“ बहू अब क्यों नहीं कह रही …तू तो मेरा बहादुर बेटा है,रोना नहीं, क्योंकि लड़के रोते नहीं….।” सुलोचना जी अपनी बहू सुमिता जी से बोल रही थी…कहते कहते अपने पोते रितेश को देख उनकी भी आँखों में आँसू आ गए थे।
“ बस माँ… अब और कितने ताने देंगी….अब अंदर से कोई कैसा निकलेगा ये तो मैं नहीं जानती थी ना….।” सुमिता जी भी रो ही रही थी
“ बस करिए आप लोग…जब देखो एक दूसरे पर दोषारोपण करती रहती हैं….. ये तो शुक्र मनाइए वक्त पर शुक्ला चाचा आ गए … नहीं तो पता नहीं क्या हो जाता ।” रितेश रोते हुए बोला
“ और माँ आप से हाथ जोड़कर विनती करता हूँ….. अभी कुछ दिनों तक अपनी बहू को यहाँ से दूर ही रहने दीजिएगा… जिसे मेरे पिता की परवाह ना हो उस लड़की को मैं इस घर में जरा भी बर्दाश्त नहीं कर सकता।” रितेश रोते हुए बोल अपने पापा को देखने कमरे में चला गया
वीरेन बाबू अभी सो रहे थे…डॉक्टर ने वक़्त पर आकर दवा दे कर उन्हें सँभाल लिया था…. रितेश का मन कर रहा था अभी निशिता अगर सामने होती तो जाने वो क्या कर जाता….
“ आ रहा हूँ शुक्ला चाचा से मिलकर ।” कहकर रितेश घर से बाहर निकल गया
“ माँ जानती हूँ आप सब मुझसे नाराज़ हैं…और होना भी चाहिए…पर माँ जी निशिता के भीतर झांक कर तो मैं नहीं देखी थी ना… और वो ऐसा व्यवहार करेंगी वो कोई सोच भी नहीं सकता हैं ।” सुमिता जी अपनी सास का हाथ पकड़कर माफ़ी माँगते हुए कह रही थीं
“बहू एक बार तो अपने बेटे के दिल को भी समझने की कोशिश करती… वो जरा सा रोता तू कहती क्या लड़कियों की तरह रो देते हो….. और उसे तुने पाषाण बनाने की कोशिश की पर आज तेरी वजह से ही उसकी आँखों में आँसू है।” सुमिता जी की सास ने कहा
“ मैं सब ठीक कर दूँगी माँ जी… अगर निशिता ने आकर माफी ना माँगी और ना अपना व्यवहार बदला तो रितेश और उसके रिश्ते का अंत ही करना सही रहेगा ।” कुछ सोचते हुए सुमिता जी ने कहा
उठकर वो पति के पास गई जो दवा के असर से सो रहे थे… उनका हाथ पकड़कर लग रहा था वो माफी माँग रही है ।
कमरे से बाहर निकल कर वो अपनी बचपन की दोस्त सुरेखा को फोन लगा दी..
“ सुरेखा मुझे आज ही तुमसे मिलना है घर आ जाओ ।” सुमिता जी ने कहा
“ ये क्या हुआ है सुमिता….मेरी निशिता का रो रोकर बुरा हाल हो रखा है… तेरे भरोसे पर ही अपनी बेटी तेरे घर ब्याही थी तुमने ही उसे अपनी बहू बनाने का वादा किया था फिर उसे इस तरह घर से निकाल दिया… ये तुम लोगों ने सही नहीं किया।” तल्ख़ लहजे में सुरेखा ने कहा
“ बस आज शाम को तुम घर आना … निशिता को लेकर आने की ज़रूरत नहीं है बाकी बातें शाम को करेंगे ।” कह सुमिता जी ने फ़ोन रख दिया
शाम को जब सुरेखा जी घर आई .. घर का ग़मगीन सा माहौल और रितेश और उसकी दादी का अनमना सा व्यवहार सुरेखा जी को किसी अनहोनी की आशंका जताने के लिए काफी था।
“ क्या हुआ मुझे घर क्यों बुलाया?” सुरेखा जी ने पूछा
“ सब बताती हूँ पर पहले जरा मेरे साथ आ…।” कहती हुई सुमिता जी सुरेखा जी को उस कमरे के पास ले गई जहाँ वीरेन बाबू लेटे हुए थे
उन्हें बाहर से ही दिखा कर वो ड्राइंगरूम में लेकर आ गई
“ सुरेखा तू मेरी बचपन की दोस्त है संजोग देख एक ही शहर में हमने अपना आशियाना बनाया… हमारी दोस्ती को पारिवारिक संबंध बनाने के लिए मैंने बेटे की अनिच्छा को दरकिनार कर निशिता को अपनी बहू बनाया….सब कुछ ठीक होता सुरेखा अगर तू बता देती तेरी इकलौते बेटी को तुमने बदतमीज़ बनाया हुआ है.. एक महीने ही तो हुए है ब्याह को.. पर उसे अभी भी लगता वो अकेली है अपनी मनमर्ज़ी से कहीं भी आती जाती हैं .. कोई रोक टोक नहीं लगाया हमने पर आज उसने जो किया है ना उस हरकत ने रितेश के दिल में जो थोड़ी जगह उसके लिए बन रही थी वो भी ख़त्म हो गई…।” सुमिता जी ने कहा
“ क्या किया उसने सुमिता…मुझे तो फ़ोन कर बोली मैं मूवी जा रही हूँ उसके बाद कुछ दिनों के लिए आपके साथ रहूँगी…. मुझे नहीं जाना ससुराल…।” सुरेखा जी ने बोला
“ आज मैं सासु माँ को लेकर पास के डॉक्टर के पास गई हुई थी…रितेश ऑफिस में था… मुझे पता था निशिता को मूवी जाना है… मैं समय पर ही आ जाती पर उधर अस्पताल में बहुत भीड़ थी इसलिए हमें देरी हो रही थी… निशिता वो तैयार होकर मूवी के लिए निकल ही रही थी कि वीरेन जी ने उससे कहा बहू थोड़ा पानी लाकर दे दो.. मेरा जी घबरा रहा है… पर वो ना सुनी और बोलने लगी मैं जा रही हूँ आप खुद ले लीजिए… वीरेन खुद पानी लेने उठे पर कमरे के दरवाज़े पर ही वो गिरे और चौखट पर सिर टकरा गया..और वो बेहोश हो गए…निशिता बिना देखे सुने घर से निकल गई….तभी वीरेन के दोस्त शुक्ला जी घर पर उनसे मिलने आ गए और वीरेन को देख जल्दी से डॉक्टर को फोन कर दिया… जब हम घर आए तो निशिता को नहीं देखकर फ़ोन लगाया तो बोली बाद में बात करती हूँ फिर हमने रितेश को फोन कर बुलाया… वक्त पर शुक्ला जी आ गए तो स्थिति सँभल गई नहीं तो पता नहीं क्या होता … बस रितेश ने ग़ुस्से में निशिता को बहुत कुछ सुना दिया… तू जानती है सुरेखा रितेश हम सब को कितना मानता है उसे अपनी पत्नी से इस तरह के व्यवहार की उम्मीद नहीं थी… मेरा बेटा आज बहुत रोया है…यहाँ तक कह दिया मुझसे… आपकी पसंद पर आपको बहुत नाज था ना …. अब करो नाज जिसे आपके पति और मेरे पापा की जरा ना परवाह… मुझे रहना ही नहीं उसके साथ .. अब तू बोल मैं क्या करूँ… निशिता को तू समझाएगी और रितेश उसे छोड़ दे?“ बिना लाग लपेट के सुमिता जी ने अपनी बात कह दी
“ सुमिता मुझे बहुत दुख हो रहा सुन कर मेरी बेटी ने ऐसा व्यवहार किया…. उसकी तरफ़ से मैं माफ़ी माँगती हूँ… मैं अभी जाकर निशिता से बात करती हूँ ।” सुरेखा जी ने कहा और चली गई
अगले दिन निशिता सुरेखा जी के साथ घर आई…
हाथ जोड़कर अपनी करनी की माफ़ी माँगते हुए बोली,“ मैं कभी परिवार मे ये सब देखी नहीं हमेशा घूमना फिरना करती रही…मुझे शायद परिवार में कैसे रहा जाता नहीं समझ आता क्योंकि मेरे पैरेंट्स भी यही सब करते रहे हैं… मम्मी जी मुझे माफ़ कर दीजिए…मैं तो जाने की जल्दी में थी क्योंकि मेरी सहेलियाँ बाहर मेरा इंतज़ार कर रही थी… मैं देखी ही नहीं पापा जी गिर गए या जो कुछ हुआ ।”
दूर बैठा रितेश ये सब सुन रहा था.. ग़ुस्से में वो निशिता के पास आया उसका हाथ पकड़कर ज़बरदस्ती पापा के कमरे के पास लेकर गया ,“ देखो सिर पर पट्टी बंधी है… वो तो ग़नीमत है ज़्यादा कुछ नहीं हुआ अगर कुछ हो जाता ना तो फिर …।”
“ सॉरी रितेश मुझे सच में नहीं पता था पापा जी की हालत इतनी ख़राब है…. मेरा भरोसा करो अब से ऐसा कुछ नहीं होगा…मुझे परिवार को समझना होगा…।“ निशिता लगभग रोने को हो गई
“ माँ जी मेरी बच्ची को माफ कर दीजिए… मैं अपनी अकेली संतान को सब कुछ देती रही पर परिवार में प्यार से रहना ना सिखा पाई वो अब आप लोग सिखा दीजिएगा… गलती करने पर डांट भी लगा सकते हैं…इसे तो मैं यही बोलती हूँ ये परिवार तुम्हें मुझसे ज़्यादा प्यार करेगा बस इसे अपना कर तो देख।“ सुरेखा सुमिता जी की सास से बोली
निशिता के चेहरे से लग रहा था वो शायद जानबूझकर ऐसा कुछ नहीं की थी जाने की हड़बड़ी में निकल गई अब जब माफी माँग रही है तो उसे माफ कर इसे एक मौक़ा और देना चाहिए ।
निशिता दिल की बुरी नहीं थी बस थोड़ी मस्तमौला और अल्हड़ थी जिसका बचपना अभी गया नहीं था और शादी हो गई थी… समय के साथ उसने सबका दिल जीत लिया।
दोस्तों परिवार में जब अपने को तकलीफ़ लगती है तो बहुत करीबी रिश्ते भी बेगाने लगते हैं और आँसू निकल आता है चाहे वो कोई भी हो… निशिता के व्यवहार से रितेश का पूरा परिवार आहत हुआ था पर निशिता को अंदाज़ा ही नहीं था पीछे से ऐसा कुछ हुआ है जब समझ आया उसने माफ़ी माँग ली और परिवार में अपनी जगह बनाने में कामयाब हुई।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश