देखो सुजीत, पापा अब रिटायर हो गये हैं, मैं इस उम्र में अब उन्हें अपने पास रखना चाहता हूँ।यहां अकेले रहेंगे ये उचित नही होगा।
ठीक है भैय्या ऐसा करते हैं, पापा को आप अपने पास रख लो और मम्मी को मैं अपने साथ ले जाता हूँ।
नहीं-नहीं, दोनो अलग अलग कैसे रह सकते हैं,ये ठीक नही होगा।दोनो ही मेरे पास रहेंगे।
बद्री प्रसाद जी ने अपने जीवन की शुरुआत पीडब्ल्यूडी विभाग में एक क्लर्क के रूप में की थी,अपनी मेहनत,लगन से अपने ऑफिस में सबके चहते रहते हुए,उन्होंने अकॉउंट ऑफिसर पद तक तरक्की कर ली।अपनी सर्विस अवधि में उन्होंने एक अपने मकान का निर्माण जरूर कर लिया था। ईश्वर की अनुकंपा से उनको दो बेटे अजित और सुजीत प्राप्त हुए थे।बद्री प्रसाद जी ने अपने बच्चो को शिक्षा दिलाने में कोई कौर कसर नही छोड़ी।संयोगवश दोनो बेटे मेधावी निकले।अजीत को प्रतियोगिता पास करके मेडिकल कॉलेज में तथा
एक वर्ष बाद सुजीत को इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश मिल गया।दोनो बेटों की शिक्षा पूरी कराने को बद्रीप्रसाद जी ने अपने को पूरी तरह झोंक दिया।बद्रीप्रसाद जी रिश्वत लेते नही थे,अपने वेतन से बच्चो के खर्च में दिक्कत न आये तो वे एक दो प्राइवेट कंपनी में पार्ट टाइम एकाउंट का काम करने लगे।इससे होने वाली अतिरिक्त आय से उन्हें बच्चो को शिक्षा दिलाने में काफी सहूलियत हो गयी थी।दोनो बेटे अपने पिता द्वारा उनके लिये किये जा रहे सेक्रेफाइस को देख भी रहे थे और महसूस भी कर रहे थे।एक समय ऐसा भी आया जब उनकी आर्थिक आय से दोनो बेटों की पढ़ाई लिखाई का खर्च चलाना कठिन हो गया तो उनको अपनी उस कंपनी के डायरेक्टर से, जिसमे वे पार्ट टाइम काम कर रहे थे,कर्ज उठाना पड़ा।
पर बद्रीप्रसाद जी के मस्तक पर शिकन तक नही आयी, उन्होंने अपना लक्ष्य दोनो बेटों की शिक्षा पूर्ण कराने पर निर्धारित किया हुआ था।अजित की मेडिकल की सम्पूर्ण पढ़ाई जैसे ही पूरी हुई,उसका जॉब मेडिकल कालेज में लग गया।इसी प्रकार सुजीत भी इंजीनियर बन गया,उसका जॉब भी उसकी प्रथम पोजीशन के कारण तुरंत ही लग गया।बद्रीप्रसाद जी एवं उनकी पत्नी कौसल्या ने चैन की सांस ली।अभी बद्रीप्रसाद जी के रिटायरमेंट में चार वर्ष बचे थे।अब कौसल्या की इच्छा घर मे बहुओं के चरण पड़ने की शेष थी।
चूंकि दोनो बेटे अपने पावो पर खड़े थे,इसलिए दोनो के लिये ही संस्कारवान बहुओं की खोज प्रारम्भ हो गयी।बच्चो से भी उनकी पसंद पूछ ली गयी,उनसे उनके प्रेम प्रसंग के बारे में भी पूछ लिया गया।दोनो ने अपने प्रेम प्रसंगों के बारे में मना कर दिया।
खोज पूरी हुई छः माह के अंतराल पर दोनो बेटों की शादियां संपन्न करा दी गयी।संस्कार वान बहुए मिली थी,बद्रीप्रसाद जी कौसल्या को।कौसल्या तो कहते न थकती कि हमारा तो जन्म तो सफल हो गया।तीन चार माह दोनो बहुए वही ससुराल में रही।पूरे घर मे इन दिनों उत्सव जैसा माहौल रहा।फिर छा गया घर मे वही सूना पन।दोनो बहुए चली गयी अपने अपने पतियों के साथ।फिर वही दिनचर्या,बद्रीप्रसाद जी सुबह ऑफिस चले जाते और शाम को वापस आते।हाँ, अब वे पार्ट टाइम जॉब नही कर रहे थे।
कर्ज बेटों ने चुका दिया था।एक दिन वह भी आया जब बद्रीप्रसाद जी सेवा निवृत्त हो गये। अब तो बद्रीप्रसाद जी और उनकी कौसल्या दोनो अकेले रह गये।उन्होंने अपनी उसी तरह दिनचर्या तय कर ली थी।पर अजीत और सुजीत दोनो ने ही आपस मे विचार विमर्श किया कि अब मम्मी पापा को अकेले नही छोड़ना है।इसी कारण अजीत ने मम्मी और पापा दोनो को ही अपने रखने का प्रस्ताव सुजीत के समक्ष रखा था।जबकि सुजीत का कहना था कि मम्मी उसके साथ रह लेंगी,और पापा अजीत के साथ।
इस प्रस्ताव को अजीत ने सिरे से नकार दिया,उसका कहना था कि दोनो एक साथ रहेंगे।सुजीत का सोचना था कि उसे भी मम्मी पापा की सेवा का अवसर मिल जाये, इसी कारण उसने मम्मी को अपने साथ रहने की बात कही थी।अजीत भाई द्वारा उसके प्रस्ताव को नकारने से सुजीत को निराशा हुई।फिरभी सुजीत ने कहा भैय्या एक बार पुनर्विचार कर ले।मतभेद की नींव पड़ चुकी थी।
अजीत ने समझदारी का परिचय दिया।और रात्रि में उसने सुजीत से वीडियो कॉल पर बातचीत की।वीडियो कॉल पर दोनो फेस टू फेस बात कर रहे थे,इससे दोनो एक दूसरे के मनोभाव चेहरे पर देख सकते थे।अजीत ने कहा ए छोटे तू नाराज मत हो रे।तेरी जैसी इच्छा।पर भाई मेरा कहना था कि मम्मी और पापा किसी के भी पास रहे,दोनो साथ रहे।भाई,मैंने तो अपने पास दोनो को रहने को भी इसलिये भी कहा था कि मेरे पास उन्हें चिकित्सकीय सुविधाएं सहज रूप में उपलब्ध रहेगी।सुजीत भाई तू जैसा कहेगा तेरा ये भाई वैसा ही करेगा।
सुजीत के मन की गांठ खुल चुकी थी।वह बार बार अपने वर्ताव की क्षमा मांगने लगा।भैया मम्मी पापा आपके पास ही रहेंगे।हर दीवाली पर, और मम्मी पापा की शादी एनीवर्सरी पर एक साथ इकठ्ठा हुआ करेंगे।जब कभी मम्मी पापा का मन मेरे पास आने को करेगा तो मैं उन्हें लिवा लाया करूँगा।
क्यों नहीं, भाई।
आज मतभेद नही बल्कि मनमिलाप हुआ था।दोनो भाई अपने को हल्का महसूस कर रहे थे।
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित।
#मतभेद