गया।अच्छे वक्ता होने एवम अच्छे व्यक्तित्व होने के कारण सचिन को अच्छा समर्थन प्राप्त हो रहा था, विशेष रूप से लड़कियां सचिन से खूब प्रभावित थी और उसके लिये बढ़ चढ कर काम कर रही थी।इन्ही छात्राओं में थी पूजा,जो सचिन की जीत के लिये जी जान से लगी थी।सचिन भी यह नोट कर रहा था।कॉलेज के इन चुनावों के 15-20 दिनों में ही सचिन का पूजा से काफी घुलना मिलना हो गया।

सचिन के जीतने के बाद उसकी लोकप्रियता काफी बढ़ गयी थी।अब सब अपनी अपनी पढ़ाई लिखाई में लग गये थे,पर सचिन पूजा के आकर्षण से मुक्त नही हो पा रहा था जब भी पूजा दिखाई दे  जाती तो वह उससे बात चीत करने का प्रयास अवश्य करता।पूजा भी सचिन को इग्नोर नही कर पाती।सच तो ये था उसे भी सचिन का सानिध्य अच्छा लगता था।दोनो अब अक्सर मिलने लगे थे कॉलेज में भी और कॉलेज के बाहर भी।सचिन के पिता नही थे,केवल माँ थी।माँ को पिता की मृत्यु के बाद उनके एवज में मिली क्लर्क की नौकरी से ही दोनो का यापन हो रहा था।

सचिन ने पूजा को कभी अंधेरे में रखा भी नही,उसे अपनी स्थिति से पूर्ण अवगत करा दिया था।पूजा एक सम्पन्न परिवार की लड़की थी।पर प्रेम यह सब कहाँ देख पाता है?अभी तक दोनो में से किसी ने भी अपने प्रेम का इजहार एक दूसरे को नही किया था,जबकि दोनो एक दूसरे के आकर्षण में पूर्ण रूपेण बंधे थे।

        अचानक एक दिन सचिन ने पूजा का हाथ अपने हाथ मे लेकर कहा,पूजा क्या तुम अपनी होने वाली माँ से मिलना चाहोगी?एकदम इस प्रकार का प्रस्ताव सुन पूजा हतप्रभ रह गयी,मुँह से कुछ न बोलकर पूजा ने मात्र अपने हाथ से सचिन के हाथ को दबा दिया।यह पूजा की मौन स्वीकृति थी।सचिन पूजा को अपने घर अपनी माँ से मिलाने ले गया।मां पूजा को देख बहुत ही खुश हुई।

फिरभी माँ बोली,पूजा बेटी,देख बेटी यही हमारा छोटा सा घर है, हम अमीर नही है।अब आगे सचिन कमाने लगेगा।क्या तुम हमारे साथ रह पाओगी?बेटा खूब सोच समझ कर निर्णय करना,दूसरे, क्या बेटा तुम्हारे घरवाले इस सम्बंध को स्वीकार कर लेंगे?अभी नही पूजा बेटी बाद में खूब सोच विचार कर उत्तर देना,तभी मैं तुम्हारे पिता से तुम्हे मांगने जाऊंगी।

        पूजा ने सचिन को साफ कर दिया कि वह उसके बिना नही रह पायेगी। अपने पिता को भी वह जल्द ही मना लेगी।दोनो प्रतिदिन ही मिलते थे और भविष्य के योजनाएं बनाते रहते।कॉलेज की पढ़ाई पूरी होते ही सचिन को इत्तेफाक से तुरंत ही एक अच्छी कंपनी में जॉब मिल गया।अब तो धीरे धीरे घर की स्थिति और सुधरने लगी।इधर कई दिनों से पूजा मिलने नही आ रही थी,इससे सचिन चिंतित था,कही वह बीमार तो नही,उसका फोन भी नो रिप्लाई हो रहा था।इसी सोच विचार में उसके कदम पूजा के घर की ओर बढ़ चले,

उसने सोच लिया था कि भले ही उसके पिता को अच्छा न लगे,पर वह पूजा को आज अवश्य ही देखकर आयेगा।तभी सामने से आती कार में उसे पूजा दिखायी दे गयी।दोनो की निगाहे मिली,पर पूजा ने अपनी निगाहे दूसरी ओर कर ली।इससे सचिन को स्वाभाविक रूप से धक्का लगा।वह वापस मुड़ गया,अब उसके मस्तिष्क में झंझावात था कि पूजा उससे विमुख क्यों हो गयी भला?इसी सोचविचार में चलते चलते उसका पावँ एक पथ्थर से टकराया और संतुलन बिगड़ने से वह सड़क पर गिर गया और उधर से गुजर रहे एक टेम्पो ने उसको घायल कर दिया।

       सचिन के एक्सीडेंट की बात सुन उसके कॉलेज के कई मित्र उससे हॉस्पिटल में मिलने आये।उन्ही से पता चला कि पूजा मिली थी,हमने उससे अपने साथ हॉस्पिटल आने को कहा था,पर उसने बाद में आने को बोला था।वैसे पूजा काफी कमजोर लग रही थी।

      इसका मतलब ये हुआ पूजा को सचिन के हॉस्पिटल में एडमिट होने की जानकारी तो है, तो फिर क्यो नही आयी, क्या उसको उसकी गरीबी रास नही आयी?सोचते सोचते सचिन का सिर फटने को हो जाता।वह दिन भी आया जब सचिन शारीरिक रूप से स्वस्थ हो हॉस्पिटल से डिसचार्ज हो घर जाने के लिये माँ के साथ निकला।वह रिक्शा में बैठने ही वाला था कि उसे कार से उतरते हुए पूजा दिखाई दी,उसे लगा कि वह उससे ही मिलने आयी होगी।सचिन ने माँ को घर  भेज दिया

और खुद हॉस्पिटल की ओर बढ़ चला।हॉस्पिटल में उसे पूजा दिखाई नही दी,उसने नर्स से पूछा कि अभी जो लड़की आयी थी वह कहाँ है?नर्स ने बताया कि अपने को दिखाने आयी है और डॉक्टर के चैंबर में है।पूजा बीमार है,सुन सचिन चिंतित हो  वह डॉक्टर के चैंबर की ओर दौड़ पड़ा।दरवाजे पर पहुंच कर उसे अंदर से आवाज आयी, देखिये शुक्ला जी(पूजा के पिता) घबराने की कोई बात नही है,अब मेडिकल में कैंसर का इलाज संभव है फिर ये तो अच्छा ही हुआ

कि पूजा के कैंसर की जानकारी तो पहली स्टेज में ही पता चल गयी है, समय तो लगेगा पर पूजा बिल्कुल ठीक हो जायेगी।सुनकर सचिन अपने स्थान पर खड़ा का खड़ा रह गया।अब उसकी समझ मे आया कि पूजा ने उससे क्यो दूरी बनाई है।इतने में ही अपने पिता के साथ पूजा डॉक्टर के चैंबर से बाहर निकली तो सामने सचिन को पाया।सचिन को देख पूजा आंखों में आये आंसुओ को ले दूसरी ओर तेजी से जाने लगी,तो सचिन ने पूजा को आवाज देकर अपना वास्ता दे रुकने को बोला।

पूजा दूसरी ओर मुंह करके रुक गयी।तभी उसके पिता शुक्ला जी सचिन के कंधे पर हाथ रख कर पूछा,बेटा क्या तुम ही सचिन हो?सचिन ने उन्हें हाथ जोड़ अभिवादन किया और पूजा से बात करने की अनुमति माँगी।शुक्ला जी चुपचाप उन्हें छोड़कर दूसरी ओर चले गये।

       सचिन ने पूजा के कंधों को पकड़ उसका मुंह अपनी तरफ करके कहा,पूजा सब दर्द अकेले ही सहने का अधिकार तुम्हे किसने दिया,क्या मैं तुम्हारे लिये कुछ नही था।पूजा क्या सोचा था तुमने,क्या तुम बिन मैं रह पाऊंगा,क्या मुझ बिन तुम रह पाओगी।सचिन सचिन कहते कहते बिलख पड़ी पूजा और सचिन से चिपट गयी।सचिन बताओ इतनी बड़ी बीमारी लेकर तुम्हारे पास कैसे आती मैं?मुझ पर क्या तनिक भी विश्वास नही था पूजा? ओह सचिन।

         पीछे से अपनी आंखों के पानी को पौछते शुक्ला जी आ गये, बोले बेटी पूजा मुझे तेरी पसंद पर गर्व है।आओ बच्चो आओ,कुछ नही होगा पूजा को दुनिया मे कही भी मैं अपनी बेटी का इलाज करारूँगा।सचिन पूजा तुम्हारी ही रहेगी।

    सचिन ने आगे बढ़कर शुक्ला जी के पावँ छू लिये।शुक्ला जी ने सचिन को गले से लगा लिया।सचिन बोला पापा मैं कल ही पूजा से शादी करना चाहता हूँ, मैं उसे अकेले नही छोड़ सकता।शुक्ला जी ने दोनो को गले से लगा लिया।अगले दिन ही दोनो की शादी कर दी गयी।

     दो वर्ष बाद डॉक्टर कह रहे थे शुक्ला जी बधाई हो पूजा जीत गयी है, उसने कैंसर पर विजय प्राप्त कर ली है।

बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित

*दिल पर कोई जोर चलता नही*

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