प्यार के दो चार दिन – निभा राजीव “निर्वी” : Moral Stories in Hindi

प्रशांत ने जैसे ही कार्यालय में प्रवेश किया प्रतिदिन की भांति सदानंद बाबू उसे देखकर मृदुलता से मुस्कुरा दिए। 

सदानंद बाबू इस कार्यालय के सबसे वरिष्ठ कर्मचारी थे। अब सेवानिवृत होने में उन्हें बस 4 महीने बचे थे, इसलिए कार्यालय में सभी उनका बहुत सम्मान करते थे। और उनका व्यवहार भी सभी के प्रति बहुत मृदुल है। प्रशांत भी लगभग 3 वर्षों से यहाँ कार्य कर रहा है। सदानंद बाबू की मेज ठीक उसकी मेज के सामने है।

और यह प्रतिदिन का नियम था कि सदानंद बाबू कार्यालय में बिल्कुल सही समय से सबसे पहले पहुंचते थे और सभी को देखकर बहुत प्रेम से मुस्कुराते थे। प्रशांत भी प्रतिदिन मुस्कुरा कर उनका अभिवादन करता था और साथ ही उनका हाल-चाल भी पूछता था, जिसके प्रत्युत्तर में वह मात्र सिर हिला दिया करते थे।

प्रशांत ने कभी उन्हें ज्यादा बातें करते नहीं देखा। वे बहुत शांत रहते थे और बहुत शांति से अपना काम करते रहते थे। लेकिन सभी कहते थे कि पहले वह ऐसे नहीं थे, किंतु जब से उनकी धर्मपत्नी का देहांत हुआ है उसके बाद से वह बहुत कम बोलने लगे हैं। आज भी उनके मुस्कुराने पर प्रशांत ने उनका अभिवादन तो किया

लेकिन आज मन इतना खिन्न था कि वह उनसे हाल-चाल भी नहीं पूछ सका और चुपचाप अपनी मेज पर आ गया। उसने कंप्यूटर तो ऑन कर लिया परंतु मन अभी भी सुबह की घटना के कारण दग्ध था। वैसे तो वह और उसकी पत्नी राशि दोनों एक दूसरे से बहुत प्रेम करते थे। राशि भी एक कामकाजी महिला थी

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लेकिन साथ में बहुत समझदार भी थी.. ऑफिस के साथ-साथ घर भी बहुत ही कुशलता से संभाल लेती थी। और प्रशांत भी जहां तक हो सके उसकी सहायता करने से पीछे नहीं हटता था। राशि का कार्यालय प्रशांत के कार्यालय से लगभग 1 किलोमीटर पहले ही आता था तो हर रोज दोनों साथ में निकलते थे

और प्रशांत उसे वहां ड्रॉप करते हुए अपने कार्यालय चला जाता था। लेकिन ऐसा आजकल अक्सर ही हो रहा है उसके और राशि के बीच किसी न किसी बात को लेकर बकझक हो जाया करती है। अब आज की ही बात लें। सुबह उसने राशि से कहा,”- राशि प्लीज.. मेरी नीली वाली शर्ट प्रेस कर दो ना…मुझे वही पहन कर ऑफिस जाना है..”

राशि अपने लैपटॉप पर कुछ कर रही थी… शायद कुछ ऑफिस का बचा हुआ काम निपटा रही थी। 

उसने अपनी दृष्टि लैपटॉप पर ही जमाए हुए कहा,”- हाँ प्रशांत मैं थोड़ी देर में कर देती हूँ।”

लेकिन जब प्रशांत नहाने के लिए जाने लगा तो उसने देखा कि उसकी शर्ट वैसी की वैसी ही रखी हुई है। बस उसका गुस्सा भड़क गया। 

उसने कटु स्वर में राशि से कहा,”-राशि, मैंने तुम्हें बस एक शर्ट प्रेस करने के लिए कहा और तुमसे वह भी नहीं हो सका।” 

नाश्ता मेज पर लगाती हुई राशि ने उसकी ओर पलट कर देखा और बोली,..”- सॉरी प्रशांत, आफिस के कुछ पेंडिंग कामों के कारण ना दिमाग से ही निकल गया…चलो कोई बात नहीं.. तुम नहा कर आओ…मैं तब तक तुम्हारी शर्ट प्रेस कर देती हूँ…फिर दोनों साथ में नाश्ता कर लेंगे..”

“अब क्या प्रेस करोगी तुम… मेरे ऑफिस का टाइम हो रहा है।” प्रशांत चिढ़‌ गया।

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राशि ने फिर कहा, “-अरे मैं कर दूंगी ना… तुम फ़िक्र मत करो… तुमने नहा कर तो आओ..”

लेकिन प्रशांत ने चिढ़कर कहा, “_ अब रहने ही दो … परेशान हो जाता हूँ मैं तो… ऑफिस जाऊं.. वहां की टेंशन झेलूं और घर पर भी यह सब नौटंकी…”

 अब राशि का स्वर भी तीव्र हो गया,”- अरे ऑफिस जाते हो तो कोई एहसान नहीं करते हो…मत भूलो कि मैं भी ऑफिस जाती हूं… और मैं तुम्हारी कोई खरीदी हुई बांदी नहीं हूँ.. समझे!!!”

“-अरे मैंने ऐसा कब कहा… तुम बात का बतंगड़ मत बनाओ.. तुम्हें तो बस लड़ने का बहाना चाहिए…” प्रशांत भी बिगड़ गया।

राशि ने भी गुस्से से कहा, “- अच्छा… तो अब लड़ाई भी मैं ही शुरू कर रही हूँ….तुमसे तो बात ही करना बेकार है…

“-हाँ तो मुझे भी तुमसे बात करने का कोई शौक नहीं है..”

“-हाँ तो मत करो ना बात…खास कर जब तक तुम अपनी सीमा में रहना सीख नहीं जाते…”

और बिना नाश्ता किए राशि अपना पर्स और लैपटॉप बैग उठाकर ऑफिस के लिए निकल गई। 

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भुनभुनाते हुए प्रशांत ने दूसरी शर्ट निकाल ली और वह भी बिना खाए पिए ऑफिस के लिए निकल गया। उसने भी सोच लिया कि अब जब तक राशि खुद उससे बात नहीं करती वह भी उससे बात नहीं करेगा। हर रोज राशि ऑफिस पहुंचने के बाद उसे ऑफिस पहुंच जाने का एक मैसेज भेजती थी इसलिए वह आज बार-बार रह रहकर अपना फोन चेक कर रहा था,

लेकिन आज राशि का कोई मैसेज नहीं आया। उसका मन बहुत उद्विग्न हो रहा था। सदानंद जी सामने बैठे उसकी उद्विग्नता को बहुत देर से परख रहे थे।उनकी अनुभवी दृष्टि ने भांप लिया कि प्रशांत कुछ अनमन्यस्क है। लंच टाइम वह धीरे से उठकर प्रशांत की मेज के पास आए और उसके कंधे पर हाथ रखकर आत्मीयता से पूछा, “-क्या बात है प्रशांत, आज आप कुछ परेशान लग रहे हैं?”

प्रशांत ने एकदम से चौंकते हुए कहा, “- जी…जी..जी नहीं.. ऐसी कोई बात नहीं है..”

सदानंद जी मुस्कुराते हुए बोले, “-अगर आप नहीं बताना चाहते तो कोई बात नहीं है लेकिन मैं शायद आपके पिता की आयु का हूँ, अगर आप अपनी समस्या मुझे बताएं तो शायद मैं अपने अनुभव के आधार पर आपकी कुछ मदद कर सकूं।”

   प्रशांत ने बिना कुछ बोले दृष्टि झुका ली..कुछ पल रुके रहने के बाद सदानंद बाबू अपने मेज के तरफ बढ़ने लगे तभी प्रशांत का मायूस स्वर सुनाई दिया, “-जी आपने बिल्कुल सही कहा.. आज बहुत अपसेट हूं मैं।”

सदानंद जी पलटकर आत्मीयता से बोले,”- चलिए.. कैंटीन में चल के चाय पीते पीते बातें करते हैं।”

        प्रशांत की बात सुनते सुनते अचानक सदानंद बाबू की आंखों से अविरल आंसू बहने लगे। उनकी हालत देखकर प्रशांत ने घबरा कर पूछा,”_ जी क्या हुआ सदानंद बाबू… आप ठीक तो हैं…?” 

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स्वयं को संयत करते हुए सदानंद बाबू ने कहा, “- मैं ठीक हूँ प्रशांत… आज आपसे जो कुछ कहने जा रहा हूँ, आज से पहले मैंने किसी को नहीं कहा है। लेकिन आप मुझे सदैव दूसरों से अलग लगे। ऑफिस में आते ही मेरा अभिवादन करना.. मेरा हाल-चाल पूछना..मुझे आत्मीयता से भर देता है। आज आपको मैं अपनी कहानी बताता हूं, ध्यान से सुनिएगा।”

              गहरी सांस लेकर उन्होंने बोलना शुरू किया, “-मेरी पत्नी सुलोचना जिसका देहांत आज से बारह वर्ष पूर्व हो गया, बहुत ही कर्तव्यनिष्ठ स्त्री थी। बहुत ही स्नेह, समर्पण और निष्ठा से वह घर के सारे काम करती थी। परंतु मैं सदैव अपने पति होने के दंभ में उसे कुछ न कुछ कहता ही रहता था। एक दिन खाना खाते समय दाल में नमक अधिक हो जाने पर मैंने उसे कई बातें सुना दी और थाली खिसका कर उठने लगा..

पर उसने कहा, “- जी मैं दाल में थोड़ा आटे की गोलियां बनाकर डाल देती हूँ और फिर से गर्म कर देती हूँ.… इससे नमक कम हो जाएगा। इस तरह से खाना छोड़कर मत उठिए… ऐसे खाना छोड़ कर उठने से भोजन का अपमान होता है।”

मैंने चिढ़कर कहा,”- एक तो गलती करती हो और उस पर से भाषण सुनाती हो, अब जाओ यहाँ से और यह जो कचरा पका कर मेरे सामने रख दिया है ना… इसे भी उठा कर ले जाओ… मैं बाहर जाकर कहीं खा लूंगा…”

उसने रुआंसी होते हुए कहा, “- मैं गलती मान तो रही हूँ…गलती से हो गया… आज खा लीजिए.. आगे से ध्यान रखूंगी।”

मैं दहाड़ा,”- तुमसे कभी कुछ होने वाला नहीं है!! गंवार स्त्री!!

वैसे तो वह बहुत ही शांत स्वभाव की महिला थी और कभी कुछ नहीं कहती थी लेकिन उस दिन उसने अवरुद्ध कंठ से कहा, “- देखिए.. मैं पूरी निष्ठा और समर्पण भाव से इस घर को संभालती हूँ… लेकिन मैं भी एक मनुष्य ही हूँ…आप जो सदैव मुझे ऐसी बातें करते हैं तो मुझे बहुत तकलीफ होती है।” 

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उसके इतना बोलने मात्र से मेरा क्रोध चरम सीमा पर पहुंच गया। मैंने तुरंत चप्पल पहनी और घर से बाहर निकल गया और मैंने मन में सोच लिया कि यह जब तक हाथ जोड़कर मुझसे माफी नहीं मांग लेती, मैं इससे कभी बात नहीं करूंगा। और उसके बाद से मैंने उससे बात करना ही बंद कर दिया।

लेकिन शायद उस बार मैंने उसके आत्मसम्मान को बहुत आहत कर दिया था। अब वह बहुत शांत रहने लगी। न हँसती बोलती थी.. ना बातें करती थी.. लेकिन मैंने भी अपने अहंकार में कभी उसकी पीड़ा को समझने का प्रयास नहीं किया। 

              उस दिन रविवार का दिन था। वैसे तो मैं प्रत्येक रविवार सब्जियां लाया करता था घर के लिए… लेकिन उस दिन जब मैं नहीं उठा तो वह चुपचाप सब्जी का थैला लेकर बाहर निकल गई। और न जाने वो कौन सी मनहूस घड़ी थी जिस समय वह बाहर निकली..सड़क पार करते समय एक तीव्र गति से आती हुई

कार ने उसे ठोकर मार दी और वह वहीं अचेत होकर गिर गई। मेरे एक परिचित ने उसे देखकर पहचान लिया और मुझे फोन करके सूचित किया। मैं हड़बड़ा कर वहाँ पहुंचा। आनन फानन में उसे अस्पताल ले जाया गया लेकिन कई दिनों तक जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष करते रहने के पश्चात अंततः उसने दम तोड़ दिया….

मेरी सुलोचना मुझसे ऐसी रूठी कि मुझे सदा सदा के लिए छोड़ कर चली गई….मैंने उससे बात नहीं करने की ठानी थी अब उससे बातें करने के लिए पागलों की तरह तड़प रहा हूं। वो मतभेद बहुत भारी पड़ गया मुझ पर….”

फूट फूट कर रोने लगे सदानंद बाबू… फिर उन्होंने अपने आंसू पोंछ कर एक घूंट पानी पिया और आर्द्र स्वर में प्रशांत से कहा..”- प्रशांत,इतना ही कहूंगा आपसे कि जीवन चार दिन का ही होता है और जिसका कोई ठिकाना नहीं है.. कुछ भी निश्चित नहीं है… कब किस पल क्या हो कोई नहीं जानता.. हम क्यों मतभेद

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और क्लेश में इसे व्यर्थ गवाएं। इस जीवन के जो भी चंद पल मिले हैं उनको प्यार से संजो लीजिए। दंभ और अहंकार से सिर्फ विनाश होता है और कुछ भी नहीं… स्मरण रखिए, मतभेद कब मनभेद में बदल जाता है पता भी नहीं चलता.. आपसे बातें करके अच्छा लगा प्रशांत… मेरा भी मन थोड़ा हल्का हुआ… मेरी बातों पर सोचिएगा अवश्य…”

और सदानंद जी उठ खड़े हुए और प्रशांत का कंधा थपथपाकर अपनी मेज की ओर बढ़ गए। 

                उनकी कहानी सुनकर प्रशांत का रोम रोम सिहर उठा। वह चाहे राशि पर कितना भी गुस्सा करे लेकिन उसके बिना रहने की तो कल्पना भी नहीं कर सकता। उसने ये तय कर लिया कि वह अब अपने और राशि के बीच इस मतभेद को कभी नहीं पनपने देगा। अपनी मेज पर आकर उसने तुरंत राशि को मैसेज किया कि ऑफिस खत्म होने पर वह उसकी प्रतीक्षा करे,वह उसे लेने आएगा। 

                 ऑफिस से निकल कर जब वह राशि के ऑफिस की तरफ बढ़ा तो ट्रैफिक पर गाड़ी रुकने पर एक बूढ़ी अम्मा जो गजरे बेच रही थी, उसने उसकी खिड़की थपथपाई। उसने मुस्कुरा कर कांच नीचे करते हुए उससे गजरा खरीद लिया।

                राशि के कार्यालय पहुंचने पर वह बाहर ही उसकी प्रतीक्षा करते हुए खड़ी मिल गई। वह गेट खोलकर गाड़ी में बैठ गई लेकिन वह काफी चुप थी। प्रशांत ने गजरे का पैकेट उठाया और उसकी ओर बढ़ा दिया तो राशि ने आश्चर्य से उसकी तरफ देखा..

उसने नर्म स्वर में कहा, “- सॉरी राशि.. मुझे सुबह तुमसे ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी.. मुझे माफ कर दो..”

उसकी इस बात पर राशि की आंखों में आश्चर्य, खुशी और प्यार के भाव एक साथ तैर गये… उसकी आंखें सजल हो गईं..

उसने भी तुरंत कहा, “-नहीं नहीं प्रशांत… ऐसी बात नहीं है। कभी-कभी टेंशन में हो जाता है। मैं भी ओवर रिएक्ट कर गई और कुछ ज्यादा बोल गई थी। आई एम सॉरी..”

प्रशांत ने मुस्कुरा उसके बालों में गजरा टांक दिया और कहा, “- चलो अब छोड़ो इन बातों को..”

और उसने गाड़ी आगे बढ़ा दी.. गाड़ी थोड़ी आगे बढ़ी तो राशि ने चौंक कर कहा, “-अरे इधर कहां जा रहे हो.. घर नहीं जाना है क्या…” प्रशांत ने मुस्कुराकर रूमानी अंदाज में कहा,”- बिल्कुल जाना है देवी जी… लेकिन पहले हम खाना खाएंगे… फिर आइसक्रीम खाएंगे.. उसके बाद घर जाएंगे…

और आज जो कुछ भी हुआ यह सदा के लिए एक बीती कहानी हो जाएगी.. आगे फिर कभी इसे ना दोहराएं… हमारे बीच बस प्यार ही प्यार हो… पता नहीं इस प्यार के पल कितने बाकी हों….है ना!!” 

राशि ने आँखें मूंदते हुए उसके कंधे पर सिर टिका दिया। कार में गाना प्ले हो रहा था..”सौ बरस की जिंदगी से अच्छे हैं.. प्यार के दो-चार दिन..”

निभा राजीव “निर्वी”

सिंदरी धनबाद झारखंड 

स्वरचित और मौलिक रचना

#मतभेद

1 thought on “प्यार के दो चार दिन – निभा राजीव “निर्वी” : Moral Stories in Hindi”

  1. बहुत ही अच्छी कहानी हैँ।हार्दिक शुभकामनाएं एवं अभिनंदन।

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